13 साल से अनदेखी: राजस्थान की सरकारों ने कैसे SC/ST एक्ट का उल्लंघन किया
RTI डेटा से पता चलता है कि राजस्थान की एससी/एसटी सतर्कता समिति की हर साल दो बार बैठक करनी थी लेकिन 13 सालों में केवल दो बार ही बैठक हुई. 1989 में लागू किए गए ऐतिहासिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) का राजस्थान(Rajasthan) ने उल्लंघन किया, वो ऐसे कि राज्यस्तरीय सतर्कता और निगरानी समिति ने 2010 के बाद से अब तक केवल दो ही बैठकें की हैं जबकि नियम के अनुसार उसे हर साल दो बार बैठकें करने की जिम्मेदारी दी गई है. यह जानकारी द क्विंट को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली है|
एससी/एसटी एक्ट के नियम 16 के तहत राज्य के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली इस समिति को अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा करने का काम सौंपा गया है और हर साल दो बैठकें कर समिति को समीक्षा करना होता है|
आरटीआई से मिली जानकारी और भारत सरकार ने जो संसद में पेश ताजा आंकड़े पेश किए वे दोनों आंकड़े एक दूसरे से मिलते हैं, जिसमें बताया गया है कि कैसे 2018 और 2022 के बीच देशभर में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ अपराधों में तेज वृद्धि देखी गई|
जबकि राजस्थान में, विशेष रूप से, इन दोनों जातियों के खिलाफ अत्याचार के मामले इसी दौरान दोगुने हो गए, जो 2018 में 4,607 से बढ़कर 2022 में 8,752 हो गए, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्य इस दौरान एससी और एसटी जातियों के खिलाफ अपराधों के मामले में शीर्ष पर हैं|
आरटीआई आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में राज्य स्तरीय सतर्कता और निगरानी समिति की पहली बैठक 16 फरवरी 2010 को हुई थी और दूसरी बैठक 13 साल बाद 8 अगस्त 2023 को हुई थी. दोनों बार वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे|
यूपी, एमपी और ओडिशा जैसे अन्य राज्यों में भी इसी आकड़ों को लेकर आरटीआई दाखिल की गई है लेकिन उसका जवाब आना अभी बाकी है. इन तीनों राज्यों में एससी और एसटी के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे|
SC/ST एक्ट और सतर्कता एवं निगरानी समिति की भूमिका
एससी/एसटी एक्ट 11 सितंबर 1989 को भारत की संसद ने पारित किए थे और इसके नियम 31 मार्च 1995 को अधिसूचित किए गए थे. अधिनियम के नियम 16 और 17 राज्य और जिला स्तरीय सतर्कता और निगरानी समितियों के गठन के बारे में बताते हैं|
25 से अधिक सदस्यों वाली इस समिति की अध्यक्षता राज्य के मुख्यमंत्री करते हैं|
अन्य सदस्यों में शामिल हैं: गृह मंत्री, वित्त मंत्री, कल्याण मंत्री, एससी और एसटी समुदायों से आने वाले सांसद और विधायक, मुख्य सचिव, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय आयोग के निदेशक|
RTI डेटा से पता चलता है कि राजस्थान की एससी/एसटी सतर्कता समिति की हर साल दो बार बैठक करनी थी लेकिन 13 सालों में केवल दो बार ही बैठक हुई.
नियम में आगे कहा गया है कि: “लागू किए गए अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिए हाई पावर सतर्कता और निगरानी समिति एक साल में जनवरी और जुलाई के महीने में कम से कम दो बार बैठक करेगी, पीड़ितों को दी जाने वाली राहत और बाकी सुविधाएं और उससे जुड़े अन्य मामले, अधिनियम के तहत दर्ज मामले, अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए जिम्मेदार विभिन्न अधिकारियों/एजेंसियों की भूमिका और राज्य सरकार को मिली रिपोर्ट की समीक्षा करेगी.”
राजस्थान स्थित सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने कहा कि आरटीआई की रिपोर्ट बताती हैं कि कैसे सरकार अत्याचार अधिनियम के बारे में गंभीर नहीं है. मेघवंशी ने द क्विंट को बताया:
“यह जो पता चला है ये तो बहुत कम है. न तो सरकार और न ही पुलिस प्रशासन, अत्याचार अधिनियम के बारे में गंभीर है. ज्यादातर मामलों में, यदि आप जांच अधिकारियों से बात करते हैं, तो आपको पता चलेगा कि हर जांच कैसे शुरू होती है, जैसे पुलिस मानती है कि मामला झूठा है और दलित अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है.”
उन्होंने कहा: “यह अधिनियम दलितों और आदिवासियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है. यह सत्ता में बैठे लोगों को जागरूकता फैलाने का आदेश देता है. लेकिन लगातार राज्य सरकारें ऐसा करने में विफल रही हैं. और जब इस तरह की बैठकें नहीं होती हैं, जवाबदेही के लिए कोई गुंजाइश नहीं है.”
‘अवमानना का मामला’
वास्तव में मार्च 1995 में नियमों की अधिसूचना के बाद से, समिति को 59 बार बैठक करनी चाहिए थी, जबकि दो बार ही बैठक हुई है|
वहीं 2015 में, सेंटर फॉर दलित राइट्स ने एक याचिका दायर की थी जिसके जवाब में राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को “1995 के नियमों के नियम 17 और 16 के अनुसार जिला और राज्य स्तरीय सतर्कता और निगरानी समिति का गठन करने का निर्देश दिया.”
द क्विंट से बात करते हुए, राजस्थान में दलित अधिकार केंद्र के निदेशक सतीश कुमार ने बताया कि राजस्थान सरकार की सतर्कता और निगरानी समिति की नियमित बैठकें आयोजित करने में विफलता सीधे अदालत की अवमानना है|
कुमार ने कहा, “2015 में हमारी याचिका का जवाब देते हुए, हाई कोर्ट ने सरकार से इस समिति का गठन करने को कहा था, कोर्ट ने कहा कि सरकार ने इसे गठित नहीं किया है तो अब करें. इसलिए, सरकार सीधे तौर पर अदालत के आदेश का उल्लंघन कर रही है.”
राजस्थान में जाति आधारित क्राइम
राजस्थान में जाति के आधार पर अत्याचार के मामले आए दिन सुर्खियां बनते रहते हैं|
2022 में, जालोर के एक नौ साल के दलित लड़के की उसके शिक्षक द्वारा पीटने बाद कथित तौर पर मौत हो गई, पीटने का कारण – क्योंकि उसने स्कूल में केवल उच्च जाति के लोगों द्वारा इस्तेमाल करने वाले बर्तन से पानी पी लिया था|
उसी साल, 28 साल के जितेंद्र मेघवाल को पाली जिले में कथित तौर पर मूंछें रखने को लेकर चाकू मार दिया गया था|
सिरोहा जिले के एक आदिवासी कार्यकर्ता कार्तिक भील की कथित तौर पर इसलिए मौत हो गई थी क्योंकि एक स्थानीय विधायक ने कुछ लोगों को उसे पीटने की सुपारी दी थी. दबंगों ने उसे बेहद बुरी तरह से पीटा था|
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में एससी और एसटी के खिलाफ अपराध की दर में 2018-2022 के बीच लगातार वृद्धि देखी गई है. अनुसूचित जाति के मामले में, अपराध की दर 2018 में 37.7% से बढ़कर 2022 में 71.6% हो गई, वहीं सजा मिलने की दर में गिरावट आई जो 2018 में 43.6% से थी फिर 2022 में 39.5% हो गई|
RTI डेटा से पता चलता है कि राजस्थान की एससी/एसटी सतर्कता समिति की हर साल दो बार बैठक करनी थी लेकिन 13 सालों में
केवल दो बार ही बैठक हुई|
एसटी के खिलाफ अत्याचार से संबंधित मामलों में अपराध दर 2018 में 11.9% से बढ़कर 2022 में 27.3% हो गई. इसी दौरान, आरोप पत्र दाखिल करने की दर कम रही और केवल 50% के करीब मामलों में आरोप पत्र दर्ज किया गया. सजा की दर लगातार बढ़ने के बावजूद कम बनी हुई है|
सौजन्य:द क्विंट
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