वोट फॉर डेमोक्रेसी रिपोर्ट: चुनाव आयोग की ‘अनियमितताएं’ लोकतंत्र के लिए खतरा
विपक्षी दलों और नागरिक समाज को चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता और भारत के चुनाव आयोग स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए रिपोर्ट की सामग्री का इस्तेमाल करने में सबसे आगे रहना चाहिए।
वोट फॉ र डेमोक्रेसी प्रकाशन, रिपोर्ट: लोकसभा चुनाव 2024 का संचालन – मतदान और मतगणना के दौरान वोट हेरफेर और कदा चार का विश्लेषण, 22 जुलाई को मुंबई में जारी किया गया, जिसने 18 वें आम चुनावों के संचालन के दौरान भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के कामकाज की कथित अनियमितताओं का पर्दाफाश
किया गया है।
वीएफडी, एक महारा ष्ट्र स्तरीय नागरिक मंच है जिसमें व्यक्ति और संगठन शामिल हैं, जिसकी स्थापना सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, डॉल्फी डिसूजा, फादर फ्रेजर मस्कारेन्हास और खलील देशमुख ने की है, तथा इसने पूर्व नौकरशाह एमजी देवसहायम और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ प्यारे लाल गर्ग द्वारा लिखित इस
पुस्तक को प्रकाशित किया है।
विभाजनकारी भाषणों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं रिपोर्ट में इस बात पर गंभीर चिंता जताई गई है कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उन नेताओं के खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं की, जिन्होंनेन्हों ने चुनाव प्रचार के दौरान भाषण देते हुए मुसलमानों को निशाना बनाया और वोटों की अपील के लिए सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी बयानों का इस्तेमा ल किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि, “उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में ईसीआई की
घोर वि फलता, चाहे वह प्रधानमंत्री हों या बीजेपी में उनके साथी, संस्था के आचरण पर एक गंभीर धब्बा रहेगा।” मतदान में अप्रत्याशित वृद्धि को दर्शाने के लिए ईसीआई डेटा का इस्तेमाल किया गया|
ईसी आई के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट में एक चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है, जिसमें बताया गया है कि कुल वोटों की आधिका रिक अंतिम गणना से लगभग पांच करोड़ अतिरिक्त वोट डाले गए। ऐसा जताते हुए रिपोर्टइस बात पर रोशनी डा लती है कि ईसीआई ने, वोटों की भारी वृद्धि के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए कई बार अनुरोध किए जाने के बावजूद, आज तक कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिया है। इससे यह संदेह पैदा होता है कि “बढ़ा हुआ आंकड़ा” दिखाने में चुनावी प्रक्रिया में हेराफेरी की गई हो सकती है।
इसके अलावा रिपोर्ट का भयावह निष्कर्ष यह है कि इस तरह के अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए आंकड़ों के कारण, भाजपा और उसके सहयोगी दल, जिनसे राष्ट्री य जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बना है, कई राज्यों में फैली 79 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज़ की हो सकती है। एनडीए की इस कथित जीत के आधार पर, रिपोर्ट एक साहसिक दावा करती है कि जनादेश इंडिया ब्लॉक के सहयोगियों से चुराया गया हो सकता है, जिन्हें 232 सीटें मिलीं,लीं जबकि भाजपा को 240 सीटें मिलीं,लीं जो अपने एनडीए सहयोगियों के साथ मिलकर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटाया हो सकता है। वीडीएफ रि पोर्ट में कहा गया है कि पिछले आम चुनावों में चुनाव आयोग ने मतदान के दिन शाम तक मतदान प्रतिशत जा री कर दिया था और अगले दिन संशोधित आंकड़े दिए थे, जिसमें दोनों आंकड़ों के बीच 1 या 2 फीसदी से अधिक का अंतर नहीं था। हालांकि, 18वें आम चुनावों में सभी सात चरणों में अंतर “3.2 फीसदी से 6.32 फीसदी” पाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतर “आंध्र प्रदेश में 12.54 फीसदी और ओडिशा में 12.48 फी सदी” था, और अंतिम मतदान में वृद्धि का संचयी औसत 4.72 फीसदी था।
79 सीटों पर भाजपा को लाभ मिलने का आरोप
रिपो र्ट में बताया गया है कि 15 राज्यों में एनडीए की जीत का अंतर 79 सीटों पर कम है। इन 79 सीटों को राज्यवार देखें तो ओडिशा में 18, महाराष्ट्र में 11, पश्चिम बंगाल में 10, आंध्र प्रदेश में सात, कर्नाटक में छह, छत्ती सगढ़ और राजस्थान में पांच-पांच, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में तीन-तीन, असम में दो और अरुणाचल प्रदेश, गुजरात और केरल में एक-एक सीट है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि वोटों में बेवजह की बढ़ोतरी एनडीए उम्मीदवारों की जी त के अंतर से ज़्यादा थी और अगर कोई बढ़ोतरी नहीं होती, तो जीतने वाले उम्मीदवार हार जाते। अगर एनडीए को 79 से कम लोकसभा सीटें मि लतीं,तीं तो वह बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाती। और, ज़ाहिर है, बीजेपी की संख्या 200 से कम
होती। यही वजह है कि वीडीएफ रिपोर्ट ने एनडीए की जीत को “चुराए गए जनादेश” के अलावा कुछ नहीं बताया है।
प्रधानमंत्री के खिला फ चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की
महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर रिपोर्ट में किए गए दावे सही हैं, तो स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने में चुना व आयोग की भूमि का संदिग्ध है। चुनाव आयोग ने पहले ही अपनी विश्वसनीयता खो दी है, क्योंकिक्यों उसने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आदर्श आचा र संहिता (एमसीसी) लागू करने के लिए कुछ नहीं किया, जबकि उन्होंने नेचुनाव प्रचार के दौरान बार-बार सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी भाषण दिए और जब चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से पूछा गया कि
चुनाव आयोग ने मोदी के खिलाफ कार्रवाई
क्यों नहीं की , तो उन्होंनेन्हों नेमशहूर जवाब दिया कि उच्च पदों पर बैठे लोग जिम्मेदारी से काम करना जानते हैं। वीडीएफ रिपोर्ट में अंबेडकर की आशंकाओं को रेखांकित किया गया वीडीएफ रि पोर्ट में कहा गया है कि ईसीआई ने पीएम मोदी पर आदर्श आचार संहि ता (एमसीसी) लागू नहीं की, जिससे उनके प्रति उसका अधीनस्थ रवैया प्रदर्शित हुआ और 16 जून 1949 को संविधान सभा में चुनाव आयोग से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 289 (अब अनुच्छेद 324) के मसौदे पर बहस के दौरान बी आर अंबेडकर द्वारा व्यक्त की गई आशंकाएं साबित हुईं, कि संविधान में किसी मूर्ख या दुष्ट को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने से रोकने के लिए किसी प्रावधान के अभाव में, यह संभावना होगी कि ईसीआई कार्यपालिका के अंगूठे के नीचे आ जाएगा।
रिपोर्ट, जिसकी एक प्रति भारत के निर्वाचन आयोग को उसकी प्रतिक्रिया और आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई है, यदि सत्य है, तो यह इस बात को सिद्ध करती है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने “कार्यपालिका के अंगूठे” के नीचे काम करते हुए, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के उस उद्देश्य को दूषित किया है, जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के मूल ढांचे के हिस्से के रूप में माना है।
यह दुखद है कि जब प्रधानमंत्री मोदी दावा करते हैं कि भारत ‘लोकतंत्र की जननी’ है, तो वही चुनावी प्रक्रिया, जो किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली का मूल है, ईसीआई द्वारा कथित अनियमितताओं के कारण बाधित हो रही है। ‘दासता की जंजीरों में जकड़ी ईसीआई’ वीडीएफ रि पोर्ट की दलीलें कि ईसीआई की कथित चूक सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पक्ष में जाने का संकेत हैं ताकि वह 18वीं लोकसभा में बहुमत हासिल कर सके, 2023 में अनूप बरनवाला बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं की पुष्टि करती है, कि इसे “दासता की जंजीरों में जकड़ा आयोग” नहीं बनना चाहिए।
विपक्षी दलों और नागरिक समाज को निर्वाचन प्रक्रिया की पवित्रता और निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता को बहाल करने के लिए रिपोर्ट की विषय-वस्तु का इस्तेमाल करने में अग्रणी रहना चाहिए, जैसा कि संविधान में निहित है। लेखक, भारत के राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि रह चुके हैं। यह उनके निजी विचार हैं।
सौजन्य:न्यूज़ क्लिक
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