गोरखपुर : दलित ने किया दलित का उत्पीड़न, छेड़खानी और मार-पीट से आहत किशोरी की मौत
यह मामला उत्तर प्रदेश पुलिस की असंवेदनशील कार्यशैली को उजागर करता है, क्योंकि छेड़खानी व मारपीट तथा मौत के बीच करीब एक महीने के समय का अंतर है और दोनों बार मृतका की मां व उसके अन्य परिजन स्थानीय पुलिस से प्राथमिकी दर्ज करने की गुहार लगाई।
मामला एक दलित परिवार के उत्पीड़न का है और उत्पीड़न भी ऐसा कि उत्पीड़क भी दलित समुदाय का ही है। मतलब यह कि उत्पीड़ित और उत्पीड़क, दोनों चमार जाति से आते हैं। अंतर यह है कि इसमें उत्पीड़ित पक्ष गरीब और उत्पीड़क पक्ष अमीर है। इस उत्पीड़न का फलाफल यह कि एक किशोरी की मौत हो गई। यहां यह न समझें कि किशोरी ने खुदकुशी की और इस वजह से उसकी जान गई। वस्तुत: यह मामला उत्तर प्रदेश की पुलिस की असंवेदनशील कार्यशैली को उजागर करता है, क्योंकि छेड़खानी व मारपीट तथा मौत के बीच करीब एक महीने के समय का अंतर है और दोनों बार मृतका की मां व उसके अन्य परिजन स्थानीय पुलिस से प्राथमिकी दर्ज करने की गुहार लगाई।
घटना क्या है, इसे समझने के लिए मृतका की मां द्वारा गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को गत 16 जुलाई, 2024 को दिया गया आवदेन का प्रथमांश काफी है, जिसमें वह लिखती हैं–
“निवेदन है कि प्रार्थिनी प्रेमा देवी, पत्नी श्रीफल, निवासी दुबौली, थाना गगहा, जनपद गोरखपुर की निवासीनी है। हम प्रार्थिनी की लड़की रित्यम के साथ गांव के ही अशोक, संतोष (दोनों के पिता निर्मल) व स्वयं निर्मल ([पिता] स्वर्गीय जित्तू) ने छेड़छाड़ किया था। घटना 17 जून 2024 को रात 8 बजे की है। छेड़छाड़ के बाद उसे बुरी तरह से मारे-पीटे, जिसके संबंध में थाना पर सूचना दिया गया तो पुलिस कार्यवाही नहीं किया। थक-हार कर प्रार्थिनी ने न्यायालय में वाद दाखिल किया। हमारी लड़की रित्यम की हालत तभी से ठीक नहीं था और उसी घटना में आए हुए चोटों से दिनांक 13 जुलाई, 2024 को 10 बजे सुबह हमारी लड़की मर गई। काफी देर तक हमलोग लाश लेकर थाने में खड़े रहे, लेकिन पुलिस ने न तो पोस्टमार्टम कराया, न ही पंचनामा भरा और कहा कि लाश का दाह संस्कार कर दो। लाश खराब होने के डर से हमने लाश का दाह संस्कार कर दिया। मुकदमा दर्ज न होने के कारण विपक्षीगण का मनोबल बढ़ा है। वह हमें बराबर जान-माल की धमकी दे रहे हैं। न्यायहित में प्रार्थिनी का मुकदमा दर्ज किया जाना आवश्यक व न्यायसंगत है।”
मृतका रित्यम की मां का यह आवेदन सितंबर, 2020 में यूपी के ही हाथरस जिले के चंदपा थाने के बूलगढ़ी गांव की घटना की याद दिलाता है। रित्यम की मौत 13 जुलाई, 2024 को हो गई। उसकी मां व अन्य परिजन गगहा थाना के परिसर में मुकदमा दर्ज करने की मांग करते रहे और पुलिस असंवेदनशील बनी रही। इतना ही नहीं, पुलिस ने मृतका के शव का पोस्टमार्टम कराना भी आवश्यक नहीं समझा।
आंबेडकर जन मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सीमा गौतम के नेतृत्व में गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपने जाते मृतका के परिजन
मृतका की मां ने अपनी बेटी की मौत के पहले भी गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से 26 जून, 2024 को गुहार लगाई थी। अपने आवेदन में उसने अपनी बेटी की मौत के पहले की घटना के बारे में जानकारी दी थी–
“निवेदन है कि मैं प्रार्थिनी प्रेमा देवी, पत्नी श्रीफल ग्राम व पोस्ट भितरी दुबौली थाना गगहा जनपद गोरखपुर की स्थायी निवासिनी हूं। मैं प्रार्थिनी व मेरे पति दोनों शारीरिक रूप से विकलांग हैं। प्रार्थिनी के बगलगीर से कई वर्षों से जमीनी रंजिश के कारण विवाद चल रहा है। उसी क्रम में दिनांक 17 जून, 2024 को रात में लगभग 8 बजे हमारी लड़की रित्यम कुमारी पुत्री श्रीफल (उम्र करीब 17 वर्ष) अपने घर में खाना बना रही थी, उसी समय प्रार्थिनी के गांव के ही निवासी संतोष व अशोक पुत्रगण निर्मल घर में घुस आए और हमारी लड़की से बदनियतीपूर्वक अकेले पाकर छेड़छाड़ व अश्लील हरकत करने लगे। जब मेरी लड़की जोर-जोर से चिल्लाई तो दोनों लोग मेरी लड़की को उठाकर बेड पर पटक दिया और गला दबाकर जान से मारने की कोशिश करने लगे।
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“अत: आप श्रीमान जी से निवेदन है कि उक्त आरोपी संतोष, अशोक पुत्र निर्मल, निर्मल पुत्र स्व. जित्तू, मनीषा, निशा, पुत्री निर्मल, किशोरी पत्नी निर्मल व रेणु पत्नी संतोष के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करते हुए मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तार करने की कृपा करें।”
इस आवेदन से स्पष्ट है कि मृतका रित्यम के परिजनों ने उसके साथ हुए अश्लील हरकत और मारपीट के बाबत पुलिस को पहले ही जानकारी दे दी थी। चूंकि रित्यम की उम्र के बारे में उसकी मां ने अपने आवेदन में 17 वर्ष बताया है, तो कायदे से पुलिस को इस मामले को पाक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज करना चाहिए था, जिसमें स्पष्ट तौर पर इस तरह के मामले में सख्त कार्रवाई करने की बात कही गई है। पाक्सो यानी लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की परिभाषा में वर्णित है– “लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न [जिसमें अश्लील हरकतें करना भी शामिल है] और अश्लील साहित्य के अपराधों से बालकों का संरक्षण करने और ऐसे अपराधों का निवारण करने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना तथा उनसे संबंधित या आनुषंगिक विषयों के लिए उपबंध करने के लिए अधिनियम”। इस अधिनियम के दूसरे अनुच्छेद के चौथे हिस्से में स्पष्ट बताया गया है कि “बालक” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है।
लेकिन गोरखपुर की रित्यम के मामले में गगहा थाने की पुलिस को इस अधिनियम की याद नहीं आई, उसने मुकदमा भी दर्ज नहीं किया और नतीजा यह हुआ कि रित्यम के परिजनों को जिले के एसएसपी से लेकर न्यायालय तक के चक्कर काटने पड़े।
मृतका रित्यम के भाई सुधीर दूरभाष पर बताते हैं कि “एसएसपी से गुहार लगाने के बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। हमारे परिजनों को डराया-धमकाया जा रहा है। जब मैं अपनी मां के साथ थाने जाता हूं तो कई बार मेरी मां को विकलांग कहकर अपमानित किया जाता है। उनके दाएं पैर में चलने में परेशानी होती है, इसलिए वह लंगड़ाकर चलती हैं। वहीं मेरे पिता का बायां हाथ काम नहीं करता है।”
इस पूरे मामले में आंबेडकर जन मोर्चा के संयोजक श्रवण निराला ने दूरभाष पर कहा कि “इस पूरी घटना के लिए स्थानीय पुलिस की असंवेनशीलता जिम्मेदार है। जिस समय मृतका के साथ छेड़खानी व मारपीट की घटना हुई थी और उसके परिजनों ने पुलिस से गुहार लगाया था, तब यदि पुलिस ने संज्ञान लिया होता तो यह मुमकिन था कि मृतका को न्याय पाने की आस होती और वह बीमार नहीं पड़ती तथा उसकी जान नहीं जाती।”
वहीं, गोरखपुर (दक्षिण) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जितेंद्र कुमार प्रेमा देवी व उनके परिजनों पर आरोप लगाते हैं। फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में उन्होंने कहा कि “यह जब घटना हुई थी, उसी समय से उनके खिलाफ [प्रेमा देवी के पक्ष के खिलाफ] 308 का मुकदमा दर्ज है। दूसरे पक्ष के सिर पर इन्होंने काफी चोट मारा था और न तो उस महिला [मृतका रित्यम कुमारी] के साथ छेड़छाड़ हुई थी और न ही मारपीट हुई थी। जबकि प्रेमा देवी के पक्ष के द्वारा दूसरे पक्ष को काफी गंभीर चोट पहुंचाई गई थी। इस कारण आईपीसी की धारा 308 के तहत गगहा थाना में उनके [प्रेमा देवी व उनके परिजनों के] खिलाफ मुकदमा दर्ज है। उसके बाद [प्रेमा देवी] क्रॉस में मुकदमा लिखाने के लिए कि हमारी बच्ची के साथ छेड़छाड़ हुई और झूठे आरोप लगाकर प्रार्थना-पत्र लेकर आई। उसके बाद जब इसकी लड़की एक्सपायर हो गई है, एक्सपायर होने के बाद इसने न किसी थाने को सूचना, न किसी अधिकारी को सूचना, न किसी अस्पताल को सूचना, और चुपचाप उसका दाह-संस्कार कर दिया। अगले दिन दोपहर में इसके [प्रेमा देवी के] द्वारा फिर प्रार्थना-पत्र दिया गया कि हमारी जो बच्ची थी … लड़की उसको उस लड़ाई-झगड़े में चोट लगी थी, और उस चोट लगने की वजह से फलां दिनांक को एक्सपायर हो गई। इसके द्वारा हमें यह बताया गया। हमने पूछा कि ठीक है, उसको चोट लगी, लेकिन कहीं आपने उसका इलाज करवाया? तो उन्होंने कहा कि नहीं जी, हमने कहीं कोई इलाज नहीं करवाया। वह कोई मोबाइल रखती होगी? जवाब मिला कि नहीं जी, कोई मोबाइल नहीं रखती थी। तो इस तरह से वो करने लगे। आजतक हमें पता नहीं चला कि उसको कोई चोट लगी थी और न इन्होंने कुछ बताया था कि चोट लगी थी। न इनके द्वारा कोई इलाज कराने का जिक्र है, न कहीं उसको किसी अस्पताल में या किसी भी तरह का उसको सूचना देने का या इलाज कराने की जानकारी नहीं दी गई। मरने के दौरान यदि कोई चोट की वजह से मरी होगी तो उसको कोई जख्म होगा, इंजरी होगी, इंटर्नल या एक्सटर्नल, जिसकी वजह से वह एक्सपायर हो गई। उसका कहीं लंबा इलाज भी चला होगा। आज तक हमें नहीं पता। इन्होंने हमें नहीं बताया कि उसका इलाज कहीं चला कि नहीं चला। आपको भी हो सकता है नहीं बताया होगा।”
खैर, मृतका रित्यम कुमारी के भाई सुधीर कुमार ने दूरभाष पर जानकारी दी कि रित्यम का इलाज सरकारी अस्पताल में कराया गया था। इस बात की पुष्टि करते हुए आंबेडकर जनमोर्चा के संयोजक श्रवण निराला ने दूरभाष पर बताया कि मृतका का इलाज उरुवा स्थित सरकारी प्राथमिक अस्पताल में कराया गया था।
बहरहाल, मृतका के परिजन चाहते हैं कि पुलिस उनकी गुहार सुने और आरोपियों को गिरफ्तार कर कार्रवाई करे ताकि वे दहशत के माहौल से बाहर निकलें। वैसे यह जांच का विषय है कि रित्यम कुमारी की मौत कैसे हुई और यह भी महत्वपूर्ण है कि पुलिस ने तब कार्रवाई क्यों नहीं की, जब उसके साथ छेड़खानी की घटना के बारे में उसके परिजनों ने उसे सूचित किया था? एक सवाल दलित-बहुजन समाज के आपसी भाईचारे से भी जुड़ा है। यदि समाज के स्तर पर पहल किया गया होता तो क्या रित्यम की जान जाती?
सौजन्य:फॉरवर्ड प्रेस
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