MP बरोदिया नोनागिर दलित हत्याकांड: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में अंजना की मौत संदेहास्पद!
भोपाल। मध्य प्रदेश के सागर के चर्चित खुरई बरोदिया नोनागिर दलित हत्याकांड की एक नागरिक जांच दल द्वारा फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की गई है। इस जांच दल में अधिवक्ता मोहन दीक्षित, एडवोकेट आदित्य, रावत, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीस से माधुरी, अखिल भारतीय नारीवादी मंच की अंजली, नीलू दहिया, जागृत आदिवासी दलित संगठन से नितिन, रोहित और सदफ खान के द्वारा शुक्रवार को यह रिपोर्ट राजधानी भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी की गई है।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में पुलिस प्रशासन और भाजपा नेता पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। रिपोर्ट के उल्लेखनीय है कि, अगस्त 2023 में सागर जिले के बरौदिया नौनागिर गाँव में 18 वर्षीय दलित युवक नितिन अहिरवार की अताताईयों द्वारा बर्बर हत्या और उसकी माँ और बहन पर हमले का मामला सामने आया था। मात्र 9 महीने बाद, नितिन के चाचा, और प्रकरण में एक मुख्य गवाह, राजेन्द्र अहिरवार, पर हिंसक हमला कर उनकी हत्या की गई । राजेंद्र अहिरवार के शव को घर ले जाते समय, लगातार न्याय की मांग कर रही नितिन की बहन दिलेर और बहादुर 20 वर्षीय अंजना अहिरवार की भी संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो गई।
“हमने पाया कि मीडिया की सक्रियता के कारण नितिन हत्या कांड में अधिकांश आरोपी गिरफ्तार तो हुए थे पर कार्यवाही में कई कमियाँ रह गयी हैं और स्थानीय राजनेताओं और प्रशासन के पूर्वाग्रह और पक्षपात के कारण पीड़ित परिवार पर दबाव बरकरार रहा और राजेंद्र और अंजना की भी मौत हुई । आरोपियों के तरफ से पीड़ितों को ‘राजीनामा’ करने के दबाव, एक स्थानीय राजनेता क नाम का नहीं जोड़ा जाना और कार्यवाही में शिथिलता के लिखित शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी। पहले भी इन्हीं में से कुछ दबंगों के खिलाफ यौन हिंसा के मामले मे प्रकरण कमजोर किया गया था”, फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में पढ़ा गया।
“सागर मध्य प्रदेश की राजनैतिक सत्ता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और इस मामले में विपक्षी नेता और फिर स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी पीड़ितों से मिलने पहुँचें। परंतु डेढ़ माह बाद भी राजेंद्र की हत्या के अधिकांश आरोपी गिरफ्तार नहीं हुए हैं । अंजना की मौत को शव वाहन से ‘गिरना या कूदना’ बताया जा रहा है जो अविश्वसनीय है और विवरण पूछे जाने पर डेढ़ माह बाद भी पुलिस ‘जांच चल रही है’ बोल कर चुप्पी साधी हुई है।”
“अंजना की मौत की परिस्थितियाँ साजिश की ओर इशारा करती है। अंजना पढ़ी लिखी थी, और इन सभी अत्याचार के मामलों में न्याय मांगने में उनकी ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। परिवार की तरफ से प्रशासन और राजनेताओं के साथ वही संवाद करती थीं। 15 वर्ष की उम्र में ही अपने पर हुई हिंसा के मामले में रसूखदारों पर एफ़आईआर दर्ज करवा पाईं थी और इस मामलें में समझौता करने से इनकार करती रहीं।”
“अंजना अपने भाई नितिन की हत्या के मामले में फरियादी और एक मुख्य गवाह थी। चाचा की हत्या के मामले में भी मुख्य गवाह थीं, क्योंकि उन्हीं को चाचा ने फोन पर अपने पर हो रहे हमले की सूचना दी थी। अंजना पर लगातार राजीनामा और गवाही बदलने का दबाव बनाया जा रहा था और इस संबंध में उन्होने कई लिखित शिकायतें भी की थी। अंजना ने हाई कोर्ट में नितिन की हत्या के आरोपियों की जमानत अर्जी पर भी आपत्ती लगाई जिससे उनकी जमानत खारिज हो गयी थी। अंजना सुप्रीम कोर्ट में भी आपत्ति लगाने की तैयारी कर रही थी।”
“इन सभी मामलों में विस्तृत और निष्पक्ष जांच की सख्त जरूरत है, जिसके लिए स्थानीय पुलिस सक्षम और विश्वसनीय नहीं दिखाई दे रही है। इसलिए हमारा मानना है कि सीबीआई द्वारा ही जांच किया जाना चाहिए, जैसे कि पीड़ित परिवार द्वारा और क्षेत्र में लगातार मांग उठ रही है।”
“इस क्षेत्र के दिग्गज नेता, विधायक और पूर्व मंत्री, भूपेंद्र सिंह द्वारा इन मामलों मे दिए गए बयान से पीड़ितों के खिलाफ पूर्वाग्रह और मामलों की गंभीरता को कम दर्शाने की कोशिश दिखती है। नितिन की हत्या के बाद उन्होने इसे ‘आपसी विवाद’ बताया। अंजना और राजेंद्र के मौत के बाद राजेंद्र को अपराधी और अंजना को अपराधियों द्वारा गुमराह बताया। जबकि मामला है दबंगों द्वारा दलितों पर अत्याचार, जिसमें एक नाबालिग लड़की पर हिंसा, तीन नौजवानों की मौत, एक महिला को पीट कर निर्वस्त्र किया जाना और दलितों के घर तोड़े जाने का घटनाक्रम रहा है।”
“उल्लेखनीय है कि आरोपी ‘लंबरदारों’ में से तीन प्रमुख आरोपी, कोमल ठाकुर और उनके दो पुत्र, भाजपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारी रहे हैं । पुलिस द्वारा नितिन और राजेंद्र सहित नितिन के भाई विष्णु पर आपराधिक प्रकरणों का हवाला देते हुए और इनको दबंग “लंबरदारों” के विरोधी गुट द्वारा इस्तेमाल किया जाना बाताया है। जबकि पुलिस की साफ दिखती पूर्वाग्रह से इन विचाराधीन प्रकरणों का भी निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है और यदि मामले को उठाने में इन दलित मजदूरों को विरोधी गुट के व्यक्तियों का सहयोग मिला भी हो, तो भी इन हिंसा और प्रताड़ना के आरोपों को झुठलाया नहीं जा सकता है।”
“जाहिर है कि एक दलित मजदूर परिवार द्वारा गाँव के दबंग “लंबरदारों” के खिलाफ एफ़आईआर और शिकायतें दर्ज करवाना, उनके खिलाफ बयान देना और राजीनामा के लिए भी तैयार नहीं होने से दबंगों के वर्चस्व को चुनौती के रूप में देखा गया है और इसी से तनाव और हिंसा बढ़ती गई है। नितिन- अंजना और राजेंद्र के पीड़ित परिवारों ने हमसे कई बार कहा कि वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।”
“इस मामले में सत्ता और विपक्ष के कई दिग्गज राजनेताओं का दखल रहा है और स्वयं मुख्यमंत्री का दौरा भी रहा है। इसके बाद भी पुख्ता कार्यवाही नहीं होने से पीड़ित परिवारों पर खतरा बढ़ गया है। स्पष्ट है कि अब भी यदि कार्यवाही में किसी भी प्रकार की कमी रही और किसी प्रकार की हिंसा या प्रताड़ना हुई, तो उसके लिए राज्य शासन ही पूर्ण रूप से ज़िम्मेवार होगा,” फैक्टफाइंडिंग रिपोर्ट में बताया गया।
सौजन्य :मूलनायक
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