वीके सक्सेना मानहानि मामले में मेधा पाटकर को सजा वंचित समुदाय की आवाज को कुचलने की कोशिश, सामाजिक संगठनों ने जताया कड़ा विरोध
खिरिया के मैदान में किसान नेताओं का जमावड़ा, मेधा पाटकर पहुंची किसानों के संघर्ष में खिरिया की बाग, राकेश टिकैत 9 नवम्बर को संघर्ष में शामिल होंगे जिस प्रकरण में मेधा पाटकर को 5 माह कारावास एवं 10 लाख रुपये की मुआवजा राशि जुर्माना के रूप में भरने के लिए सजा सुनाई गई है वह एक फर्जी इमेल पर आधारित है, जिसे वीके सक्सेना ने वर्ष 2001 में दर्ज कराया था। जब मुकदमा दर्ज कराया गया था उस दौरान वीके सक्सेना द्वारा आन्दोलन के खिलाफ गंभीर आपतिजनक टिप्पणियाँ की गयी थीं.|
मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ीं कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली के साकेत कोर्ट ने 5 माह की सजा और 10 लाख रुपया जुर्माना भरने की सजा 1 जुलाई को सुनायी गयी थी, जिसका भारी विरोध किया जा रहा है। गौरतलब है कि मेधा पाटकर पर दिल्ली के LG वीके सक्सेना द्वारा 2001 में मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था, जिस पर फैसला सुनाते हुए साकेत कोर्ट ने मेधा पाटकर को दोषी करार दिया था। इस मामले में आग आये संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन ने महामहिम राष्ट्रपति से मेधा पाटकर की सजा को रद्द करने की मांग की गयी है और कहा है कि मेधा पाटकर को कथित मानहानि मामले में सुनाई गई सजा वंचित समुदाय की आवाज को कुचलने की कोशिश है।
बयान में कहा गया है, सम्पूर्ण नर्मदा घाटी सहित देशभर के वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए वर्षों से संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर को कथित मानहानि के मामले में सुनाई गई सजा का छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन कड़े शब्दों में निंदा करता है एवं महामहिम राष्ट्रपति से सजा को शीघ्र रद्द करने की मांग करता है। आन्दोलन का मानना है कि देशभर में जनवादी अधिकारों के लिए कार्यरत साथियों को डराने और चुप कराने का यह एक प्रयास है। मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन आदिवासियों, किसानों, मजदूरों, मछुआरों सहित सभी अन्यायग्रस्तों -विस्थापितों के साथ संघर्ष और निर्माण के कार्य में सक्रिय रहा है। आन्दोलन का मानना रहा है कि विकास की अवधारणा विनाश, विषमतावादी नहीं बल्कि समता, न्याय और निरंतरता के मूल्य मानकर होनी चाहिए।
पिछले 38 वर्षों से मेधा पाटकर ने नर्मदा घाटी में ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न इलाकों के श्रमिकों, किसानों, मजदूरों, शहरी गरीबों और जल-जंगल-जमीन पर जीने वाले आदिवासियों के साथ कार्य किया है। आज भी नर्मदा घाटी में हजारों परिवारों के संपूर्ण पुनर्वास के लिए आंदोलन जारी है। जिस प्रकरण में मेधा पाटकर को 5 माह कारावास एवं 10 लाख रुपये की मुआवजा राशि जुर्माना के रूप में भरने के लिए सजा सुनाई गई है वह एक फर्जी इमेल पर आधारित है, जिसे वीके सक्सेना ने वर्ष 2001 में दर्ज कराया था। जब मुकदमा दर्ज कराया गया था उस दौरान वीके सक्सेना द्वारा आन्दोलन के खिलाफ गंभीर आपतिजनक टिप्पणियाँ की गयी थीं। यहाँ तक कि साबरमती आश्रम में गुजरात में दंगों के बाद शांति बैठक का निमंत्रण मिलने पर मेधा पाटकर जब आश्रम में पहुंची, तब उन पर हमला किया गया जिसमें वीके सक्सेना शामिल थे, जिसके कई गवाह है और आपराधिक मामला भी पंजीबद्ध है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन एवं उससे जुड़े सभी घटक संगठन मेधा पाटकर और नर्मदा घाटी के डूब प्रभावित समुदायों के अधिकारों के लिए पूरी ताकत से उनके साथ खड़े हैं और संघर्ष में अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं। मेधा आंदोलन की सजा का विरोध करने वालों में जिला किसान संघ राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्त्ता समिति), अखिल भारतीय आदिवासी महासभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा) जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन, भारत जन आन्दोलन, माटी (कांकेर), अखिल भारतीय किसान सभा (छत्तीसगढ़ राज्य समिति) छत्तीसगढ़ किसान सभा, किसान संघर्ष समिति (कुरूद) आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित आदिवासी मंच (सोनाखान), गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा) आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर) सफाई कामगार यूनियन, मेहनतकश आवास अधिकार संघ (रायपुर) जशपुर जिला संघर्ष समिति, राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद् (छत्तीसगढ़ इकाई, रायपुर) जशपुर विकास समिति, रिछारिया कैम्पेन और भूमि बचाओ संघर्ष समिति (धरमजयगढ़) शामिल हैं।
सौजन्य :जनज्वार
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