मणिपुर के कैदी का इलाज नहीं कराने पर सुप्रीमकोर्ट नाराज:कहा- आरोपी कुकी कम्युनिटी का है इसलिए इलाज नहीं कराया, हमें अब राज्य सरकार पर भरोसा नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (6 जुलाई) को मणिपुर की एक जेल में बंद बीमार कैदी को इलाज के लिए अस्पताल नहीं ले जाने पर नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमार आरोपी माइनॉरिटी कुकी कम्युनिटी से था। इसलिए उसे इलाज के लिए अस्पताल नहीं ले जाया गया। यह दुखद है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने आरोपी का असम में इलाज कराने का आदेश देते हुए कहा कि अब हमें मणिपुर सरकार पर भरोसा नहीं है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में लुनखोंगम हाओकिप नाम के एक कैदी ने इलाज कराने की मांग को लेकर याचिका लगाई थी। उसने कहा था कि वह पाइल्स और ट्यूबरक्यूलोसिस से पीड़ित होने के कारण काफी दर्द में है। हाओकिप के वकील ने दावा किया कि जेल अधिकारियों ने मेडिकल हेल्प के लिए लगातार की गई मांग पर ध्यान नहीं दिया।
SC ने कहा- इलाज का खर्च मणिपुर सरकार उठाएगी
सुप्रीम कोर्ट ने जेल सुप्रीटेंडेंट को आदेश दिया कि आरोपी का गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में तुरंत मेडिकल जांच और इलाज कराया जाए। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के इलाज का खर्च मणिपुर सरकार ही उठाएगी। साथ ही कहा कि 15 जुलाई तक मेडिकल रिपोर्ट पेश की जाए और अगर रिपोर्ट में कुछ गंभीर बात सामने आती है, तो मणिपुर सरकार के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।
हाईकोर्ट ने कहा था- अस्पताल ले जाने से कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है
सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने से पहले आरोपी ने मणिपुर हाईकोर्ट में भी इलाज कराने की मांग की याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि कुकी कम्युनिटी के होने के कारण उसे अस्पताल नहीं ले जाया गया। क्योंकि ऐसा करने पर कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है।
अस्पताल ले जाने से कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर क्यों?
मणिपुर में 13 महीने (पिछले साल मई से) कुकी और मैतई कम्युनिटी के लोगों के बीच उपद्रव जारी है। मैतई कम्युनिटी के लोग ST के दर्जे की मांग कर रहे हैं। 1 साल से ज्यादा समय से जारी हिंसा में 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
हिंसा को लेकर हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मीटिंग की थी। राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर ही हाईकोर्ट ने आरोपी को अस्पताल में इलाज कराने की इजाजत नहीं दी थी और कहा था कि कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
सौजन्य: दैनिक भास्कर
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