‘1.3 करोड़ लोगों की आय पर खतरा’, कोयले का इस्तेमाल खत्म करने की दिशा में गंभीर चुनौतियां
NFI ने कोयले का इस्तेमाल खत्म करने को लेकर झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में हुए स्टडी की रिपोर्ट जारी की है.
मोहन कुमार
नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) की एक स्टडी में सामने आया है कि ‘कोल ट्रांजीशन यानी कोयले का इस्तेमाल खत्म करना’ हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए गंभीर चुनौती पेश करता है. बुधवार, 26 जून को NFI ने “एट द क्रॉसरोड्स: मार्जिनलाइज्ड कम्युनिटीज एंड द जस्ट ट्रांजिशन डिलेमा (At the Crossroads: Marginalised Communities and the Just Transition Dilemma)” नाम से एक रिपोर्ट जारी की है.
3 राज्यों के 6 जिलों में स्टडी
NFI ने इस स्टडी में तीन भारतीय राज्यों- छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के दो-दो जिलों को शामिल किया. इनमें छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और कोरिया, झारखंड के रामगढ़ और धनबाद, ओडिशा के जाजपुर और अंगुल जिले शामिल हैं.
इन जिलों को दो भागों में बांटा गया है:
कोयला उत्पादक जिले: जहां कोयला खनन केंद्रीय आर्थिक गतिविधि है
कोयला संबद्ध जिले: जहां कोयला-निर्भर उद्योग और अन्य औद्योगिक इकाइयां अर्थव्यवस्था के केंद्रीय स्तंभ हैं
प्रत्येक जिले में 18-20 गांवों और कस्बों का चयन किया गया था. इनमें कुल 1209 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया. 41.5 फीसदी परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), 23 फीसदी अनुसूचित जनजाति (ST) और 17 फीसदी अनुसूचित जाति (SC) से संबंधित हैं, जबकि केवल 15.5 फीसदी परिवार ही सामान्य श्रेणी से हैं.
आबादी के बड़े हिस्से, विशेष रूप से SC, ST और OBC, की शिक्षा तक सीमित पहुंच पाई गई, जिनमें से कई ने केवल प्राथमिक शिक्षा हासिल की है या वे साक्षर भी नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 20 फोकस ग्रुप डिस्कशन (FGD) आयोजित की गईं. जिसमें महिलाओं की सुरक्षा, फेफड़ों और संबंधित बीमारियों की अधिकता और शिक्षा तक पहुंच की कमी जैसे मुद्दे कम से कम 75% प्रतिभागियों ने उठाए. सभी FGD में सांस संबंधी बीमारियों को एक प्रमुख मुद्दा बताया गया. इसके अलावा, करीब 65% ने त्वचा संबंधी समस्याओं, जैसे डर्मेटाइटिस, एक्जिमा और फंगल इन्फेक्शन की भी बात कही है.
रिपोर्ट की बड़ी बातें
तीनों राज्यों में काम करने वाले लोगों में स्वास्थ्य चिंताएं, आर्थिक और जाति आधारित गैर-बराबरी जैसे गंभीर पहलू सामने आए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, इन जिलों में जाति और शिक्षा के बीच स्पष्ट संबंध दिखता है. केवल प्राथमिक शिक्षा या बिना शिक्षा वाले ज्यादातर परिवार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं.
धनबाद और कोरिया जैसे कोयला उत्पादक जिलों में हाशिए पर पड़े समुदायों में से लगभग 57% के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है, जबकि 47% के पास केवल प्राथमिक शिक्षा है.
कोयला-निर्भर रामगढ़ जिले में हाशिए पर पड़े समुदायों के 77% लोगों ने बताया कि उनके पास केवल प्राथमिक शिक्षा है या कोई शिक्षा नहीं है.
FGD से पता चला कि जाति-आधारित पूर्वाग्रह इन क्षेत्रों में नियुक्ति प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित करते हैं. 20 में से 15 FGD में ये सामने आया कि अल्पसंख्यक समुदायों के पास अनौपचारिक और कम वेतन वाली नौकरियां अधिक हैं.
कोयला खनन क्षेत्रों में जाति व्यवस्था- वेतन असमानता, नौकरियों, नौकरियों के प्रकार, अनुबंधों और काम करने की स्थितियों के मामले में एक बड़ा फैक्टर है. निचली जातियों, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों (ST) और अनुसूचित जातियों (SC) के लोगों को उच्च जातियों के लोगों की तुलना में कम वेतन मिलता है.
यह पाया गया कि पांचों जिलों की तुलना में अंगुल में आय का स्तर सबसे अधिक, जबकि रामगढ़ में आय/मजदूरी सबसे कम है. इसके अतिरिक्त, रामगढ़, धनबाद और कोरिया में दैनिक और साप्ताहिक मजदूरी अधिक है, जबकि अंगुल में मासिक आय अधिक है.
कोरिया और धनबाद जैसे कोयला-केंद्रित जिलों में आय, अंगुल जैसे अधिक विविध उद्योगों वाले जिलों की तुलना में कम है. उदाहरण के लिए, धनबाद में तीस दिनों के काम के लिए औसत मासिक आय लगभग 7,530 रुपये है. इसके विपरीत, अंगुल में, जहां कोयला खनन के साथ-साथ अन्य खनन उद्योग भी हैं, औसत मासिक आय 28,670 रुपये है.
स्टडी में यह भी सामने आया है कि लोगों को समय से सैलरी मिलने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. रायगढ़ में केवल 21% ने नियमित रूप से वेतन मिलने की बात कही. जबकि कोरिया में किसी ने भी नियमित वेतन मिलने की बात नहीं कही. इसके विपरीत, अंगुल में औसतन 59% उत्तरदाताओं ने नियमित वेतन की बात कही है.
अध्ययन की सह-लेखिका और NFI की रिसर्च एसोसिएट पूजा गुप्ता ने कहा, “अध्ययन में शामिल विभिन्न जिलों में सामाजिक और आर्थिक असमानताएं स्पष्ट रूप से सामने आईं. इन जिलों में लोगों के आय के स्तर अलग-अलग हैं और उन्हें अनियमित मजदूरी मिलती है.”
रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश परिवारों को सरकार की कल्याणकारी और आर्थिक योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. उदाहरण के लिए, कोरिया में सर्वेक्षण किए गए 92% से अधिक परिवारों को सरकारी योजनाओं के बारे में पता तो है, लेकिन 95% ने कथित तौर पर मनरेगा, कौशल प्रशिक्षण, पेंशन जैसी योजनाओं का लाभ नहीं उठाया.
सरकार की योजनाओं के प्रति जागरुकता का दर ज्यादा है, लेकिन इसका फायदा उठाने का दर बहुत कम पाया है. उदाहरण के लिए, धनबाद में सर्वे में शामिल 95% लोगों को पीएम आवास योजना के बारे में जानकारी है, लेकिन 89% ने इस योजना का लाभ नहीं उठाया है.
पूजा गुप्ता ने यह भी बताया कि सर्वेक्षण और क्षेत्र के दौरे के दौरान यह पाया गया कि बुनियादी कल्याण योजनाओं तक लोगों की पहुंच बहुत कम थी, जिससे ये समुदाय और ज्यादा असुरक्षित हो जाते हैं. यह भी पाया गया कि इन क्षेत्रों में बड़ी नीतिगत और संस्थागत चुनौतियां हैं, जो प्रशासनिक लापरवाही, सेवाओं की अपर्याप्त उपलब्धता और अपूर्ण संरचनाओं के रूप में सामने आता है.
‘कोल ट्रांजीशन’ का लक्ष्य हासिल करने में कई चुनौतियां
रिपोर्ट में न्यायपूर्ण तरीके से कोल ट्रांजीशन का लक्ष्य हासिल करने से संबंधित कई चुनौतियों की पहचान की गई है, जिनमें आम तौर पर अल्पशिक्षित कामगारों को कौशल प्रशिक्षण की जरूरत और वैकल्पिक आजीविका की कमी आदि शामिल है.
कोयले का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से खत्म करने से घरेलू आजीविका पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं. भारत जिस बदलाव को हासिल करना चाहता है, उसका सीधा असर रोजगार पर पड़ेगा, जिससे घरेलू आजीविका प्रभावित होगी, खास तौर पर उन लोगों की जो पूरी तरह से कोयले से जुड़े रोजगार पर निर्भर हैं. कम से कम 1.3 करोड़ लोगों के आय का स्रोत खत्म हो जाएगा, जिसका असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, क्योंकि कोयला उद्योग पर निर्भर व्यवसायों को भी नुकसान होगा.
अगर अप्रत्यक्ष प्रभाव की बात करें तो, इससे आर्थिक मंदी और समुदायों में विघटन हो सकता है.
NFI के कार्यकारी निदेशक बिराज पटनायक ने कहा, “हाशिए के समुदायों पर कोल ट्रांजीशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए समुदाय-विशिष्ट नीतियों और मजबूत संस्थागत तंत्र की तत्काल आवश्यकता है.”
तीन पहलुओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है:
वैकल्पिक आजीविका: ऐसे नए आर्थिक अवसर पैदा करने पर जोर देना जो कोयले पर आधारित न हो.
पारिस्थितिक सेहत बेहतर करना: कोयला खनन के स्वास्थ्य दुष्प्रभावों को कम करने के लिए पर्यावरण बेहतर करने के उपायों को बढ़ावा देना.
समावेशी नीतियां: यह सुनिश्चित करना कि कोल ट्रांजीशन संबंधी नीतियां समावेशी हों और ये हाशिए के समुदायों की जरूरतों को ध्यान में रखे.
सौजन्य: द क्विंट
नोट: यह समाचार मूल रूप से thequint.com में प्रकाशित हुआ है और इसका उपयोग केवल गैर-लाभकारी/गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया गया था, विशेष रूप से मानवाधिकारों के लिए।