कोई दे रहा तरजीह, बाकी में छिटके वोटरों को मनाने की कवायद, 2027 के लिए सबके एजेंडे में दलित वोटर
Reported Byरोहित मिश्र वैभव पांडे
90 के दशक तक दलित कांग्रेस का ही वोटर हुआ करता था, लेकिन इसके बाद से वह छिटक गया। अब इस लोकसभा चुनाव में जब वह लौटा है तो उसे पार्टी से जोड़े रखने के लिए प्रयास और तेज किए जाएंगे। बसपा प्रमुख मायावती ने हाल ही में पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी।
हाइलाइट्स
मिशन 2027 से पहले यूपी के सभी दलों की दलित वोटरों पर नजर
कांग्रेस को कोर वोटर दलित छिटक गया था, लोकसभा में आया साथ
सपा अपनी पीडीए पॉलिटिक्स को और मजबूत करने की तैयारी में
dalit
यूपी के दलित वोटरों पर सभी दलों का फोकस गेमिंग
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कम से कम तीन दशकों से दलित वोटरों का ठिकाना बसपा था। हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दलितों का एक तबका भाजपा में भी शिफ्ट हो गया था। लेकिन हम बात कर रहे हैं 2024 की। दलितों को न तो बसपा रास आई न भाजपा पसंद। ठिकाना बदल लिया। चले गए इंडिया ब्लॉक की तरफ। संविधान बदलने बनाम संविधान बचाने और भाजपा की बी-टीम के नैरेटिव ने ऐसा जोर पकड़ा कि भाजपा और बसपा दोनों ही दलित वोटरों से महरूम रह गए। फायदा इंडिया ब्लॉक को मिला और वह यूपी में 43 सीटें जीतने में कामयाब रही। अब चुनाव बीत चुके हैं और तैयारी शुरू हो चुकी है 2027 के विधानसभा चुनावों की। ऐसे में जिनके पाले में दलित वोटर गए, वे उन्हें सहेजने की कोशिशों में जुटे हैं जबकि जिनसे छिटके, वे उन्हें वापस लाने की कवायद में। कुल मिलाकर 2027 के चुनावों के लिए सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में दलित वोटर प्राथमिकता में हैं।
लोकसभा चुनावों के बाद संसद के पहले सत्र में जब सदस्यों को सदस्यता दिलवाई जा रही थी, तब दलितों को अपने पाले में रखने के लिए INDIA ब्लॉक के सांसद लगातार संदेश दे रहे थे। फैजाबाद से सांसद चुने गए अवधेश प्रसाद को अखिलेश अपने बगल में बैठाए, लोकसभा की सीढ़ियों पर उनका हाथ पकड़े दिखाई दिए। जबकि कांग्रेस अपने हाथों में संविधान की किताब पकड़े दिखाई दी। इन सभी का कुल जमा संदेश इतना ही था कि वे संविधान बचाने के अपने वादे पर अडिग हैं। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, आने वाले दिनों में जल्द ही दलितों को जोड़ने के लिए कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे। 90 के दशक तक दलित कांग्रेस का ही वोटर हुआ करता था, लेकिन इसके बाद से वह छिटक गया। अब इस लोकसभा चुनाव में जब वह लौटा है तो उसे पार्टी से जोड़े रखने के लिए प्रयास और तेज किए जाएंगे। जबकि सपा अपने पीडीए के नारे को और ताकत देने की तरफ बढ़ेगी। अवधेश प्रसाद जिस तरह से सपा के पीडीए का चेहरा बनाए जा रहे हैं, उसमें पार्टी अपने लिए आने वाले समय में भी करिश्माई नतीजों की उम्मीद कर रही है।
समीक्षा के बाद नेता वापस लाने की करेंगे कोशिश
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि संविधान बचाने का जो प्रोपेगेंडा फैलाया गया था, उससे दलित भ्रमित हुआ था। पार्टी में बड़े पैमाने पर समीक्षा बैठकें की जा रही हैं। इसमें जाना जा रहा है कि कौन-कौन वर्ग किन वजहों से नाराज था। समीक्षा बैठकों दौर पूरा होने के बाद पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता हर वर्ग में उनकी नाराजगी दूर करने जाएंगे। जाहिर है कि इसमें दलित भी होंगे। हम सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास में यकीन रखते हैं। यही हमारी पार्टी की विचारधारा है।
बसपा पहुंचेगी दलितों के पास, करेगी मनुहार
बसपा प्रमुख मायावती ने हाल ही में पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी। आकाश आनंद को दोबारा नैशनल को-ऑर्डिनेटर और अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के अलावा उन्होंने दलितों को पार्टी से जोड़ने की मुहिम तेज करने के निर्देश दिए थे। मायावती ने दलित बस्तियों में उनके बीच जाकार पार्टी से दोबारा जोड़ने, अपने लिए किए जा रहे अनर्गल आरोपों को दूर करने समेत अन्य काम करने के लिए कहा है। सूत्र बताते हैं कि जल्द ही पार्टी इस दिशा में काम शुरू कर देगी।
सौजन्य: नव भारत टाइम्स
नोट: यह समाचार मूल रूप से navbharattimes.indiatimes.com में प्रकाशित हुआ है और इसका उपयोग केवल गैर-लाभकारी/गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया गया था, विशेष रूप से मानवाधिकारों के लिए।