तमिलनाडु: स्कूली छात्रों में जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए जाति-सूचक नाम, पहचान हटाने की सलाह.
अगस्त 2023 में, तमिलनाडु सरकार ने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के. चंद्रू से सरकार को जातिगत हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए सुझाव देने के लिए कहा था, जब तिरुनेलवेली जिले के एक स्कूल में छात्रों के एक समूह द्वारा अनुसूचित जाति के दो बच्चों पर हमला किया गया था।
नई दिल्ली: तमिलनाडु में स्कूली बच्चों में जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए न्यायमूर्ति के. चंद्रू की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय समिति ने मंगलवार (18 जून) को राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस रिपोर्ट में प्रमुख सिफारिश सभी सरकारी और निजी स्कूलों के नामों से जाति-सूचक शब्दों को हटाने और सामाजिक समावेश के लिए विशेष कानून बनाने की है।
मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के. चंद्रू द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में राज्य में स्कूल और कॉलेज के छात्रों के बीच जाति-आधारित हिंसा को रोकने के उपाय सुझाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि सरकार को बच्चों की जाति उजागर करने वाली पहचान पर तुरंत रोक लगानी चाहिए और सामाजिक समावेश की नीति को लागू करने के लिए कानून लाना चाहिए। मालूम हो कि पिछले साल अगस्त में सरकार ने तिरुनेलवेली जिले के एक स्कूल में छात्रों के एक समूह द्वारा अनुसूचित जाति के दो बच्चों पर हमला किए जाने के बाद हिंसा को रोकने और सरकार को सुझाव देने के लिए मद्रास हाईकोर्ट के जज के चंद्रू को नियुक्त किया था।
जस्टिस चंद्रू ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उन्होंने इस रिपोर्ट के लिए तिरुनेलवेली, मदुरै और कोयंबटूर समेत कई जिलों का दौरा किया और 2,742 लोगों से जवाब लिए। इसमें आम लोग, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी, एनजीओ से जुड़े लोग शामिल हैं। हालांकि, उन्हें इस मामले में किसी शिक्षक संघ या छात्र संगठन से कोई जवाब नहीं मिला है। उनकी 18 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘छात्रों को कलाई पर किसी भी तरह का धागा बांधने, अंगूठी पहनने या माथे पर कोई निशान (तिलक आदि) लगाने समेत अन्य जाति-आधारित पहचान चिह्नों से रोका जाना चाहिए। अगर इन नियमों का पालन नहीं किया जाता है तो उनके माता-पिता या अभिभावकों को सलाह देने के अलावा उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। सामाजिक न्याय छात्र बल (एसजेएसएफ) की स्थापना की जानी चाहिए
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्य सरकार को एक सामाजिक न्याय छात्र बल (एसजेएसएफ) की स्थापना करनी चाहिए, जिसमें ‘सभी समुदायों के छात्र’ शामिल हों और सामाजिक बुराइयों से लड़ने के प्रयासों में एकजुट हों।
इस रिपोर्ट में स्कूलों के लिए भी कई सिफारिशें की गई हैं। इसमें कहा गया है कि ‘कल्लर रिक्लेमेशन’, ‘आदि द्रविड़ कल्याण’ जैसे शब्द, जो सीधे जाति की पहचान करते हैं, सभी स्कूलों के नामों से हटा दिए जाने चाहिए। मौजूदा निजी स्कूलों को भी जाति आधारित नाम हटाने चाहिए और ऐसा न करने वाले स्कूलों के खिलाफ सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।
इसके अलावा, अगर कोई शैक्षणिक एजेंसी नया स्कूल खोलना चाहती है, तो स्कूल शुरू करने की अनुमति की शर्तों में यह शर्त भी शामिल होनी चाहिए कि स्कूल के नाम में कोई जाति संबंधी शब्द नहीं होगा।
समिति ने स्कूलों को दान देने वालों के जाति संबंधी नाम हटाने की भी बात कही है।
अपनी दीर्घकालिक सिफारिशों में, रिपोर्ट में सरकार को सामाजिक समावेश की नीति लागू करने और जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए सभी छात्रों को नियंत्रित करने वाला एक अलग कानून बनाने का सुझाव दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “इस कानून में छात्रों, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के साथ-साथ संस्थानों के प्रबंधन पर कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ लगाई जानी चाहिए और इन निर्देशों का पालन न करने पर पर्यवेक्षण, नियंत्रण और दंड के लिए एक तंत्र निर्धारित किया जाना चाहिए।” रिपोर्ट में शिक्षकों के लिए भी सिफारिशें की गई हैं। इसमें सुझाव दिया गया है कि नियुक्त स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी, जैसे शिक्षा अधिकारी, क्षेत्र की प्रमुख जाति से नहीं होने चाहिए। साथ ही, शिक्षकों को छात्रों को उनकी जाति से सीधे या परोक्ष रूप से संबोधित नहीं करना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है, “शिक्षक भर्ती बोर्ड (टीआरबी) को शिक्षकों की योग्यता के साथ-साथ उनकी भर्ती करते समय सामाजिक न्याय के मुद्दों के प्रति उनके दृष्टिकोण का पता लगाना चाहिए और भर्ती के लिए इसे ध्यान में रखना चाहिए।” शिक्षकों को सत्र शुरू होने से पहले विभिन्न कानूनों की जानकारी होनी चाहिए समिति की सिफारिश के अनुसार, ‘सामाजिक मुद्दों, जातिगत भेदभाव और यौन हिंसा-उत्पीड़न, ड्रग्स, रैगिंग और दलितों के खिलाफ अपराधों से संबंधित विभिन्न कानूनों के बारे में प्रत्येक सत्र की शुरुआत से पहले सभी स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए एक अनिवार्य अभिविन्यास कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए। उन्हें उन कानूनों का उल्लंघन करने के परिणामों के बारे में भी बताया जाना चाहिए।’
रिपोर्ट में वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) के बारे में नियम बनाने का भी सुझाव दिया गया है। सिफारिश में कहा गया है कि अधिकारियों और प्रधानाध्यापकों के एसीआर में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के प्रति उनके रवैये को दर्ज करने के लिए एक कॉलम शामिल किया जाना चाहिए, साथ ही इन रिकॉर्डों को बनाए रखने के लिए उचित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, राज्य को सरकारी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए वैधानिक रूप से आचार संहिता निर्धारित करनी चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षक बनने के लिए योग्यता प्राप्त करने वाले बी.एड. (बैचलर ऑफ एजुकेशन) डिग्री के लिए तमिलनाडु शिक्षक शिक्षा विश्वविद्यालय (टीएनटीईयू) द्वारा तैयार पाठ्यक्रम, साथ ही तमिलनाडु बोर्ड ऑफ स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (टीएनएससीईआरटी) द्वारा तैयार डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन के पाठ्यक्रम को समावेशी सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से संशोधित किया जाना चाहिए।
शिक्षकों की एक विशेषज्ञ समिति को स्कूली छात्रों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम की समीक्षा करनी चाहिए और पूर्वाग्रह को खत्म करने और सामाजिक न्याय मूल्यों, गैर-भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण और समानता की अवधारणाओं को बढ़ावा देने वाली सामग्री को शामिल करने के लिए सुझाव देना चाहिए।
स्कूल कल्याण अधिकारी का पद सृजित करें
सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने राज्य सरकार को रैगिंग, नशीली दवाओं के खतरे, यौन उत्पीड़न और जाति भेदभाव से संबंधित अपराधों के मुद्दों पर स्कूलों के कामकाज की निगरानी करने और कानून के अनुसार इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए स्कूल कल्याण अधिकारी (एसडब्ल्यूओ) का पद सृजित करने की भी सिफारिश की है। रिपोर्ट में न्यायमूर्ति चंद्रू ने कहा है कि चूंकि जातिगत भेदभाव का मुद्दा छात्र परिसरों से आगे तक फैला हुआ है और इसे सामाजिक स्तर पर हल करने की जरूरत है, इसलिए समिति सरकार को सलाह देती है कि वह जाति उन्मूलन और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक स्तर पर इस मुद्दे को हल करने के लिए उचित कदम उठाए।
सौजन्य: हिंदी समाचार