बेलावाड़ी मल्लम्माः महिला सैनिकों की सैन्य टुकड़ी बनाने वाली पहली रानी|
रानी बेलावाड़ी मल्लम्मा एक कुशल योद्धा थीं और उन्होंने युद्ध के मैदान में विशाल सेना के सामने भी मोर्चा संभाले रखा। रानी मल्लम्मा ने लगभग एक महीने चले युद्ध में छत्रपति शिवाजी की विशाल सेना का सामना किया और अंतिम समय तक युद्ध के मैदान में डटी रही।
इतिहास में हमने अनेक महापुरुष और राजाओं के कौशल और वीरता की कहानियां पढ़ी हैं। हमारे ही इसी इतिहास में अनेक ऐसी वीरांगना भी हुई है जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के अपने जान तक की भी परवाह नहीं की। इतिहास में दर्ज ऐसे नामों की एक लंबी सूची है। इन्हीं नामों में से एक हैं रानी मल्लम्मा। उन्हें इतिहास में पहली रानी होने का श्रेय दिया जाता है जिन्होंने एक महिला सेना का निर्माण और प्रशिक्षण दिया था। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें ‘योद्धा रानी’ के नाम से भी याद किया जाता है। रानी मल्लम्मा एक निडर योद्धा थीं जिनके साहस के सामने बड़े योद्धाओं ने हार मानी।
कौन थीं रानी मल्लम्मा
रानी मल्लम्मा, सोधे के राजा मधुलिंगा नायक की बेटी थी। सोधे राज्य वर्तमान समय में उत्तर कन्नड़ और दक्षिणी गोवा के भाग में आता है। मल्लम्मा को उनके भाईयों के साथ शिक्षा के साथ-साथ युद्ध कला का भी प्रशिक्षण दिया गया था। वह घुड़सवारी, भाला फेंक और तीरंदाजी में भी कुशल प्रशिक्षण हासिल किया था। उन्हें यह शिक्षा उनके गुरु शंकर भट्ट से मिली थी। शिक्षा पूरी होने के बाद उनके विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। उनकी शादी बेलावाड़ी के राजा ईशप्रभु से हुई थी। शादी के बाद वह अपने पति के साथ राज्य के प्रशासनिक कार्यों में मदद करती थी। साथ ही उन्होंने राज्य में महिलाओं की एक सेना तैयार की थी। इस सैन्य टुकड़ी में 5000 हजार महिलाएं शामिल थीं। महिलाओं की यह सबसे पहली सैन्य टुकड़ी थी।
राज्य के मवेशियों को मराठा सेना से वापस लाने के लिए रानी मल्लम्मा अपनी महिला सैनिकों के साथ मैदान में गई थीं। कुछ समय में उनकी सेना ने दस से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और 200 से ज्यादा सैनिकों को घायल कर दिया। इसके बाद रानी मल्लम्मा मवेशियों को वापस लेकर लौटीं।
छत्रपति शिवाजी के ख़िलाफ़ युद्ध के मैदान में
रानी बेलावाड़ी मल्लम्मा एक कुशल योद्धा थीं और उन्होंने युद्ध के मैदान में विशाल सेना के सामने भी मोर्चा संभाले रखा। रानी मल्लम्मा ने लगभग एक महीने चले युद्ध में छत्रपति शिवाजी की विशाल सेना का सामना किया और अंतिम समय तक युद्ध के मैदान में डटी रही। शिवाजी के बेलावाड़ी राज्य से हुए युद्ध का उद्देश्य सत्ता या शासन की इच्छा नहीं थी बल्कि कुछ मराठी सैनिकों के बेलावाड़ी राज्य के किसानों से किये दुर्व्यवहार के कारण हुआ। दरअसल, 1674 में शिवाजी ने खुद को एक स्वतंत्र राज्य का राजा घोषित कर दिया था। उसी दौरान दक्कन में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद शिवाजी ने 1676 में खानदेश, पोंडा, कारवार, कोल्हापुर और अथानी के क्षेत्रों को मराठा साम्राज्य में शामिल कर लिया। इसके बाद शिवाजी ने हैदराबाद में गोलकुंडा सल्तनत के कुतुब शाह के साथ एक संधि की थी। आगे उन्होंने तमिलनाडु के वेल्लोर और जिंगी किले पर भी मराठा ध्वज लहराया।
उसी समय नवंबर 1677 में तंजावुर जागीरका मामला निपटाने के बाद शिवाजी वापस लौटने लगे। जनवरी 1678 में मराठा सैनिकों की टोली तुंगभद्रा नदी को पार कर कोप्पल और गदग से होते हुए लक्ष्मेश्वर पहुंची। यहां स्थानीय रियासतों ने बिना किसी प्रतिरोध के शिवाजी के सामने समर्पण कर दिया। इसी दौरान मराठा सैनिकों ने आराम करने के लिए बेलावाड़ी के यादवाड़ गाँव में डेरा डाला। कर्नाटक में भी तेजी से शिवाजी की ख्याति बढ़ रही थी। बेलवाड़ी के राजा ईशप्रभु भी शिवाजी की प्रशंसक थे। इसी कारण मराठा सैनिकों और शिवाजी के स्वागत के लिए तैयारी कर रहे थे लेकिन मराठा सैनिकों के द्वारा उनके राज्य के किसानों के साथ किये गये अनुचित व्यवहार ने बेलावाड़ी सेना को आमने-सामने खड़ा कर दिया।
शिविर के दौरान मराठा सैनिकों को दूध की कमी हुई और उन्होंने स्थानीय किसानों से दूध और दूध उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाने की मांग की लेकिन किसानों ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें नियमित ग्राहकों को भी दूध देना होता है। इस कारण उनके पास अतिरिक्त दूध नहीं बचता है। किसानों के इस उत्तर से सैनिक नाराज हो गये और रात में किसानों के मवेशी चुरा लिए। अगली सुबह किसानों ने इसकी शिकायत राजा ईशप्रभु से की। राजा ने मवेशियों को वापस लाने के लिए अपने सेनापति को मराठा सैनिकों के पास भेजा। लेकिन मराठा सैनिकों ने उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया। जिसके बाद मराठा सैनिकों और बेलावाड़ी के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
युद्ध के मैदान में किया डटकर सामना
राज्य के मवेशियों को मराठा सेना से वापस लाने के लिए रानी मल्लम्मा अपनी महिला सैनिकों के साथ मैदान में गई थीं। कुछ समय में उनकी सेना ने दस से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और 200 से ज्यादा सैनिकों को घायल कर दिया। इसके बाद रानी मल्लम्मा मवेशियों को वापस लेकर लौटीं। मराठा सैनिकों की हार और उनके दुर्व्यवहार की सूचना शिवाजी तक भी पहुंची जिसके बाद छत्रपति ने सैनिकों के दुर्व्यवहार पर उन्हें फटकार लगाई। हालांकि महिला सैनिकों से मिले हार ने मराठा सैनिकों की साख को चोट पहुंचाई थी। मराठा सेना की साख और प्रतिष्ठा को वापस लाने के लिए शिवाजी ने अपने सेनापति दादाजी को बेलावाड़ी से युद्ध करने के आदेश दिए। 15 दिनों तक चले इस युद्ध में राजा ईशप्रभु की मृत्यु हो जाती है। जिस समय यह ख़बर रानी मल्लम्मा को मिली उनकी गोद में चार माह का बच्चा था लेकिन उन्होंने तुरंत ही युद्ध की कमान अपने हाथों में ली।
रानी मल्लम्मा ने अपनी महिला सैनिकों के साथ बड़े ही साहस के साथ मराठा सैनिकों का मुकाबला किया। जो मराठा सैनिक मुगल सेना पर भारी थे आज एक महिला योद्धा को हराने के लिए संघर्ष करते दिख रहे थे। रानी मल्लम्मा और मराठा सैनिकों के बीच लगातार 27 दिन से अधिक समय तक युद्ध चला हालांकि बाद में युद्ध में रानी की हार हुई थी। मराठा सैनिकों ने रानी मल्लम्मा का अपमान भी किया। इसके बाद वे उन्हें पकड़कर शिवाजी महाराज के पास ले गये। रानी ने शिवाजी के सामने मराठा सैनिकों द्वारा किये व्यवहार की साहसपूर्वक घोर निंदा की। जिसके बाद शिवाजी ने उनसे माफी मांगी और उनका राज्य उनको लौटा दिया और साथ ही अपराधी सैनिकों को दंड भी ऐलान किया था।
शादी के बाद वह अपने पति के साथ राज्य के प्रशासनिक कार्यों में मदद करती थी। साथ ही उन्होंने राज्य में महिलाओं की एक सेना तैयार की थी। इस सैन्य टुकड़ी में 5000 हजार महिलाएं शामिल थीं। महिलाओं की यह सबसे पहली सैन्य टुकड़ी थी।
इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब तारीख-ए-शिवाजी में लिखते है कि शिवाजी ने आरोपी सैनिक सकुजी गायकवार को डांटा और दंडित किया। इतना ही नहीं शिवाजी ने उनकी एक मूर्ति भी लगवाई थी। रानी बेलवाड़ी मेल्लम्मा इतिहास में दर्ज उन नामों से हैं जिनके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती है लेकिन उनकी वीरता की कहानी प्रेरक है और भारती इतिहास में वीरांगनाओं के इतिहास को दर्शाती है। वह अपनी सेना की रक्षा के लिए हमेशा प्रतिबंद्ध रही और हर स्थिति में राज्य की रक्षा और सेना के प्रति अपने कर्तव्य को सबसे आगे रखा।
सौजन्य : फ़ेमिनिज़म इन इंडिया
नोट: यह समाचार मूल रूप सेhindi.feminisminindia.com में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था|