अदालतों की खबरें न्याय व्यवस्था पर सवाल उठा रही हैं और मीडिया यहां भी मस्त है
मुझे लगता है कि नीट का मामला बहुत बड़ा और बेहद गंभीर है। इस मामले में सरकार और शिक्षा मंत्री का रवैया उनकी गंभीरता बताता है और इससे परेशान होने वाले छात्र उनका परिवार भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को कभी भूल नहीं पायेगा। ऐसे में मीडिया में उसकी खबर नहीं होना, मीडिया के बारे में उनकी राय बनायेगा वैसे ही जैसे हमने अपने समय के मीडिया से मीडिया के बारे में राय बनाई थी। यह जानते हुए कि मीडिया से झुकने के लिए कहा गया तो रेंगने लगा था। अब लोग रेंगते हुए देख रहे हैं पर वह अलग मुद्दा है। आज की (अखबारों की) खबर यह है कि अब नीट 2024 को रद्द करने की मांग की जा रही है और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। मेरे सात अखबारों में सिर्फ नवोदय टाइम्स में यह खबर इसी शीर्षक से लीड है। मैं पहले बता चुका हूं कि नीट की खबर शिक्षा मंत्री के बयान के साथ छपी थी। जब लगा कि बयान (बचाव) में दम नहीं है तो खबर पहले पन्ने पर नहीं छपी। इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया अपवाद रहे।
आज नवोदय टाइम्स की खबर का इंट्रो है, शीर्ष अदालत की निगरानी में सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी से जांच की अपील। आप जानते हैं कि अरुणधति राय के खिलाफ 14 साल पुराने मामले में यूएपीए के तहत कार्रवाई की मंजूरी नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में दी गई है पर सरकार नीट परीक्षा में घोटाले की जांच करवाने के लिए तैयार नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि अरुणधति राय ने अपराध किया भी हो तो आम जनता को प्रभावित करने वाला नहीं है और 14 साल पहले किये गये अपराध की सजा देने की कोशिश चल रही है तो इसलिए कि वे सरकार के खिलाफ रही हैं। लिखने-बोलने में मुखर हैं। दूसरी ओर, नीट परीक्षा से हजारों छात्रों और उनके परिवार का भविष्य जुड़ा हुआ है। परीक्षा देने वालों की इस हालत से भविष्य में परीक्षा देने वाले, इस परीक्षा और शिक्षा के प्रति हतोत्साहित होंगे। बच्चों का करियर प्रभावित होता रहेगा। सरकार की छवि, कार्यशैली, प्रशासन और योग्यता से जुड़ा मामला तो है ही।
सरकार अपनी छवि के लिए अरुणधति राय के खिलाफ कार्रवाई चाहती है लेकिन नीट मामले में कार्रवाई करके खुद को निष्पक्ष, व्यावहारिक और कार्यकुशल बताने की जरूरत नहीं समझती है। इसका कारण जो हो और मीडिया का सहयोग भी हो तो जो पीड़ित हैं वो समझ रहे हैं और नहीं भी समझ रहे हैं तो भविष्य में समझेंगे ही। खासकर तब जब रोहित वेमुला की मौत, कन्हैया को फंसाया जाना और शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे मनीष सिसोदिया का जेल में होना जैसे मामलों को जोड़कर देखा, समझा और समझाया जायेगा। देश की शिक्षा नीति, शिक्षा मंत्रियों का चयन और उनके कार्य व योग्यता, जेएनयू से लेकर दूसरे विश्वविद्यालय का हाल, हावर्ड से हार्डवर्क को बेहतर बताने की हिमाकत, पाठ्यक्रम में संशोधन, फर्जी डिग्री वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई में भेदभाव, पाठ्यपुस्तकों से कहानी हटाये जाने आदि को देखने, झेलने और करीब से जानने वाले बच्चे जब बड़े होंगे तो उनके मन में भाजपा को लेकर वो संशय नहीं रहेगा जो हमारे समय के बच्चों में आरएसएस को लेकर था।
मुझे लगता है कि इन बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा होगी और इन्हें कांग्रेस के खिलाफ भड़काना भी मुश्किल होगा। झूठ बोलने की पोल तो अभी ही खुल चुकी है अन्ना हजारे का उदाहरण भी अब सार्वजनिक है। ऐसे बच्चे जब देश में कुछ कर सकने की स्थिति में आयेंगे तो भाजपा का क्या होगा इसकी कल्पना अभी नहीं की जा सकती है। कहने की जरूरत नहीं है इस सरकार की योग्यता, कार्यशैली आदि से प्रभावित लोगों का एक बड़ा वर्ग वोटर होगा तो वह 2014 से पहले की सरकार को न भी याद करे तो अपनी सरकार से पर्याप्त दुखी रहेगा। सही पार्टी समूह को वोट देने के बारे में सोचेगा तो उसे इंडी गठबंधन और इंडिया को भारत कर दिये जाने की नीचता समझ में आयेगी और वह समझ सकेगा कि संघ परिवार और मीडिया के बड़े वर्ग के साथ भक्तों ने किसका समर्थन किया और नतीजे में उन्हें क्या मिला।
जो भी हो, यह सब बाकी लोग नहीं समझें, मीडिया वाले नहीं समझ रहे हैं और नीट मामले को महत्व नहीं दे रहे हैं यह इस समय का शर्मनाक सच है। नवोदय टाइम्स ने नीट के खिलाफ प्रदर्शन की पटना की फोटो लगाई है। और संबंधित दो खबरें इसके साथ छापी है। एक का शीर्षक है, ईओयू (आर्थिक अपराध शाखा) ने 9 (और) छात्रों को बुलाया, अब तक 14 और गिरफ्तार। दूसरी खबर का शीर्षक है, छात्रों ने प्रदर्शन किया, पुतला फूंका। अमर उजाला में यह दूसरे पहले पन्ने पर डबल कॉलम की खबर है। शीर्षक है, “नीट रद्द करने व कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की एक और याचिका”। उपशीर्षक है, “20 परीक्षार्थी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, कहा – इससे योग्य छात्रों को ही प्रवेश”। कहने की जरूरत नहीं है कि उपशीर्षक अटपटा लग रहा है और ‘इससे योग्य छात्रों को ही प्रवेश’ कहने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी इसमें कुछ गलत नहीं है और व्यवस्था ऐसी ही होनी चाहिये। खबर पढ़ने से पता चला कि याचिका में मांग की गई है कि दोबारा परीक्षा कराई जाये और ठीक से परीक्षा होगी तभी सिर्फ योग्य छात्रों का प्रवेश होगा। (संजय कुमार सिंह )
नीट के प्रश्नपत्र लीक होने के सबूत
टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर डबल कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, बिहार पुलिस ने छात्रों को समन किया, कहा (प्रश्नपत्र) लीक के सबूत हैं। जिन छात्रों को समन किया गया है वे यूपी, महाराष्ट्र और बिहार के हैं। इन्हें एक विस्तृत जांच में शामिल होने के लिए समन किया गया है। अखबार ने लिखा है कि ये नोटिस तब आये हैं जब देश भर में विरोध चल रहे हैं और सरकार नीट की पवित्रता से संबंधित आशंकाओं को कम करने के प्रयास में लगी हुई है। आप जानते हैं कि मोदी राज में सीबीआई और एनआईए जांच के आदेश एकतरफा दिये जाते रहे हैं। यहां तक की रेल दुर्घटना की जांच भी सीबीआई से करवाई गई है (क्या निकला राम जानें)। यही नहीं, पश्चिम बंगाल सरकार ने तो सीबीआई जांच का बाकायदा विरोध भी किया है। ऐसे में मांग, प्रदर्शन और सुप्रीम कोर्ट में याचिका के बावजूद सीबीआई जांच के आदेश नहीं देने का कारण समझना मुश्किल नहीं है।
गुजरात मॉडल
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर उल्लेखनीय है। इसके अनुसार, राजकोट के एक खेल क्षेत्र में आग लगने के कुछ दिन बाद अधिकारियों ने खुद को बचाने के लिये रजिस्टर में फर्जीवाड़ा किया। आप जानते हैं कि 25 मई को राजकोट के टीआरपी गेम जोन में आग लग जाने से 27 लोगों की मौत हो गई थी। अब पता चला है कि इस मामले में निलंबित राजकोट नगर निगम के टाउन प्लानर और अन्य अधिकारियों ने पहले की तारीख से प्रविष्टियां कीं जिससे यह दिखाया जा सके कि गेम जोन ने नियमित अनुमति के लिये आवेदन किया था और विभाग ने जवाब मांगे थे। जो भी हो, गुजरात मॉडल का बड़ा नाम था और अब जब वह देश भर में लागू हो चुका है, दस साल गुजर गये, तीसरा कार्यकाल चल रहा है तो उसका सच सामने आ रहा है पर खबरें नहीं छप रही हैं। राजकोट से यह इंडियन एक्सप्रेस की एक्सक्लूसिव खबर है। ज्यादातर अखबारों में सरकारी प्रचार या रूटीन की खबर ही रहती हैं।
दिल्ली में पानी संकट
यही नहीं, दिल्ली में पानी का संकट है। मुख्यमंत्री जेल में हैं और मंत्री आतिशी ने हरियाणा सरकार से मानवीय आधार पर पानी छोड़ने की मांग की है और कहा है कि वजीराबाद में कोई पानी नहीं बचा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार, इससे दिल्ली के लिए पानी की और कमी हो गई है। मंत्री ने इस संबंध में दिल्ली जल बोर्ड और शहरी विकास मंत्रालय के अधिकारियों के साथ एक बैठक की। अमर उजाला की पहले पन्ने की एक खबर का शीर्षक है, केजरीवल से जुड़े शराब घोटाले की सुनवाई की रिकार्डिंग हटाने के निर्देश। उपशीर्षक है, हाईकोर्ट ने पत्नी सुनीता, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जारी किया नोटिस। पूरी खबर पढ़कर मुझे यह समझ में नहीं आया कि इस आदेश का आधार क्या है। वैध रिकार्डिंग सार्वजनिक नहीं हो सकती है या रिकार्डिंग वैध (सही) नहीं है या कॉपीराइट का मामला है।
नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर खबर है, “दिल्ली को 139 एमजीडी पानी देने के लिए तैयार है हिमाचल प्रदेश आतिशी”। आप समझ सकते हैं कि इस गर्मी में जब पानी का संकट है, मुख्यमंत्री जेल में हैं और दिल्ली सरकार हरियाणा से मानवीय आधार पर पानी देने की मांग कर रही है और हिमाचल प्रदेश देने को तैयार है तो खबर क्या होनी चाहिये या क्या है। अगल-अलग जो छपी है वह तो खबर नहीं ही है और जनता की सूचना के लिए जो जरूरी है वह भी पहले पन्ने पर नहीं है।
अदालतों के आदेश
आजकल अदालतों के आदेश भी अजीबो गरीब आ रहे हैं। कायदे से खबर होनी चाहिये कि एक मामले में एक अदालत ने एक आदेश दिया तो वैसे ही मामले में दूसरी अदालत ने क्या आदेश दिया। उदाहरण के लिए रजत शर्मा ने कांग्रेस प्रवक्ता को गाली दी, उसका वीडियो सोशल मीडिया पर था कल खबर थी कि अदालत ने उसे हटाने का आदेश दिया है। खबरों से मुझे यह तो समझ में आया कि यहां अदालत ने इसका कारण कापी राइट का उल्लंघन बताया है लेकिन खबर के सबूत के रूप में वीडियो जब स्रोत के नाम से हो तो कॉपी राइट का उल्लंघन कहां हुआ या हुआ तो अदालत ने क्या दिक्कत मानकर हटाने का आदेश दिया – यह सब खबर से समझ नहीं आया। संबंधित एंकर, संपादक और मालिक भाजपा समर्थक हैं तो कोई भी समझेगा कि फैसला उनके हित में है और आधार की जरूरत नहीं है। पर पत्रकारिता यह नहीं है। दिलचस्प यह है कि संबंधित एंकर ने भी अदालत का आदेश ट्वीट करते हुए मामले को स्पष्ट नहीं किया है। उन्होंने मामले को और उलझा दिया है। लिखा है, “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य ही मेरा भगवान है। अहिंसा उसे साकार करने का साधन है” – महात्मा गांधी।
पूर्व मुख्यमंत्री ऐरा गैरा नहीं!
यही नहीं, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा नेता बीएस येदुरप्पा के खिलाफ पॉस्को का मामला है। कल खबर थी कि उन्हें हाईकोर्ट ने राहत दे दी है और केस में जारी वारंट पर रोक लगा दी गई है। जनसत्ता की एक खबर के अनुसार ‘वह कोई टॉम, डिक या हैरी नहीं…’ पूर्व मुख्यमंत्री हैं। पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसा नहीं माना है। पॉस्को मामला बड़ा ही गंभीर होता है लेकिन उसमें भाजपा नेता बृजभूषण सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हुई तो क्या अदालतों के फैसले पर एक खबर नहीं होनी चाहिये? मुझे लगता है कि अदालती फैसलों की साख बनाये रखने के लिए और अगर ऐसा नहीं है तो जनहित में (असल में मुख्यमंत्रियों और राजनीति और देश हित में) मीडिया का काम है कि वह जनता को वास्तविकता बताये। इस गडबड़ झाले से निकाले पर ऐसा अखबारों में नहीं है।
पोर्श मामले में दो सदस्यों को नोटिस
हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर खबर है कि डबल इंजन वाले महाराष्ट्र के पुणे शहर में पोर्श कार से एक बच्चे द्वारा दो लोगों को कुचल कर मार दिये जाने के मामले में महाराष्ट्र महिला और बाल विकास विभाग ने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी या बाल न्याय बोर्ड) के दो सदस्यों को नोटिस जारी कर प्रक्रिया में चूक और गलत आचरण पर जवाब मांगा है। मेरा मानना है कि “ना खाउंगा ना खाने दूंगा” को अगर गंभीरता से लागू किया गया होता तो इस तरह के मामले होते ही नहीं पर इतने हैं कि गिने नहीं जा सकते। दूसरी ओर, इसके प्रचार का ही असर है कि तीसरा कार्यकाल मिल गया और नायडू नीतिश का समर्थन मिल रहा है। मेरा मुद्दा यह है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने अगर (भाजपा के) पूर्व मुख्यमंत्री के मामले में कहा है कि, बीएस येदियुरप्पा पूर्व मुख्यमंत्री हैं और उनके भागने की संभावना नहीं है तथा वे ऐरे-गैरे नत्थू खैरे नहीं हैं तो दिल्ली के मुख्यमंत्री के जेल में होने का कारण तो स्पष्ट होना चाहिये।
अदालत करे या मीडिया – किसी और को करना हो तो यह व्यवस्था की गड़बड़ी है और वह भी खबर है। लेकिन मुख्य धारा के मीडिया में इसपर कोई चर्चा सुनी? पर खबर नहीं क्यों नहीं है। कोचिंग की जरूरत, परीक्षा के डर से आत्महत्या, बेरोजगारी, अग्निवीर के बाद अब नीट घोटाला – इस सरकार और इसके मुखिया की अदूरदर्शिता तथा अयोग्यता का ही नजारा है। मीडिया न बताये पर लोग तो पता कर ही लेते हैं। नेता मार्गदर्शक मंडल में जाते रहेंगे। भविष्य में चुनाव पार्टी को लड़ना है और ढंग का नेता आगे लाना ही पड़ेगा। लाख करोड़ (अभी तीस लाख करोड़ और उससे पहले 20,000 करोड़) का घोटाला ऐसे ही चलता रहा तो भले कुछ समय लगे, देश कांग्रेस मुक्त होते-होते भाजपा मुक्त हो सकता है। अब अगर संघ पर प्रतिबंध लगेगा तो पहले की तरह खत्म नहीं होगा।
खबर से बड़ा खंडन
यह सब आम आदमी को समझ में नहीं आये यह संभव है लेकिन संपादकों, पत्रकारों और मीडिया मालिकों को नहीं आये ऐसे भी रॉकेट साइंस नहीं है। ऐसे में मीडिया का पक्षपात मुझे नहीं समझ में आ रहा है। द हिन्दू में आज एक खबर केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी के अपने बयान से मुकरने की है। उन्होंने गुजरात की एक विदेशी सेमीकंडक्टर यूनिट को प्रति नौकरी तीन करोड़ रुपए सबसिडी दिये जाने का अपना बयान वापस ले लिया है और कहा है कि उन्हें अपने मंत्रालय को बेहतर समझने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें गलत कोट किया गया है और भविष्य में सतर्क रहने की जरूरत है। खबर में यह नहीं है कि उन्होंने कहा कि सबसिडी नहीं दी जाती है, कम दी जाती है या यह प्रति नौकरी 3.2 करोड़ रुपए से कम है या यह राशि जायज है। कल की खबर में कंपनी का नाम भी था। इससे आप मामला समझ सकते हैं। पहले ऐसी खबरें सिंगल कॉलम में कहीं कोने में छाप कर औपचारिकता की जाती थी अब मूल खबर से बड़ा खंडन है।
द टेलीग्राफ
अभी हाल तक यह मेरा पसंदीदा अखबार होता था। शुरू हुआ था तबसे प्रशंसक हूं। पर संपादक बदलने के बाद बिल्कुल बदल सा गया है और पहले का शायद कुछ भी नहीं है। आज पहले पन्ने की इसकी खबरों में लीड का शीर्षक है, जम्मू और कश्मीर के पुलिस प्रमुख ने कहा, हमपर युद्ध थोपा जा रहा है। दूसरी खबर है, भाजपा में यह पता नहीं चलता कि कौन किस पद पर आयेगा। पार्टी अध्यक्ष की दौड़ में कुछ डार्क हॉर्स हैं। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी ने विवाद की खबरों के बीच एकजुटता दिखाई। संसद भवन के पास बनी मूर्तियों को हटाए जाने की खबर कई दिनों बाद आज पहले पन्ने पर बॉटम है। फ्लैग शीर्षक है, विपक्ष को इसमें नापाक इरादे दिख रहे हैं। मुख्य शीर्षक है नई संसद में ‘रखे’ हैं। असल में आधिकारिक तौर पर यही कहा गया है कि मूर्तियां नए भवन परिसर में नये सिरे से लगाई जाएंगी पर लगाई नहीं गई हैं। हालांकि मूर्तियां हटाने का फैसला कैसे किसने लिया यह भी रहस्य है और अखबारों ने कायदे से कुछ नहीं बताया है। और भले मामला पुराना हो गया पर अखबारों में वैसे नहीं छपा है जैसा है।
सौजन्य :भड़ास 4 मीडिया
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