Damoh News: दमोह के बोमा गांव के बच्चों को पता ही नहीं क्या होता है टीवी? न स्कूल और न ही बनी है सड़क
देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसके बाद भी दमोह जिले का एक गांव ऐसा है जो बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। गांव में न तो स्कूल है और न ही सड़क बनी है। बच्चों को तो यह भी नहीं पता कि टीवी क्या होता है?
दमोह जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर जिले की अंतिम सीमा पर बसे बोमा गांव में विकास का नामोनिशान नहीं है। बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस गांव में न बिजली है और न ही पेयजल की कोई व्यवस्था। बच्चों के लिए स्कूल तक नहीं है। चारों ओर पहाड़ व घने जंगल से घिरे इस गांव के लोगों को शासकीय योजनाओं का भी लाभ नहीं मिलता है। गांव की आबादी महज 150 है, लेकिन जीवन बहुत दुष्कर है।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी सरकारें कहती हैं कि गांव का सर्वांगीण विकास किया जा रहा है। बोमा गांव को देखकर अंदाजा लग सकता है कि यहां तक विकास अब तक नहीं पहुंचा है। ग्रामीणों को खाने-पीने के लिए राशन की भी दुकान नहीं हैं। इस गांव में रहने वाले लोग जंगल से महुआ, तेंदूपत्ता या फिर छोटी-मोटी खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। गांव की महिलाओं को उज्जवला योजना, पीएम आवास, पीएम किसान सम्मान निधि की भी जानकारी नहीं है। यह योजनाएं इस गांव तक पहुंची ही नहीं है। गांव के ज्यादातर बच्चों को मोबाइल एवं टेलीविजन क्या होता है, इसकी भी जानकारी नहीं हैं। गेहूं पिसाने के लिए इन लोगों को छह किमी दूर बालाकोट गांव जाना पड़ता है। गांव के चारों ओर घना जंगल है। कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर का कहना है कि इस गांव की जानकारी लेंगे। वहां अब तक लोगों को सुविधाएं क्यों नहीं मिली हैं, यह दिखवाएंगे। अधिकारियों को भेजेंगे।
घरों के बाहर 4-4 फीट की लकड़ी की बल्लियों की बाड़ी लगी हुई हैं, जो सुरक्षा दीवार का काम करती है। इससे रात के समय जंगली जानवर घरों के अंदर तक नहीं पहुंच पाते। घरों में शासन द्वारा सौर ऊर्जा की प्लेट लगाई गई हैं। इससे दो सीएफएल जलते हैं। साथ ही एक बैटरी का छोटा पंखा चलता है। गांव के बच्चों ने बताया कि हमारे गांव में स्कूल ही नहीं हैं। बच्चों ने कभी टेलीविजन तक नहीं देखा। गांव के बाहर दो कमरों का सामुदायिक भवन बना है। एक खंडहर स्कूल भवन भी है। जो दस साल पहले बंद हो गया है। इसमें अब मवेशियों का डेरा रहता है। घरों के आसपास जंगल के बीच छोटे-छोटे खेत हैं। पानी न होने से अभी कोई फसल नहीं लगी है। केवल बारिश में ही धान की खेती हो पाती है।
ग्रामीण बोले हमारे बच्चे भी अशिक्षित
ग्रामीण गोमन आदिवासी ने बताया कि हमारे गांव में स्कूल नहीं हैं। जैसे हम अशिक्षित हैं, वैसे ही हमारे बच्चे भी हैं। गांव में पढ़ने के लिए स्कूल ही नहीं हैं। गांव में दो से चार बच्चे ही छह किमी दूर बालाकोट जाकर पढ़ रहे हैं, बाकी सभी निरक्षर हैं। गांव में पानी का कोई साधन नहीं है। एकमात्र हैंडपंप लगा है, उसमें भी रुक-रुककर पानी आता है। ग्रामीणों ने बताया गांव से दो किमी दूर कुएं से पानी लाना पड़ता है। उसमें भी मटमैला पानी आता है।
महुआ बीनकर चला रहे आजीविका
गांव के लोगों की आजीविका चारों ओर फैले जंगल पर ही निर्भर है। लोग महुआ बीनकर या तेंदूपत्ता तोड़कर आजीविका चलाते हैं। अब वन विभाग वाले जंगल में जाने से रोकते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि हम लोगों को सूखी लकड़ी भी नहीं लाने देते। इससे लोग दूसरे गांव या शहरों में जाकर मजदूरी करते हैं। ग्रामीणों को वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती। उज्जवला योजना का लाभ किसी को नहीं मिला। वह इस योजना के बारे में नहीं जानते। पूरे गांव में चूल्हे पर ही खाना बनाया जाता है। महिला प्रेमरानी ने बताया कि हमारे गांव की नाममात्र की महिलाओं को ही लाड़ली बहना का लाभ मिल रहा है। क्योंकि अधिकांश महिलाओं के पास दस्तावेज ही नहीं हैं।
सौजन्य :अमर उजाला
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