मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा, सामान्य कोटे में ही ईडब्ल्यूएस को मिले दस प्रतिशत आरक्षण
गत 6 मई, 2024 को लोकसभा चुनाव के बीच मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को मिलनेवाले 10 प्रतिशत आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। हाई कोर्ट के जबलपुर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने सवर्ण जाति के लोगों के द्वारा दायर याचिकाओं को निरस्त करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16(6) के तहत कुल पदों में इस वर्ग के लिए दस प्रतिशत आरक्षण की मांग गलत है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि केवल अनारक्षित पदों में से 10 प्रतिशत पद ही ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट के इस फैसले को अहम फैसला माना जा रहा है, वजह यह कि पूरे देश में यह सामान्य धारणा बन गई है कि ईडब्ल्यूएस को कुल पदों में दस प्रतिशत आरक्षण देय है। यहां तक कि मध्य प्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 19 दिसंबर, 2019 को एक अधिसूचना जारी की गई थी, इसके मुताबिक कुल पदों में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस को दिया जाने का प्रावधान था।
हाई कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ ओबीसी इम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव जी. करुणानिधि ने कहा है कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है, जिसे अखिल भारतीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए। इस संबंध में करुणानिधि ने केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को पत्र भी लिखा है, जिसमें उन्होंने यह मांग की है।
कामयाबी : पंजाब विश्वविद्यालय में ओबीसी को नौकरियों और दाखिले में मिलेगा 27 प्रतिशत आरक्षण
मामला पंजाब विश्वविद्यालय का है, जहां पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की हकमारी लंबे के समय से ही चली आ रही है। गत 28 मई, 2024 को चंडीगढ़ (केंद्र शासित प्रदेश) के अधीन आनेवाले इस विश्वविद्यालय के प्रशासन ने आखिरकार नौकरियों और दाखिले में पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का लिखित आश्वासन दिया है। हालांकि यह आश्वासन उसने तब दिया है जब जब स्टूडेंट्स फॉर सोसाइटी (एसएफएस) के आह्वान पर ओबीसी फेडरेशन, क्रांतिकारी पेंदू मजदूर यूनियन, मजदूर मुक्ति मोर्चा, डीएसओ (डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला), आइसा, सीपीआई (एमएल), यादव समाज सभा, प्रोग्रेसिव फार्मर्स एसोसिएशन, पंजाब विश्वविद्यालय के अनेक छात्र संगठनों व शिक्षकों, अधिवक्ताओं, और नागरिक समाज के सदस्यों ने गत 4 अप्रैल, 2024 से लेकर 28 मई, 2024 यानी कुल 56 दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया। इस आशय की जानकारी एसएफएस के अध्यक्ष संदीप कुमार ने दी।
फेडरेशन के महासचिव बलविंदर सिंह मुल्तानी ने बताया कि पंजाब विश्वविद्यालय में नौकरियों में ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं प्राप्त है। वहीं दाखिले में केवल 5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। यह मामला लंबे समय से चला आ रहा है। इसके लिए 21 अक्टूबर, 2011 को ही एक आदेश मानव संसाध विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय) द्वारा जारी किया गया था। इसके अलावा चार साल पहले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष भगवानलाल साहनी के संज्ञान में यह मामला लाया गया था। उन्होंने इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन को स्पष्ट निर्देश भी दिया था कि पिछड़े वर्गों को नौकरियों और दाखिले, दोनों में वाजिब 27 प्रतिशत आरक्षण मिले। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन में बैठे ऊंची जातिवालों ने इसे लगातार नजरअंदाज किया।
बलविंदर सिंह मुल्तानी के मुताबिक ओबीसी फेडरेशन के आह्वान पर एसएफएस के साथ मिलकर इसके लिए लोगों ने गोलबंद होकर विश्वविद्यालय के समक्ष लगातार प्रदर्शन किया और अब जाकर विश्वविद्यालय प्रशासन ने लिखित आश्वासन दिया है कि वे इसके लिए विधि-सम्मत कार्रवाई को आगे बढ़ाएंंगे। उन्होंने यह भी बताया कि प्रशासन ने जो आश्वासन दिया है, उसका सार यह है कि अब पंजाब विश्वविद्यालय में होने वाली सभी भर्तियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इतना ही आरक्षण दाखिले के समय छात्रों को भी मिलेगा, जो कि पूर्व में केवल 5 प्रतिशत था। इन दोनों आरक्षणों में पंजाब की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत रहेगी।
पंजाब की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत होने के बारे में पूछने पर मुल्तानी ने बताया कि पंजाब विश्वविद्यालय में पंजाब के अलावा हरियाणा, चंडीगढ़ (केंद्रशासित प्रदेश) और हिमाचल की हिस्सेदारी है। पंजाब के लिए 12 प्रतिशत का मतलब यह कि ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण में 12 प्रतिशत पंजाब प्रांत के ओबीसी के लिए लागू होंगे तथा शेष 15 प्रतिशत में अन्य प्रांतों की हिस्सेदारी होगी। बलविंदर सिंह मुल्तानी ने बताया कि पहले विश्वविद्यालय प्रशासन इस फिराक में था कि वह पंजाब प्रांत में ओबीसी को मिलनेवाले 12 प्रतिशत आरक्षण को ही आधार बनाकर विश्वविद्यालय में इसे इतने ही पर सीमित कर दे। लेकिन अब वह ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने को तैयार हो गया है।
कोलकाता हाई कोर्ट द्वारा ओबीसी प्रमाणपत्र खारिज किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी ममता सरकार
लोकसभा चुनाव के बीच पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा तब गरमाया जब कोलकाता हाई कोर्ट ने वर्ष 2010 से जारी ओबीसी प्रमाणपत्रों को खारिज कर दिया। इसे लेकर प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी ने राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधा। हालांकि राज्य सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। बताते चलें कि कोलकाता हाई कोर्ट ने उपरोक्त फैसला पसमांदा जातियों को आरक्षण दिए जाने के संबंध में तत्कालीन बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार और उसके बाद ममता बनर्जी सरकार के फैसले के संबंध में दिया। हाई कोर्ट ने इसके लिए विधि सम्मत प्रक्रिया नहीं अपनाए जाने की बात कही है।
सौजन्य :फॉरवर्ड प्रेस
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