छप्पर के नीचे परिवार, गैस भरवाने तक के पैसे नहीं और बेटे ने UPSC निकाल दिया
Pawan Kumar का UPSC में ये तीसरा अटेम्प्ट था. उन्होंने 239वीं रैंक हासिल की है. रिजल्ट की घोषणा होने के बाद से पवन और उनके परिवार के संघर्ष की कहानी की हर तरफ चर्चा है|
UPSC परीक्षा का रिजल्ट साल में एक बार आता है और तगड़ा बज रहता है. क्योंकि इसका वास्ता सिर्फ नंबर और रैंक तक सीमित नहीं होता. इसमें होती हैं कई कहानियां. कहानियां संघर्ष की जिससे सालों तक जूझ कर कोई शख्स UPSC एग्जाम फोड़ता है. ऐसी ही एक कहानी है पवन कुमार (UPSC Pawan Kumar) की जिनकी आर्थिक तंगी का आलम ये है कि परिवार के पास रहने के लिए पक्का घर तक नहीं है.
पवन कुमार की UPSC CSE 2023 में 239 वीं रैंक आई है. रिजल्ट घोषित होने के बाद उनके घर का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा. लोग उनके संघर्ष की कहानी जानना चाहते हैं. ऐसे में आजतक से जुड़े मुकुल शर्मा ने पवन के परिवार से बात की. उन्होंने बताया कि किन परिस्थितियों में पवन ने UPSC की तैयारी की और परिणाम के बाद वो कितना खुश हैं|
पवन कुमार बुलंदशहर के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले हैं. ऊपर वीडियो में छप्पर और बल्लियों से बना जो घर आपने देखा, वो उन्हीं का है. घर के आंगन की कच्ची जमीन पर दो तीन खटिया पड़ी हुई हैं. एक बरसीन काटने वाली मशीन रखी है. दो मवेशी बंधे हुए हैं.
मुकुल शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पवन के घर में बिजली तो है, लेकिन कोई आधुनिक सुख-सुविधा नहीं है. पवन के परिवार में उनकी मां, पिता और तीन बहने हैं. पिता किसानी करते हैं. मां सुमन गृहणी हैं. सबसे बड़ी बहन गोल्डी BA पास करने के बाद से एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती हैं. छोटी बहन सृष्टि अभी BA की परीक्षा दे रही हैं. और छोटी बहन सोनिया कक्षा 12 में हैं.
पवन की शुरुआती शिक्षा को लेकर उनके पिता मुकेश कुमार बताते हैं,
‘पवन की शुरुआती शिक्षा उसके ननिहाल रूपवास पचगाई गांव के एक स्कूल से हुई है. ये गांव बुलंदशहर में ही है. कक्षा एक से कक्षा 8 तक पवन इसी स्कूल में पढ़े हैं. लेकिन फिर कक्षा 9 में बुकलाना गांव स्थित नवोदय विद्यालय में उनका एडमिशन हो गया. जहां उन्होंने कक्षा 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की.’
वहीं पवन की उच्च शिक्षा और UPSC की तैयारी को लेकर पिता बताते हैं,
‘साल 2017 में 12वीं पास करने के बाद पवन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. यहां से पवन ने भूगोल और पॉलिटिकल साइंस में बीए पास किया. फिर आगे की तैयारी के लिए दिल्ली आ गए. दिल्ली के मुखर्जी नगर में दो साल तक रहे. और UPSC की कोचिंग लेकर सिविल सर्विसेज की तैयारी की. कुछ सब्जेक्ट्स की कोचिंग के लिए इंटरनेट की मदद ली. दो साल दिल्ली में रहने के बाद वो गांव आ गए और यहीं रहकर पढ़ाई पूरी की.’
पिता ने आगे बताया,
‘सभी परिवार वाले मेहनत मजदूरी कर पवन को पैसे देते थे ताकि वो अपनी पढ़ाई करता रहे. मकान में छप्पर पड़ा हुआ है. हमारे लिए तो महल भी यही है और कोठी भी यही. दो बूंद भी बारिश हो जाती है तो पानी छप्पर से नीचे आ जाता है. घर में लाइट नहीं होती थी तो मोबाइल की लाइट से पढ़ना पड़ता था क्योंकि दिया जलाने के लिए मिट्टी का तेल नहीं होता था.’
मुकेश बेटे पवन के फोन से जुड़ा एक किस्सा बताते हैं. उन्होंने कहा,
‘पवन को पढ़ने के लिए एक एंड्रॉइड स्मार्टफोन की जरूरत थी. तो सभी लोगों ने मजदूरी करके उसके लिए पैसे इक्ट्ठे किए और तब जाकर कुछ साल पहले उसे 3200 रुपये का एक सेकेंड हैंड एंड्रॉइड मोबाइल फोन दिलाया था. हमारे लिए तो ये 3200 रुपये भी लाख के बराबर थे. जिले में गैस के कनेक्शन बंट गए लेकिन हमारे सिलेंडर भरवाने के लिए 1000 रुपये भी नहीं हैं. बच्चों की पढ़ाई के लिए सिलेंडर नहीं भरवा रहे हैं. चूल्हे से काम चलाना पड़ रहा है.’
पिता ने बताया कि ये पवन का तीसरा अटेम्प्ट था. रिजल्ट के बाद उनके घर पर बधाई देने वालों की भीड़ लग गई है. पवन की बहन गोल्डी का कहना है कि पवन की सफलता से पूरा गांव खुश है.
सौजन्य :द ललनटॉप
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