स्वतंत्र पत्रकार रूपेश के परिजनों ने लगाया जेल में उत्पीड़न का आरोप, लिखी बिहार के जेल महानिरीक्षक को चिट्ठी
नई दिल्ली। स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह के परिजनों ने जेल में उनके उत्पीड़न का आरोप लगाया है। इस सिलसिले में उनकी पत्नी ईप्सा शताक्षी ने बिहार के जेल महानिरीक्षक को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने मामले में तत्काल हस्तक्षेप की गुहार लगायी है।
गौरतलब है कि रूपेश कुमार सिंह मौजूदा समय में भागलपुर स्थित शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारागार में बंद हैं। वह यहां बेऊर जेल से पिछली 23 जनवरी, 2024 को लाए गए थे। इस तरह से उन्हें यहां अभी कुल तीन महीने हुए हैं। रूपेश का मामला पटना के एनआईए कोर्ट में चल रहा है।
ईप्सा शताक्षी ने अपने पत्र में लिखा है कि “शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा भागलपुर में 11 अप्रैल, 2024 को मेरी उनसे मुलाकात हुई और उनके द्वारा जो बताया गया वह बेहद अपमाजनक और चिंतनीय है”।ईप्सा के मुताबिक रूपेश ने उन्हें बताया कि पिछले दिनों जेल के भीतर छापा पड़ा था, जेल का गेट खुला भी नहीं था कि तभी कक्षपाल मुरारी कुमार सिंह ने सामान निकाल कर रखने की बात को गाली गलौज करते हुए ही शुरू किया, उन्होंने अपशब्द के साथ धमकी दी कि ‘तुमको इतना मारेंगे, कि मारकर गा.. तोड़ देंगे ‘।
उन्होंने बताया कि इस तरह की अपमानजनक बात का विरोध करने पर वह मेरे पति से उलझ पड़े, जमादार और बाकी सिपाहियों ने बीच बचाव किया मगर कक्षपाल के गलत व्यवहार पर जेल प्रशासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया, शिकायत के लिए रूपेश ने जेलर या सुपरिटेंडेंट से मिलने की कोशिश की पर 11अप्रैल तक तो वे नहीं मिल सके थे।उन्होंने बताया कि इस जेल में बंदी आवेदन पत्र भी नहीं मिलता है। साधारण कागज में आवेदन किया गया, 11 अप्रैल तक आवेदन देने पर भी सुपरिटेंडेंट नहीं मिले।उन्होंने कहा कि यह बेहद चिंतनीय बात है कि जेल के भीतर उन्हें मारने की धमकी दी जा रही है। उन्हें अपशब्द कहकर उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाया जा रहा है। कब कौन सी घटना उनके साथ घट जाए, इस धमकी ने मुझे सशंकित कर दिया है।
ईप्सा का कहना था कि चूंकि मेरे पति रूपेश कुमार सिंह पेशे से पत्रकार रहे हैं, और मजदूर, गरीब और ज़रूरतमंद लोगों पर उनकी रिपोर्टिंग केंद्रित रही है, समाज में उनका एक सम्मानजनक स्थान रहा है, वर्तमान में भी वे विचाराधीन बंदी हैं, पर कभी इस तरह का अपशब्द व धमकी उन्हें नहीं दी गई है।उन्होंने लिखा है कि जहां तक मैं समझती हूं हमारा संविधान किसी के आत्मसम्मान पर प्रहार की पैरवी नहीं करता, अपराधी होना या आरोपी होना और उसके लिए सजा का निर्धारण अलग बात है। सिर्फ बंदी होने के कारण अपमानित होने का क्या कोई भागी बन जाता है?
उन्होंने आगे कहा कि महोदय यह भी बताना है कि मेरे पति को काफी दिनों से आंखों में समस्या है, मैंने भी पिछली मुलाकात में उनकी आंखों के रंग में अंतर देखा था जिससे काफी चिंतित थी और डाक्टर को दिखाने की बात भी कही थी, रूपेश ने जेल के अस्पताल और कैम्प में दिखाया था, तो डॉक्टर ने मायागंज रेफर किया है, पर अभी तक उनकी आंखों को नहीं दिखाया गया है।
ईप्सा के मुताबिक उनके पति ने बताया कि जेल में कोई सुविधा नहीं है, लगता है तब तक दिखाया नहीं जाएगा जब तक कि आंखों की रोशनी न चली जाए। उन्होंने बताया कि खानपान में भी जेल मैन्युअल के हिसाब से कुछ नहीं मिलता है, यहां काफी कटौती की जा रही है। दूध, मांस, अंडा यहाँ मिलता ही नहीं है, पनीर भी जेल मैन्युअल की मात्रा का आधा।
पीने का पानी जो रहता है वह भी तैलीय है, रात भर छोड़ दें तो सुबह तेल जैसी परत दिखती है।
उन्होंने कहा कि चूंकि मुलाकात का दिन 9 दिनों पर एक बार है, और एसटीडी पर बात पांच मिनट ही, 10 दिनों में दो बार है। मगर ये भी निश्चित नहीं है कि बात होगी ही, कभी कॉल ही नहीं आता कभी आवाज ही नहीं आती, ऐसे में उनके स्वास्थ्य की खबर भी नौ दिनों तक नहीं मिलेगी, ऐसे में जहां रखा गया है वहां के कक्षपाल द्वारा मारने की धमकी डरावनी है। यह हमारा मानसिक उत्पीड़न के साथ-साथ मानवाधिकार का हनन भी है।
उन्होंने पत्र के आखिर में लिखा है कि महोदय से बहुत आशा वह उम्मीद के साथ निवेदन है कि जेल के अंदर इस तरह के उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए। मेरे पति की सुरक्षा, सेहत व उचित खानपान के लिए सकारात्मक पहल किया जाए।
आशा व उम्मीद है कि जेल के अंदर सभी बंदियों के साथ गाली-गलौज, मारपीट या किसी भी तरह के उत्पीड़न पर रोक लगायी जाएगी। इसके लिए यथोचित कदम उठाया जाएगा।
सौजन्य :जनचौक
नोट: यह समाचार मूल रूप सेjanchowk.com में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था।