इलेक्टोरल बॉन्ड्स का डेटा जारी होने के बाद अब क्या कार्रवाई हो सकती है
इलेक्टोरल बॉन्ड्स से संबंधित डेटा सार्वजनिक होने के बाद कई विपक्षी पार्टियां और क़ानूनी विशेषज्ञ जांच की मांग कर रहे हैं|मांग हो रही है कि इसकी जांच होनी चाहिए कि कहीं बॉन्ड्स के बदले कोई लेन देन तो नहीं हुआ, जैसे कि केंद्र और राज्य के स्तर पर ठेका मिलना या ईडी जैसी जांच एजेंसियों की पूछताछ का बंद होना|
उदाहरण के लिए कांग्रेस पार्टी ने पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मांग की थी कि इस बात की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) गठित की जानी चाहिए कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के बादले कहीं केंद्र की ओर से कोई पक्षपात वाली कार्रवाई तो नहीं की गई.
इसके अलावा कपिल सिब्बल जैसे क़ानूनी विशेषज्ञों और एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स जैसे पारदर्शिता का अभियान चलाने वाले संगठनों ने भी इसी तरह की जांच की मांग की है|ये जांच कैसे संभव है? इसमें आगे क्या हो सकता है? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब.
उदाहरण के लिए इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, एजेंसियों की जांच का सामना कर रही 26 कंपनियों में से 16 कंपनियों ने जांच शुरू होने के बाद राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिया और छह कंपनियों ने जांच के बाद और अधिक बॉन्ड ख़रीदे|
इलेक्टोरल बॉन्ड्स के मुकदमे से जुड़े वकीलों में से एक प्रशांत भूषण के मुताबिक 33 ग्रुपों ने भारतीय जनता पार्टी को लगभग पौने दो हज़ार (1750) करोड़ रुपये चंदा दिया और इन कंपनियों को 3.7 लाख करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट मिला|
प्रशांत भूषण ने दावा किया कि 30 शेल कंपनियों ने क़रीब 143 करोड़ रुपये क़ीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड्स दिए|
एक समाचार संगठन रिपोर्टर्स कलेक्टिव के मुताबिक़, इलेक्टोरल बॉन्ड्स के ज़रिए चंदा देने वाले शीर्ष 200 दाताओं में से 16 ने अपनी कंपनियों के लगातार तीन साल तक घाटे में रहने के बावजूद इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे|
विभिन्न सेक्टरों में व्यक्तिगत भुगतानों को लेकर भी संदेह खड़े होते हैं, जैसे बैंकिंग, रीयल इस्टेट और टेलीकॉम|
कुल क़रीब साढ़े 16 हज़ार करोड़ (16,492) रुपये के ख़रीदे गए बॉन्ड्स में बीजेपी को सवा आठ हज़ार (8,252) करोड़ रुपये, कंग्रेस को क़रीब दो हज़ार (1,952) करोड़ रुपये और टीएमसी को 1705 करोड़ रुपये मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स मिले|
इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदना अपने आप में कोई ग़ैरक़ानूनी नहीं बात है, क्योंकि जब ये ख़रीदे गए थे तो यह एक वैध योजना थी|
वरिष्ठ वकील और क्रिमिनल लॉ के एक्सपर्ट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, “एक वैध स्कीम के तहत हुआ भुगतान अपने आप में भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता.”
यह क़ैरक़ानूनी तब होगा जब एक व्यक्ति या कंपनी एक पार्टी को चंदा दे और इसके बदले वो पार्टी उनके हित में कुछ करे.
लूथरा कहते हैं, “इसलिए, आपको पहले ये साबित करना होगा कि जो भुगतान हुए उसका संबंध किसी लाभ से जुड़ा है. इसके लिए या तो एक राजनीतिक पार्टी सत्ता में हो या लाभकारी फैसले करवाने की उसमें क्षमता हो.”
पारदर्शिता का अभियान चलाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज ने कहा कि “एक विस्तृत जांच” करानी होगी क्योंकि “कोई भी ये नहीं कहने जा रहा कि उन्होंने किसी ग़लत काम के लिए बॉन्ड दिए या स्वीकार किए.”
वो कहती हैं कि इन चीजों की जांच की जानी चाहिए कि कहीं केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कंपनियों को बॉन्ड्स ख़रीदने के लिए तो नहीं किया गया, या कहीं उन कंपनियों या व्यक्तियों ने बॉन्ड तो नहीं खरीदे जिनसे पूछताछ हो रही थी और इसके बाद उनके ख़िलाफ़ लगे मामले ठंडे बस्ते में तो नहीं डाल दिए गए या वापस ले लिये गए.
अंजली भारद्वाज ने जोड़ा कि लेन देन के आरोपों को भी देखे जाने की ज़रूरत है, जैसे क्या बॉन्ड्स ख़रीदने के बदले कॉन्ट्रैक्ट दिए गए थे.
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज
जांच के दो तरीके हो सकते हैः प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय एजेंसियां ये देखने के लिए जांच कर सकती हैं कि क्या इनमें कोई मनी लॉन्ड्रिंग या रिश्वत का मामला तो नहीं हैं. वैकल्पिक रूप से, इन मामलों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट जैसी किसी न्यायिक संस्था की ओर से एसआईटी गठित की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने कहा, “एक एसआईटी गठित करना पड़ेगा. सरकार ये काम खुद करे इसका कोई रास्ता नहीं है. इसलिए इसे सिर्फ़ कोर्ट के मार्फ़त करना होगा.”
उन्होंने कहा कि सबसे अधिक संभावना है कि इन आशंकाओं को उठाते हुए “कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगा.”
उन्होंने कहा, “जांच के लिए यह मज़बूत मामला है. कई सारे संयोग एक साथ घटित हो रहे हैं.”
कोयला आवंटन घोटाला मामले की सुनवाई करने वाले जजों में से एक रहे जस्टिस मदन लोकुर ने कहा, “जैन हवाला मामले से लेकर अब तक, इस तरह की जांच कई मौकों पर कराई जा चुकी है. लेकिन इस मामले में परिस्थितिजन्य सबूत कहीं अधिक हैं.”
जैन हवाला केस में कैबिनेट मंत्रियों समेत कई नेताओँ के ख़िलाफ़ रिश्वत लेने के आरोप लगे थे. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच की निगरानी की थी.
इसके अलावा, टूजी लाइसेंस देने जैसे कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और ईडी की जांच की निगरानी की थी.
यहां तक कि दिल्ली की एक अदालत के सामने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दलील दी थी कि इस तथ्य की भी जांच होनी चाहिए क दिल्ली शराब घोटाले में अभियुक्त एक बिज़नेसमैन ने बीजेपी को 55 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीद कर दिए थे.
बिज़नेसमैन शरद रेड्डी अंत में सरकारी गवाह बन गए और दिल्ली कोर्ट ने उन्हें ज़मानत दे दी थी.
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रिश्वत की प्रकृति के आधार पर कई लोगों को सज़ा हो सकती है. क़ानूनी विशेषज्ञों के आधार पर जिन लोगों पर मुकदमा चलाया जा सकता है वे हैः कंपनियों के वे व्यक्ति जिन्होंने चंदा दिए थे, राजनीतिक दलों के व्यक्ति, सरकारी अधिकारी जिनके पास लाभ देने की शक्ति थी और लेनदेन में शामिल अन्य लोग.
प्रशांत भूषण ने कहा, “कंपनी के कुछ अधिकारी, राजनीतिक पार्टी के कुछ लोग, सरकार के कुछ लोग और इन एजेंसियों के कुछ लोग जिन्होंने मध्यस्थ के तौर पर काम किया था.”
सिद्धार्थ लूथरा के मुताबिक़, अगर चंदे को अनुचित लाभ से जोड़ने वाली सभी कड़ी मौजूद है तो इन लोगों पर मुकदमा चलाया जा सकता हैः “कोषाध्यक्ष, पार्टी अध्यक्ष या जिसने भी भुगतान में मदद की और संबंधित सरकारी अधिकारी जिसने असल में लाभ दिया.”
प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रींग एक्ट की धारा 70 के तहत कंपनी को भी अभियुक्त बनाया जा सकता है.
इन हालात में, “वो हर व्यक्ति जो क़ानून के उल्लंघन के समय इंचार्ज था और कंपनी के व्यावसायिक संचालन के लिए ज़िम्मेदार था,” वो मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए जवाबदेह होगा.
सिद्धार्थ लूथरा के मुताबिक़, इसके तहत एक राजनीतिक पार्टी को भी अभियुक्त बनाया जा सकता है.
वो कहते हैं, “अगर पार्टी को अभियुक्त बनाया जाता है तो जो व्यक्ति अध्यक्ष या ज़िम्मेदार है या जिन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई है उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है.”
दिल्ली आबाकारी नीति के पुलिस केस में ईडी ने दलील दी है कि आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के मार्फ़त मनी लॉन्ड्रिंग का आपराध किया है, जो पार्टी के इनचार्ज हैं.
पीएमएलए के तहत एक व्यक्ति को ज़ुर्माने साथ साथ सात साल की सज़ा हो सकती है.
हालांकि, एक राजनीतिक पार्टी को अभियुक्त बनाया जा सकता है या नहीं, यह लगातार बहस का विषय रहा है और इस पर अभी फैसला होना बाकी है.
लेकिन इसके बावजूद, पार्टी के वे लोग जो डील को अंजाम दिए जाने में शामिल थे, उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.
सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, “वैकल्पिक रूप से अगर सेक्शन 70 नहीं लगाया जाता तो कोई भी व्यक्ति जो पैसे लेने और फैसले को प्रभावित करने में शामिल रहा हो, ज़िम्मेदार हो सकता है.”
इसके अलावा, भ्रष्टाचार विरोधी क़ानून की धाराएं भी लागू होंगी.
इस क़ानून के तहत सरकारी कर्मचारी, रिश्वत देने वाले और रिश्वत की मध्यस्थता करने वाले को दंड देने के प्रावधान है.
इसके तहत ज़ुर्माना और सात साल की सज़ा हो सकती है.
जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि “वे कांट्रैक्ट रद्द कर सकते हैं.”
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 1993 से 2010 के बीच निजी कंपनियों को किए गए कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द कर दिया था|
सौजन्य :बीबीसी
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