आर्टिकल 39 से मिलेगा दलितों को समान अवसर, राजनीतिक पार्टियां करें इसे घोषणा-पत्र में शामिल: दलित अधिकार नेटवर्क – Demand To Implement Of Article 39
आर्टिकल 39 से मिलेगा दलितों को समान अवसर, राजनीतिक पार्टियां करें इसे घोषणा-पत्र में शामिल: दलित अधिकार नेटवर्क – Demand To Implement Of Article 39
जोधपुर. दलित वर्ग के लिए सरकारी संसाधनों में समान भागीदारी तय करने के लिए लंबे समय से काम कर रहे दलित अधिकार नेटवर्क संगठन की मांग है कि जब लोकसभा चुनाव के लिए देश की दोनों पार्टियां अपनी-अपनी गारंटियां दे रही हैं, तो दलित वर्ग के लिए भी कोई गारंटी घोषित करें. जिससे इस वर्ग का भी कल्याण हो सके. क्योंकि यह वर्ग आज भी आरक्षण के बावजूद सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है|
शुक्रवार को जोधपुर में प्रेसवार्ता में नेटवर्क के राज्य संयोजक तुलसीदास राज ने कहा कि आज भी सरकारी योजनाओं में बजट का प्रावधान होने के बावजूद इस वर्ग के बजट का पूरा उपयोग नहीं होता है. बजट जारी करने के कुछ समय बाद ही उसका उपयोग अन्य मदों में पूरा कर लिया जाता है. तेलंगाना पहला राज्य था | जिसने इसके लिए कानून बनाया. 2021 में राजस्थान में भी एक्ट लागू हुआ, लेकिन अभी तक भी इसमें सुधार नहीं हुआ है. जिसके चलते इस वर्ग के बड़े हिस्से को अपनी योजनाओं के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है. हम चाहते हैं इन चुनाव में हमारी मांगों को पार्टियां अपने घोषणापत्र में शामिल करें|
आर्टिकल 39 की पालना जरूरी: तुलसीदास राज ने बताया कि संविधान में आर्टिकल 39 में प्रावधान किया है कि सरकारी संसाधनों का उपयोग सभी के लिए समान होगा. लेकिन आज दलित वर्ग की उपस्थिति सभी जगह नहीं है. देश की कोल माइनिंग में एक भी माइन दलित के पास नहीं है. ऐसे कई प्राकृतिक संसाधन हैं, जिसमें दलित की संख्या नगण्य है. कृषि भूमि की भी कमी है. जिनके पास है, उनसे लोग ले लेते हैं. प्रावधान होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियां आर्टिकल 39 की पालना के लिए काम नहीं कर रही है. काम की गारंटी पर वोट मांग रही हैं, तो इस बार दलित भी वोट देने के लिए अपने हितों की गारंटी मांग रहा है|
आंदोलन का रास्ता खुला है: तुलसीदास राज का कहना है कि हम लगातार सरकारों से बात कर नीति निर्धारण में बदलाव करवा रहे हैं. जातिगत जनगणना राष्ट्रीय स्तर पर करवाने की जरूरत है. जिससे यह साफ हो सके कि जिसकी जितनी आबादी उतना हक की व्यवस्था लागू हो. लेकिन मूल मांग आर्टिकल के प्रावधानों की है. अगर इस पर काम नहीं हुआ, तो हमारे लिए हमेशा आंदोलन का रास्ता खुला है, जिसे पर हम जाएंगे. जरूरत पड़ी तो न्यायालय भी जाएंगे|
सौजन्य :इटीवी भारत
नोट: यह समाचार मूल रूप सेetvbharat.com में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था।