फिल्म ‘ठौर’ में गया कॉलेज के टीचर स्टूडेंट्स का जलवा:दलित समाज के प्रतिरोध पर आधारित है मूवी; गया में ही हुई है शूटिंग
चुनाव के दौरान सवर्ण समाज की धूर्तता और दलित समाज के प्रतिरोध पर आधारित फिल्म “ठौर” इन दिनों यूट्यूब चैनल- mitropur junction पर धूम मचा रही है। खास बात यह है कि इस फिल्म के सभी कैरेक्टर, लेखक और निर्देशक गया कॉलेज से जुड़े हैं। कोई प्रोफेसर है तो कोई कर्मी तो कोई स्टूडेंट्स।
सभी ने रचनात्मक प्रतिभा का बखूबी परिचय दिया है। खास बात यह भी फ़िल्म पटकथा उस कहानी का हिस्सा है जिसे गया कॉलेज की स्टूडेंट ने लिखा था और वह कहानी साहित्यिक पत्रिका के वार्षिकांक में छपने के बाद चर्चा में आई थी।
हालांकि इस फिल्म की भाषा हिन्दी है, लेकिन मगही भाषा की देशजता की छौंक लिए है। मगही टोन की लोक धुन वाले गीत संगीत भी। हाल में ही इस फिल्म की स्क्रीनिंग गया कॉलेज के प्रेमचंद सभागार में हुई है। इस फिल्म का निर्देशन हिन्दी विभाग, गया कॉलेज गया के सहायक प्रोफेसर डॉ. श्रीधर करुणानिधि ने किया है।
फिल्म के प्रोड्यूसर हिन्दी विभाग, गया कॉलेज गया के वर्तमान विभागाध्यक्ष डॉ. अभय नारायण सिंह और पूर्व विभागाध्यक्ष और परीक्षा नियंत्रक डॉ आनंद कुमार सिंह हैं। इस फिल्म में दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के छात्र-छात्राओं एवं रिसर्च स्कॉलर का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
फिल्म के निर्देशक डॉ. श्रीधर करुणानिधि का कहना है कि इस फिल्म की पूरी यात्रा रोमांचक अनुभव का उदाहरण है। इस फिल्म के निर्माण से जुड़ा कोई भी सदस्य प्रशिक्षित नहीं था। फिल्म निर्माण का ख्याल तब आया जब हिन्दी विभाग की छात्रा ट्विंकल रक्षिता की कहानी ‘कमिनिया’ 2022 में साहित्यिक पत्रिका दीपावली विशेषांक में छपी और चर्चित हुई।
मगही टोन के कारण हिन्दी विभाग के शिक्षकों को यह कहानी खूब पसंद आई और यहीं से इस पर फिल्म निर्माण का ख्याल भी आया। इसकी शूटिंग के लिए कुजापी, गया के पास स्थित नेयाजीपुर गांव को चुना गया। वहां के ग्रामीणों ने इसमें काफी सहयोग किया। इसके अलावा, बोधगया, सिकरिया मोड़ स्थित पहाड़ी के लोकेशन का भी इसमें उपयोग किया गया।
फसल कटाई के लिए नेयाजीपुर स्थित किसान के खेत का इस्तेमाल हुआ। लगभग 15 दिनों की शूटिंग हुई। फिर डबिंग आदि का काम पटना के स्टूडियो में संपन्न हुआ। इस फिल्म की पूरी पटकथा ट्विंकल रक्षिता की कहानी से थोड़े परिवर्तन के साथ एक दलित भुईंया समाज की एक तेज तर्रार स्त्री पर केन्द्रित है।
फिल्म में पंचायत चुनाव, उसमें वर्चस्व के लिए किसी भी हद तक गुजरना, धनबल का उपयोग, कमियां मजदूरों की दशा, उसका शारीरिक मानसिक उत्पीड़न तथा स्वर्ण समाज की चालाकी, प्रशासन के साथ उसकी सांठ-गांठ और उसके बल पर अपना वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश आदि अंतर्कथाओं को फिल्म के एक-एक शॉट द्वारा असरदार ढंग से दिखाया गया है।
फिल्म में दलित समाज का प्रतिरोध भी दर्ज होता है। चेहरे पर एसिड अटैक की हिंसा का प्रयोग प्राय: स्त्रियों के खिलाफ ही किया जाता रहा है लेकिन इस फिल्म में सामंती पुरुष और उसकी मानसिकता के खिलाफ एक स्त्री एसिड अटैक करती है।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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