राजस्थान में बढ़ रही बलात्कार के मामलों पर Fake FIR ! जानें हैरान करने वाली ‘कड़वी’ सच्चाई
राजस्थान के नागौर में करीब तीन महीने में बलात्कार या पॉक्सो के 13 मामले टांय-टांय फिस्स निकले। इन्हें झूठा भी कहा जा सकता है या फिर रजामंदी/समझौते के चलते बेदम निकला मामला भी। इनमें पांच मामले तो दलित महिला या युवती के निकले। तीन मामलों में तो पुलिस के मेडिकल कराने की बात को पीड़िता ने अस्वीकार कर दिया।
महिला अपराध बढ़ रहा है, खासतौर पर बलात्कार या छेड़छाड़, मासूम नाबालिग से लेकर युवती या विवाहिता ही नहीं, अधेड़ महिलाएं तक शिकार हो रही हैं। घर से भागने वाली युवती या नाबालिग से भी एक चौथाई वापस आने पर उसी के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा रही हैं, जिनके साथ भागी थीं। नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में हकीकत में ऐसा ही है।
जानकारी में ये भी सामने आया है कि लगभग 20 फीसदी मामले तो शुरुआती दौर में ही ‘सेटल’ हो रहे हैं। वहीं चालान पेश होने के बाद लगभग 30 फीसदी मामले रजामंदी से रफा-दफा कर दिए जाते हैं। पुलिस ही नहीं ऐसे मामलों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता तक स्वीकारते हैं कि लम्बी चली सुनवाई के बाद एक चौथाई मामले ही ऐसे होते हैं जिनमें आरोपी को सजा मिलती है, पीड़ित पक्ष झुकता नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि कई मामले तो ऐसे हैं जो पुलिस थानों तक पहुंचते हैं, कार्रवाई के लिए जैसे ही पुलिस कुछ सोचती है, उसके आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। आरोपी पक्ष तो बाद में पीड़ित पक्ष ही राजीनामे की इत्तला पुलिस को दे देती है। पिछले दिनों कई ऐसे मामले चर्चा में रहे।
एक मामले में एक अध्यापक के छात्रा के साथ अश्लील फोटो वायरल हुए, उसके बाद मामला दर्ज हुआ। इस मामले में ना जाने क्या हुआ कि पुलिस ने आरोपी को पकड़ने की जहमत तक नहीं उठाई। कुछ दिन बाद पीड़ित पक्ष ने समझौता कर सरेंडर कर दिया।
सूत्र बताते हैं कि पीड़िता नाबालिग हो या बालिग, दलित हो या सामान्य। इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा। थाने से कोर्ट पहुंचने से पहले ही मामले का निस्तारण करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। आधे से अधिक मामलों में पीड़िता बयान से पलट जाती हैं। समझौते में नाते-रिश्तों के साथ राजनीतिक दबाव के अलावा रकम का भी योगदान रहता है। पॉक्सो पीड़िता को अधिकतम पांच लाख का मुआवजा देने का प्रावधान है तो दलित पीड़िता को भी एफआईआर दर्ज कराने से लेकर चालान पेश होने और फिर फैसला होने तक अलग-अलग किस्तों में यह मुआवजा मिलता है
केस-1
सदर थाना इलाके में एक महिला ने अपने ही रिश्तेदार युवक के खिलाफ झांसा देकर बलात्कार का मामला दर्ज कराया। रिपोर्ट में कहा गया कि कई दिनों तक लिव इन रिलेशनशिप के बाद उसे छोड़ दिया। पुलिस ने जांच शुरू की तो तीसरे दिन समझौता हो गया।
केस-2
कुछ समय पहले एक स्कूली छात्रा (नाबालिग) का अध्यापक के साथ अश्लील वीडियो वायरल हो गया। बाद में पुलिस ने मामला दर्ज भी किया। पोक्सो का यह मामला दब गया, अध्यापक का भाई बड़े पद पर था। सुनने में आया कि यहां भी राजीनामा हो गया। ना गिरफ्तारी ना थाना-कचहरी।
केस-3
एक नाबालिग के साथ उसी गांव के दो युवकों ने दुष्कर्म किया। गैंगरेप के बाद आरोपी गिरफ्तार भी हुए, कुछ दिनों बाद दोनों पक्षों के बीच रजामंदी हो गई। पीड़िता ने अपने बयान तक बदल लिए। पीड़िता-आरोपी एक ही गांव के थे।
इसलिए भी बढ़ रहे झूठे मामले
दो-ढाई माह पूर्व पास के गांव में आपसी कहासुनी मेें पड़ोसियों में झगड़ा हुआ। एक पक्ष ने नाबालिग से दुष्कर्म का मामला थाने में दर्ज करा दिया। बाद में मामला झूठा पाया गया, केवल परेशान करने के हिसाब से यह मामला दर्ज किया। उधारी की रकम नहीं चुकाने पर, जमीन के कब्जा/विवाद, पुरानी रंजिश निकालने अथवा मोटी रकम ऐंठने के लिए भी बलात्कार/छेड़छाड़ के झूठे मामले दर्ज कराए जाते हैं।
पांच साल की हकीकत
आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो 2019 से 2023 तक करीब पांच साल में पोक्सो (नाबालिग से छेड़छाड़/बलात्कार) के ही करीब 900 मामले दर्ज हुए जबकि बालिग युवती/महिला के मामले में यह संख्या करीब सत्रह सौ से अधिक रही। इस तरह करीब 26 सौ मामलों में करीब चालीस फीसदी मामले समझौते के जरिए ही निस्तारित हो गए। इनमें काफी मामले तो ऐसे रहे जिनमें पीड़िता ने बाद में अपने बयान ही पलट दिए।
सौजन्य : Patrika
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