इन पांच बातों की वजह से दलित नेता के रूप में मशहूर हुए थे कांशीराम
भारतीय राजनीति की जब भी चर्चा होगी, कांशीराम का नाम जरूर सामने आएगा. भारत में सबसे पहले भले ही बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने दलितों के उत्थान की बात की थी. उनके लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए वकालत की थी, पर उनके बाद जिस दलित नेता ने बाबा साहेब की विचारधारा को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई वह कांशीराम ही थे. इसके लिए वह भारतीय राजनीति और समाज में काफी बड़ा बदवाव लाने में सफल रहे.कांशीराम की जयंती पर आइए जान लेते हैं वो पांच बड़ी बातें, जिसने उनको देश में दलितों के बड़े नेता के रूप में अमर कर दिया.
1- दलित कर्मचारियों की संस्था से जुड़कर उठाए मुद्देकांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के एक दलित परिवार में हुआ था. उन्होंने ग्रेजुएशन (बीएससी) तक की पढ़ाई की. इसके बल पर क्लास वन अधिकारी की नौकरी में चले गए. सरकारी नौकरी के दौरान ही वह दलितों के हितों के बारे में सोचने लगे. देश में स्वाधीनता के बाद से ही आरक्षण लागू है. इसके कारण सरकारी सेवा में दलित कर्मचारियों के लिए अपनी संस्था होती थी. इससे जुड़कर कांशीराम ने दलितों से जुड़े सवाल उठाए. उन्होंने आंबेडकर जयंती के दिन छुट्टी घोषित करने की मांग की.
2- कांशीराम ने मुद्दों को राजनीति के धरातल तक पहुंचायादलितों के उद्धार के लिए बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का नाम एक चिंतक और बुद्धिजीवी के रूप में लिया जाता है. कांशीराम को उनकी तरह चिंतक-बुद्धिजीवी नहीं माना जाता लेकिन बहुजन समाज पार्टी की स्थापना कर उन्होंने भारतीय समाज और राजनीति में दलितों के लिए एक बड़ा बदलाव लाने में अपनी अहम भूमिका अदा की. बाबा साहेब ने जहां संविधान के जरिए दलितों के जीवन में बदलाव का खाका तैयार किया था, वहां कांशीराम ने इसे राजनीति के धरातल पर उतारा और इसका श्रेय उन्हें हमेशा दिया जाता रहेगा.
3- दलित शोषित समाज संघर्ष समिति से दिखाई ताकतकांशीराम ने साल 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति, जिसे डीएस4 भी कहा जाता है, की स्थापना की थी. उन्होंने साल 1982 में ‘द चमचा एज’ लिखा. इसमें उन्होंने उन सभी दलित नेताओं की आलोचना कर डाली थी, जो कांग्रेस जैसी किसी परंपरागत मुख्यधारा की पार्टी के लिए काम कर रहे थे. साल 1983 में डीएस4 की ओर से एक साइकिल रैली का आयोजन किया गया. इसके जरिए दलित एकता की ताकत दिखाई गई. बताया जाता है कि उस वक्त इस रैली में तीन लाख लोगों ने हिस्सा लिया था.
4- इसलिए महसूस की थी राजनीतिक पार्टी की जरूरतसाल 1984 में जब कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की थी, तब तक वह पूरी तरह से एक दलित सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में सामने आ चुके थे. तभी उन्होंने कहा था कि बाबा साहेब आंबेडकर पुस्तकें इकट्ठा किया करते थे और मैं लोगों को एकत्रित करता हूं. उन्होंने तब मौजूद राजनीतिक पार्टियों में दलितों की जगह खोजने की कोशिश की. इसके बाद ही अपनी अलग राजनीतिक पार्टी खड़ी करने की जरूरत उन्हें महसूस हुई.
5- उत्तर भारत की राजनीति में गैर ब्राह्मणवादबहुजन समाज पार्टी के जरिए कांशीराम ने विशेष रूप से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग तरह की छाप छोड़ी थी. उत्तर भारत की राजनीति में गैर-ब्राह्मणवाद शब्द बहुजन समाज पार्टी के जरिए कांशीराम ही प्रचलन में लेकर आए. वैसे तो मंडल के दौर में ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां सवर्णों के आधिपत्य के खिलाफ थीं.इसी दौर में कांशीराम का मानना था कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना ही होगा. इसके लिए गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी.
सौजन्य : Tv36 hindustan
नोट: यह समाचार मूल रूप से tv36hindustan.com में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था।