1951 तक दलित मुसलमान को अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा गया था
प्रखंड के मधुवन बसहा पूर्वी में दलित मुसलमान और अति पिछड़ा विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन अधिवक्ता इफ्तेखार मंसूरी की अध्यक्षता में किया गया। गोष्ठी के मुख्य अतिथि पसमांदा मंसूरी समाज के प्रदेश अध्यक्ष मो. सज्जाद मंसूरी ने कहा कि गुलाम भारत में अंग्रेजी सरकार द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की पहचान की गई। जिसमें विभिन्न धर्मों के विभिन्न जातियों को अनुसूचित जाति एवं जनजाति में शामिल किया गया।
जिसमें मुसलमानों के भी विभिन्न कमजोर जातियों को अनुसूचित जाति एवं जनजाति में शामिल कर शासन, प्रशासन एवं राजनीति में संवैधानिक आरक्षण का लाभ दिया गया। 1951 ई. तक दलित मुसलमान अनुसूचित जाति की श्रेणी में थे। बाद में शासक वर्गों ने साजिश के तहत मुसलमानों को अनुसूचित जाति की सूची से हटा दिया। विशिष्ट अतिथि अति पिछड़ा आरक्षण बचाओ संघर्ष मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष हजरत अली अंसारी ने कहा कि आज पूरे देश की आधी आबादी अति पिछड़ा हिंदू एवं मुस्लिम जातियों की है। राष्ट्रीय स्तर पर अति पिछड़ा वर्ग की संवैधानिक पहचान के लिए गठित रोहिणी आयोग के अनुशंसा को राष्ट्रपति को विगत जुलाई माह में सौंपने के बाद भी केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक कर लागू नहीं किया जा रहा है। यह अति पिछड़ा विरोधी मानसिकता को दिखाता है। विचार गोष्ठी में सादिक शाह, अब्दुल कादिर, तुफैल अहमद मंसूरी, फिरोज मंसूरी, मुश्ताक मंसूरी, अनवरुल हक मंसूरी, आफताब आलम आदि मौजूद थे।
सौजन्य :दैनिक भास्कर
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