क्या बजट दलितों और आदिवासियों की बात करता है?
केंद्रीय बजट 2024-25 में कुल अनुमानित व्यय 51,08,780 करोड़ रुपये है, जबकि अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल आवंटन 1,65,598 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजाति के लिए 1,21,023 करोड़ रुपये है।
पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने संसद में अंतरिम बजट पेश किया। हालांकि बजट हमेशा ही महत्वपूर्ण विषय रहा है। लेकिन चुनाव और हाशिये पर रह रहे समुदायों पर विभिन्न रिपोर्टों में सूची में गिरते भारत के स्थान को मद्देनजर बजट को समावेशी नजरिए से जांचना और भी जरूरी हो जाता है। बड़े-बड़े दावों के बीच आदिवासियों और दलितों के योजनाओं के लिए पर्याप्त आवंटन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की बनती है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में आवंटित धन के कम उपयोग के मामले भी दोहराए गए हैं। लोक सभा प्रधानमंत्री मोदी ने बजट को समावेशी और नवीन होने के साथ ही देश के भविष्य के निर्माण का बजट है। यह विकसित भारत के चार स्तंभों युवा, गरीब, महिला और किसान को सशक्त करेगा।
लेकिन इस साल केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास और हाशिये पर रहने वाले समुदायों को संबोधित करने वाली 37 प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं में से 26 में आवंटन में उल्लेखनीय रूप से कमी कर दी है, जो मुख्य कार्यक्रमों को कवर करती हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद में कहा कि सरकार के प्रयासों से देश में ड्रॉपआउट दर कम हुई है। उच्च शिक्षा में लड़कियों का नामांकन बढ़ा है। अनुसूचित जाति के छात्रों का नामांकन लगभग 44 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के छात्रों का 65 प्रतिशत से अधिक और ओबीसी का 44 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है। ड्रॉपआउट दर कम होने का एक कारण छात्रवृत्ति रही है। लेकिन बजट में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की शिक्षा में जबरदस्त कटौती की गई है।
इस साल केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास और हाशिये पर रहने वाले समुदायों को संबोधित करने वाली 37 प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं में से 26 में आवंटन में उल्लेखनीय रूप से कमी कर दी है, जो मुख्य कार्यक्रमों को कवर करती हैं।
अनुसूचित जाति और जनजाति के वित्तीय आवंटन में बदलाव नहीं
बजट में कुल खर्च 47.66 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। वित्तीय वर्ष 2023 की तुलना में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के वित्तीय आवंटन में कोई बहुत बड़े बदलाव नहीं किए गए हैं। बजट दस्तावेज़ से पता चलता है कि सरकार ने प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक और मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृत्ति सहित अल्पसंख्यकों के लिए विभिन्न वित्तीय योजनाओं पर वित्त वर्ष में केवल 257.37 करोड़ रुपये खर्च किए।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत अनुमानों ने सामाजिक न्याय और जनजातीय मामलों के मंत्रालयों के बजट को काफी हद तक अपरिवर्तित छोड़ दिया। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट अनुमानों की तुलना में दोनों मंत्रालयों के लिए अनुमानित आवंटन में मामूली वृद्धि देखी गई। वहीं सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के लिए 14,225 करोड़ और जनजातीय मामलों के मंत्रालय के लिए 13,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत अनुमानों ने सामाजिक न्याय और जनजातीय मामलों के मंत्रालयों के बजट को काफी हद तक अपरिवर्तित छोड़ दिया। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट अनुमानों की तुलना में दोनों मंत्रालयों के लिए अनुमानित आवंटन में मामूली वृद्धि देखी गई।
दलित आदिवासी के शिक्षा बजट में कमी
वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमानों में 2023-24 के बजट अनुमान में आवंटन की तुलना में जनजातीय मामलों के मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय के व्यय में 38 फीसद और 23 फीसद की कमी देखी गई। केंद्रीय बजट 2024-25 में कुल अनुमानित व्यय 51,08,780 करोड़ रुपये है, जबकि अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल आवंटन 1,65,598 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजाति के लिए 1,21,023 करोड़ रुपये है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चे गरीबी की स्थिति में स्कॉलरशिप पर आगे की पढ़ाई के लिए निर्भर रहते हैं। लेकिन सरकार डॉक्टर ऋतु सिंह से लेकर विभिन्न मामलों से साबित कर रही है कि ये इन समुदायों से आने वाले बच्चों की शिक्षा को लेकर कितनी गंभीर है। ध्यान देने वाली बात है कि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति, शिक्षा योजनाओं और विभिन्न कौशल कार्यक्रमों के लिए धन में कटौती की गई है जिससे यह मुस्लिम समुदाय के लिए समस्या का संभावित कारण बन सकती है।
वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमानों में 2023-24 के बजट अनुमान में आवंटन की तुलना में जनजातीय मामलों के मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय के व्यय में 38 फीसद और 23 फीसद की कमी देखी गई।
अल्पसंख्यकों के शिक्षा बजट में कटौती
प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए आवंटन 1,425 करोड़ रुपये से गिरकर 433 करोड़ रुपये हो गया। ‘नई मंजिल’ जैसी कौशल विकास योजनाओं के लिए धन, जो ज्यादातर अल्पसंख्यक महिलाओं को लक्षित करता है, पिछले वित्तीय वर्ष के 332.91 करोड़ रुपये से घटकर 3.4 करोड़ रुपये हो गया। अल्पसंख्यकों के लिए अनुसंधान योजनाओं के लिए धन को 41 करोड़ रुपये से आधा कर 20 करोड़ रुपये कर दिए गए हैं। मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजना के तहत इस साल 160 करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये की भारी कटौती देखी गई।
द मूकनायक के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मैरी कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. माया जॉन ने छात्रवृत्ति और फेलोशिप के लिए धन आवंटन में लगातार कटौती पर निराशा व्यक्त करते हुए रेखांकित किया कि पीएम रिसर्च फ़ेलोशिप के लिए 2023-24 में 400 करोड़ रुपये से 12.5 फीसद की कमी करके 2024-25 में 350 करोड़ रुपये किये गए। ओबीसी छात्रों के लिए राष्ट्रीय फ़ेलोशिप के लिए 57 करोड़ रुपये से 4 फीसद की कटौती करके 55 करोड़ रुपये गए। वहीं जम्मू-कश्मीर के वंचित छात्रों के लिए विशेष छात्रवृत्ति योजना का कोई उल्लेख बजट में नहीं है।
‘नई मंजिल’ जैसी कौशल विकास योजनाओं के लिए धन, जो ज्यादातर अल्पसंख्यक महिलाओं को लक्षित करता है, पिछले वित्तीय वर्ष के 332.91 करोड़ रुपये से घटकर 3.4 करोड़ रुपये हो गया।
पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में कितना बजट हुआ आवंटित
जहां इस वर्ष अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति के आवंटन में 50 करोड़ से 95 करोड़ की मामूली वृद्धि एक अच्छा प्रयास है। लेकिन पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में वृद्धि की मांग के बावजूद, इस वर्ष का बजट अनुसूचित जाति के लिए 6349 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजाति के लिए 2374 करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष से मामूली वृद्धि है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उच्च शिक्षा खर्च पर ध्यान दिया जाए, तो उच्च शिक्षा विभाग ने अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए आवंटन (एडब्ल्यूएससी) के तहत 4180.60 करोड़ रुपये, एसटी के लिए 2126.30 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। भले ही उच्च शिक्षा मंत्रालय द्वारा एडब्ल्यूएससी के तहत 3.7 फीसद और एडब्ल्यूएसटी के तहत 3.2 फीसद की आवंटन वृद्धि हुई है, एडब्ल्यूएससी और एडब्ल्यूएससी में दिए गए कोई भी योजना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति छात्रों की शिक्षा के लिए लक्षित नहीं है।
जहां इस वर्ष अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति के आवंटन में 50 करोड़ से 95 करोड़ की मामूली वृद्धि एक अच्छा प्रयास है। लेकिन पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति में वृद्धि की मांग के बावजूद, इस वर्ष का बजट अनुसूचित जाति के लिए 6349 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजाति के लिए 2374 करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष से मामूली वृद्धि है।
केवल आवंटन समस्या नहीं
असुरक्षित सीवर को समाप्त करने के लिए (नमस्ते) योजनाओं ने वर्ष 2022 से सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग और आवास और शहरी मंत्रालय के तहत मैनुअल स्कैवेंजर्स (एसआरएमएस) के पुनर्वास के लिए योजनाओं नामक पिछली योजना की जगह ले ली है। यह सफाई के मशीनीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है। स्वच्छता प्रक्रिया का लक्ष्य पहले से ही स्वच्छता कार्य में लगे लोगों के कौशल को उन्नत करना है। लेकिन इसमें दलितों को सफाई के काम में पीढ़ीगत रूप में मजबूर कर व्यवस्थित रूप से लगाए रखने की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता। नमस्ते योजना 2022 में केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में लॉन्च की गई थी। यह योजना आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की गई थी और इसका उद्देश्य असुरक्षित सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई प्रथाओं को खत्म करना था जिसके लिए 2023 में तकरीबन 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। लेकिन इस स्कीम के लिए मात्र तीस करोड़ ही इस्तेमाल किए गए थे। बावजूद इसके इस स्कीम के लिए अंतरिम बजट में 116 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
आवंटित बजट में कमी होने के बावजूद उसे इतना कम इस्तेमाल किया जाना, केंद्र की विफलता है। महज आवंटन से भी भारत की मौजूद समस्याएं खत्म नहीं हो सकती। आवंटित बजट को काम में न लगा पाने का दो ही कारण संभव हैं। एससी और एसटी के लिए हुए आवंटन के विषय पर प्रकाश डालते हुए, दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान (एनसीडीएचआर) ने कहा है कि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान और कल्याण के लिए आवंटित धन को सामान्य योजनाओं जैसे सड़क निर्माण और यूरिया सब्सिडी में लगा दिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अंतरिम बजट को ड्रीम बजट कहा है।
क्या इसका अर्थ यह है कि इस ड्रीम बजट में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अल्पसंख्यकों को बेहतर शिक्षा नहीं दी जाएगी, उनके लिए नमस्ते जैसी स्कीम आएगी लेकिन इस्तेमाल नहीं की जाएगी जिसका परिणाम हर पांच साल में चार सौ से भी ज्यादा सफाई कर्मचारियों की मौत हो जाएगी। क्या दलित, आदिवासियों की आईआईटी जैसी उच्च शिक्षण संस्थानों में शोषण जारी रहेगा? सामान्य योजना का लाभ आबादी के सभी वर्गों को मिलता है। सामाजिक स्तर को बताता आंकड़ों पर ध्यान दें तो दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय हाशिये पर खड़े हैं। इसलिए इन्हें पूरी आबादी के लिए सामान्य योजनाओं के तहत मिलने वाले लाभों के अलावा उनके कल्याण के लिए निधियों के तहत विशेष लाभ प्रदान किया जाना चाहिए। साथ हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आवंटित बजट के इस्तेमाल में कमी न हो।
सौजन्य :फ़ेमिनिज़म इन इंडिया
नोट: यह समाचार मूल रूप सेfeminisminindia.com में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था।