शिक्षा से दूर होता जा रहा है ‘शिक्षा बजट’
स्कूली शिक्षा में और अधिक बजट के आवंटन की स्थिति को देखें, तो केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, पीएम पोषण में मामूली वृद्धि की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक तबके से आने वाले विद्यार्थियों के लिए शुरू की गई नवोदय विद्यालयों की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवंटित बजट ऐसा दिखाई देता है कि मानो इसे केंद्रीय विद्यालयों के मानकों की मुख्यधारा में समेटा जा रहा हो।
किसी भी समाज के विकास के लिए शिक्षा को बेहद जरूरी माना जाता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों 2024-25 के अंतरिम बजट की घोषणा की। लेकिन इस बजट से आम जनता की शिक्षा के क्षेत्र से उम्मीदें पूरी होती नहीं दिखती। इस साल के बजट पर नज़र डालें तो कुल शिक्षा बजट का आवंटन पिछले साल से कम होकर 1,20,627.87 करोड़ रुपये किया गया है, जबकि 2023-24 में संशोधित बजट 1,29,718.28 करोड़ रुपये था। यानी तुलना की जाए तो शिक्षा मंत्रालय का कुल बजट पिछले वर्ष के इस संशोधित अनुमान से 7 प्रतिशत कम दिखाई देती है।
इस साल के वित्त वर्ष 2024-25 के लिए, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के लिए 73,008 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट आवंटित किया गया है जोकि 0.74 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है। पिछले के वित्त वर्ष 2023-24 से तुलना करें तो स्कूली शिक्षा के लिए 72,473.80 करोड़ रुपये का संशोधित बजट तय किया गया था। शिक्षा मंत्रालय की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में पिछले साल 2023-24 के संशोधित बजट से वित्त वर्ष 2024-25 के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के बजट आवंटन के लिए ₹12,024 करोड़ रूपये (19.56 प्रतिशत) की कुल वृद्धि बताई जा रही है। लेकिन आंकड़ों पर करीब से नज़र डालने से यह समझ आता है कि कई जगह भारी कटौती हुई है।
इस साल के वित्त वर्ष 2024-25 के लिए, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के लिए 73,008 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट आवंटित किया गया है जोकि 0.74 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है।
शिक्षा के लिए जीडीपी का कितना हिस्सा हो रहा तय
2023-24 अंतरिम बजट (IB) 2023-24 संशोधित बजट (RE) 2024-25 अंतरिम बजट (IB)
स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग 68804.85 72473.8 73008.1
उच्च शिक्षा विभाग 44082.1 57244.48 47619.77
कुल – शिक्षा मंत्रालय 112886.95 129718.28 120627.87
Illustration for Feminism in India by Varsha Prakash
शिक्षा पर खर्च बढ़ाने की उम्मीद जनता और शिक्षा विशेषज्ञों को हर साल होती है। देश की शिक्षा के वित्तपोषण के लिए जीडीपी का जितना प्रतिशत खर्च होने की आशा की जाती रही है, उससे तक़रीबन आधे के आसपास या उससे कम भाग शिक्षा के लिए निर्धारित किया जाता रहा है। पिछले वर्ष कई शिक्षा नीतियां और विशेषज्ञ शिक्षा स्तर में व्यापक सुधार और गुणवत्ता के लिए जीडीपी का 6 प्रतिशत आवंटन की सिफारिश करती रही हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने भी जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा के क्षेत्र पर खर्च करने की बात कही है। पिछले साल के बजट में शिक्षा और उच्च शिक्षा के लिए देश के जीडीपी का लगभग 2.9 प्रतिशत ही आवंटित था। वर्तमान परिदृश्य यह है कि शिक्षा बजट जीडीपी के 6 प्रतिशत के आसपास भी नहीं रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक तबके से आने वाले विद्यार्थियों के लिए शुरू की गई नवोदय विद्यालयों की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवंटित बजट ऐसा दिखाई देता है कि मानो इसे केंद्रीय विद्यालयों के मानकों की मुख्यधारा में समेटा जा रहा हो।
स्कूली शिक्षा के लिए मामूली वृद्धि
स्कूली शिक्षा में और अधिक बजट के आवंटन की स्थिति को देखें, तो केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, पीएम पोषण में मामूली वृद्धि की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक तबके से आने वाले विद्यार्थियों के लिए शुरू की गई नवोदय विद्यालयों की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवंटित बजट ऐसा दिखाई देता है कि मानो इसे केंद्रीय विद्यालयों के मानकों की मुख्यधारा में समेटा जा रहा हो।
2023-24 अंतरिम बजट (IB) 2023-24 संशोधित बजट (RE) 2024-25 अंतरिम बजट (IB)
केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) 8368.98 8500 9302.67
नवोदय विद्यालय संगठन (एनवीएस) 5486.5 5470 5800
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) 518.5 480 510
पीएम – पोषण 11600 10000 12467.39
पीएम – स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (एसएचआरआई) 4000 2800 6050
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पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम-एसएचआरआई) स्कूलों और राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को अनुदान से संबंधित सहायता में बजट आवंटन में वृद्धि की गई है। योजना को पिछले बजट की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत अधिक आवंटन प्राप्त हुआ है। वित्त मंत्री द्वारा स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में सूचीबद्ध तीन उपलब्धियों में से एक उपलब्धि पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया की सफलता के बारे में थी। वित्त मंत्री ने इस योजना के बारे में कहते हुए बयान दिया था कि पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया योजना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रही है, और समग्र और सर्वांगीण व्यक्तियों का पोषण कर रही हैं। योजना के जमीन पर कारगर होने की बात करें, तो इसके अंतर्गत अभी तक तक 6448 स्कूलों का कवर किया गया है। योजना के 5 साल के कार्यकाल की समाप्ति तक 14500 स्कूलों तक पहुंचने का लक्ष्य है।
एनसीईआरटी के बजट की बात करें तो इसे 510 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है। एनसीईआरटी के लिए 2023-24 वित्त वर्ष में अंतरिम बजट 518.5 करोड़ रुपये आवंटित किया गया था जिसे संशोधित बजट में कम कर 480 करोड़ रुपये कर दिया गया। एनसीईआरटी जहां स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए नीतियों और कार्यक्रमों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को सहायता और सलाह देने के लिए ज़िम्मेदार है, वहीं इसके लिए सरकार द्वारा तय किया जाने वाले बजटों में अनिश्चिता दिखाई देता है।
उच्च शिक्षा के लिए पूर्ण रूप से आवंटित बजट की बात की जाए, तो यह पिछले साल के संशोधित बजट 57244.48 करोड़ रुपये से कम कर 47619.77 करोड़ रुपये किया गया है। पर वहीं विज्ञान, आर्ट्स, वाणिज्य और व्यावसायिक शिक्षा में उच्च शिक्षा की प्रभारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को इस साल के बजट आवंटन में लगभग 61 प्रतिशत की कटौती की गई है।
यूजीसी के लिए बजट आवंटन में भारी कटौती
उच्च शिक्षा के लिए पूर्ण रूप से आवंटित बजट की बात की जाए, तो यह पिछले साल के संशोधित बजट 57244.48 करोड़ रुपये से कम कर 47619.77 करोड़ रुपये किया गया है। पर वहीं विज्ञान, आर्ट्स, वाणिज्य और व्यावसायिक शिक्षा में उच्च शिक्षा की प्रभारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को इस साल के बजट आवंटन में लगभग 61 प्रतिशत की कटौती की गई है। पिछले वर्ष के अंतरिम बजट में, यूजीसी के लिए 6409 करोड़ आवंटित किए गए थे जिसे इस वर्ष के अंतरिम बजट में घटाकर 2500 करोड़ रुपये कर दिया गया है। हालांकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए सहायता अनुदान में 28 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। इसमें वित्तपोषण की बात करें, तो अंतरिम बजट के अनुसार 15472 करोड़ रुपये हुआ है। पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित बजट में 12000 करोड़ रुपये तय किया गया था। प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (पीएम-यूएसएचए/उषा) में 1814.9 करोड़ रुपये की वृद्धि की गई है जिसका उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च शिक्षा संस्थानों को वित्तीय सहायता देना है।
यूजीसी के बजट में कटौती के तहत यूजीसी (अधिनियम का निरसन) विधेयक के ड्राफ्ट का ज़िक्र करना ज़रूरी है। जोकि पास नहीं हुआ है। यूजीसी(अधिनियम का निरसन) विधेयक का ड्राफ्ट विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) आदि जैसे स्वायत्त निकायों को निरस्त कर इनकी जगह नये आयोग ‘भारत के उच्च शिक्षा आयोग(एचईसीआई)’ को स्थापित करने की परिकल्पना पर केंद्रित है। इस ड्राफ्ट के तहत, यूजीसी की तुलना में, प्रस्तावित एचईसीआई के पास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान आवंटित करने और वितरित करने की क्षमता नहीं होगी। बाद में एनईपी-2020 ने भी ने चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर, भारत के उच्च शिक्षा आयोग(एचईसीआई) की स्थापना की सिफारिश का उल्लेख किया। यूजीसी के 2024-25 के अंतरिम बजट में भारी कमी इशारा करती है कि अपने स्वतंत्र निकाय की कमज़ोर होती स्थिति में यूजीसी अंतिम पड़ाव पर है।
इस साल आईआईएम के लिए अंतरिम बजट 212.21 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। आईआईएम के बजट में यह कटौती दूसरी बार की जा रही है। पिछले वित्त साल 2023-24 के लिए संशोधित बजट 331.01 करोड़ रुपये तय किया गया।
आईआईएम के लिए आवंटन में लगातार गिरावट
पिछले कुछ वर्षों में 7 नये आईआईएम स्थापित किए गए। इस साल आईआईएम के लिए अंतरिम बजट 212.21 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। आईआईएम के बजट में यह कटौती दूसरी बार की जा रही है। पिछले वित्त साल 2023-24 के लिए संशोधित बजट 331.01 करोड़ रुपये तय किया गया। आईआईएम के लिए सकल बजट समर्थन (जीबीएस) 2023-24 में पिछले साल के संशोधित बजट आवंटन 16.18 करोड़ से घटकर इस साल 12 करोड़ कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि आईआईएम के लिए बजट में 25.83 प्रतिशत की कमी आई है। जब 7 नये आईआईएम स्थापित किये गए हैं, और जिसका ज़िक्र वित्त मंत्री के वंतव्य में किया गया तो ऐसे में बजट के बढ़ाने की उम्मीद की जाएगी।
यह तब और चिंताजनक हो जाता है जब 2022-23 में वास्तविक सकल बजट समर्थन 274.82 करोड़ होता है और जिसमें 2024-25 के वित्त वर्ष में 95.7 प्रतिशत की भारी कमी हो जाती है। अंतरिम बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री ने कहा कि साल 2014 के बाद से बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा के नए संस्थान, सात आईआईटी, 16 आईआईआईटी, 7 आईआईएम, 15 एम्स और 390 विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं, जबकि 3000 नए आईटीआई स्थापित किए गए हैं। क्या केवल संसाथनों का गठन ही काफी है? जमीनी स्तर पर शिक्षा संस्थानों के लिए बजट, माहौल और सरकारी नीतियों जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
सौजन्य :फ़ेमिनिज़म इन इंडिया
नोट: यह समाचार मूल रूप सेfeminisminindia.com में प्रकाशित हुआ है|और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था।