रात तक जुटे रहे आदिवासी, नहीं लिया गया ज्ञापन
संगम : शनिवार को संगम में भूमकाल दिवस मनाने 50 गांव के लोग जुटे। आदिवासी नेताओं ने वीर योद्धाओं को याद किया। आदिवासी क्षेत्र की समस्या को हल करने की मांग करते रहे लेकिन देर रात तक प्रशासन का अमला ज्ञापन लेने संगम नहीं आया। इससे आदिवासी नेताओं में नाराजगी देखने को मिली।
सुबह से देर रात तक चले कार्यक्रम में लोगों को इंतजार था कि उनकी मांगों को सरकार तक पहुंचाने के लिए प्रशासन के तरफ से कोई अफसर आएगा, लेकिन देर रात तक कोई नहीं आया। स्कूल मैदान से चौक तक रैली निकाली गई थी। बीच चौराहे को बिरसा मुंडा चौक के नाम से पूजा-अर्चना कर आक्रोशित लोगों ने सरकार और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इस कार्यक्रम में आसपास के पचास से अधिक गांवों के लोग एकजुट हुए थे।
इसके साथ ही तमाम आदिवासी नेताओं ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। दसाउ हुपेंडी, संतु आंचला, शंभु सलाम, लक्ष्मण मंडावी, राजेश नुरूटी, बलि वड्डे, सोमा नुरूटी, विनोद कुमार, अंजुला,भूमिका नवगो ने कहा शहीद गुंडाधुर ने बस्तर के आदिवासियों को शोषक वर्ग से निजात दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी और इस दौरान वह शहीद हो गए। भूमकाल में ही बस्तर रियासत के तत्कालीन राजा प्रवीणचंद्र भंजदेव की अंग्रेजों ने हत्या कर दी थी। नेताओं ने बताया 10 फरवरी 1910 में बस्तर के आदिवासियों ने जल, जंगल, जमीन को शोषक वर्ग और अंग्रेजों के हाथों में जाते देख भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी।
आदिवासियों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजों से लोहा लिया वे झुके नहीं और पूरे आदिवासी समाज को जोड़ने का काम किया। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत का डटकर सामना भी किया। आंदोलन में केवल अमर शहीद गुंडाधुर ही नहीं बल्कि शहीद गेंद सिंह, शहीद वीर नारायण सिंह और बस्तर के अन्य वीर योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ भूमकाल आंदोलन का बिगुल फूंका और अंग्रेजों को बैकफुट पर लाने में सफल हुए।
सौजन्य : दैनिक भास्कर
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