दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन राजस्थान, दलित अधिकार केन्द्र जयपुर एवं बजट विशलेषण एवं शोध केन्द्र ट्रस्ट के संयुक्त तत्वाधान में पिंकसीटी प्रेस क्लब जयपुर में दिनांक 3 फरवरी 2024 को दिया गया प्रेस वक्तव्य
जयपुर l केन्द्रीय बजट वर्ष 2024-2025 विकक्षित भारत की और एक कदम या फिर सामाजिक न्याय पर एक प्रहार ? भारत की वित मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अंतरिम केन्द्रीय बजट पेश किया जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कथन ‘‘सबका साथ-सबका विकास‘‘ को झूठलाता नजर आ रहा है। बजट के विस्तृत अवलोकन से स्पष्ट होता है कि समावेशी विकास और समता केवल एक घोषणा बन कर रह गया है और सामाजिक स्तर पर यह दलित आदिवासी समाज के आर्थिक अधिकारों के साथ-साथ धोखाधडी के समान है।
सत्य यह है कि दलित आदिवासी समाज हमेशा से ही बजट की वजह से निराश होते आये है और आज भी है, उनके हाथ निराशा ही लगी है। आर्थिक अधिकारों तक हमारी पहुंच हर वर्ष क्षीण हो जाती है और हमे सामाजिक न्याय व विकास से दूर कर दिया जाता है। हांलाकि दलित आदिवासी बजट आवंटन में अभिवृद्वी हुई है किन्तु वह दलित और आदिवासी समुदाय के सामाजिक आर्थिक न्याय के लिए प्रर्याप्त नही है।
वर्ष 2024 का कुल केन्द्रीय बजट 5108780 करोड रूपये है जबकि अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल 165598 करोड रूपये आवंटित किया गया और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटन 121023 करोड रूपये है इसमें से लक्षित धनराशि जो सीधे दलितों के कल्याण के लिए होगी वह 44282 करोड रूपये है और आदिवासियों के लिए 36212 करोड रूपये है।
दलित व आदिवासी समुदाय की तरफ या मामूली सा आवंटन हमारी धारणा को और मजबूत करता है कि बजट जिसे आर्थिक सुधार के लिए एक रोडमेप के रूप में प्रचारित किया जाता है, वह भारत में दलित और आदिवासी समुदायो की तत्काल आवश्यकताओं और चिन्ताओं को संबोधित करने में विफल रहा है एवं मौजूदा असमानताओं को यथावत रखता है और सामाजिक न्याय और समावेशिता की प्रगति में बाधा डालता है। हम इस तथ्य से भी व्यथित है कि केन्द्र सरकार जाति के पूरे व्यख्यान को बदल कर दलितो के मुद्द्वों की उपेक्ष करने की कोशिश कर रही है। हाल ही में, वित मंत्री ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री चार जातियों में विश्वास करते हैः गरीब, युवा, महिलाऐं और अन्नदाता (किसान) यह न केवल शताब्दियों के संघर्षों को मिटाना है, बल्कि समावेशिता के विचार पर एक घाव करने का एक विनम्र प्रयास भी है।
सरकार के समावेशिता के वादों के बावजूद, बजट निर्णय लेने वाले निकायों में दलितों और आदिवासियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चिित करने के उपायों की रूपरेखा नहीं बताता है। यह निरीक्षण इन समुदायों को उन नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान करने के अवसर से वंचित करता है जो उनके जीवन को प्रभावित करती है और प्रणाली गत बहिष्कार को कायम रखती है। एक तरफ दलितो के लिए नरेगा के कार्यान्वयन के लिए बजट का आवंटन 10500 करोड रूपये से बढा कर 13250 करोड रूपये हो गया है।
आदिवासियों के लिए यह 7350 करोड रूपये से बढकर 10355 करोड रूपये हो गया है। दूसरी और दलितों वेंचर कैपिटल के लिए आवंटन को 70 करोड रूपये से घटाकर 10 करोड रूपये कर दिया गया है जबकि आदिवासियों के लिए यह बजट पिछले वर्ष की तरह 30 करोड पे ही रूक गया है इसी प्रकार राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम के लिए 10 करोड रूपये का अवंटंन किया गया था लेकिन इस बार केवल 0.01 करोड रूपये का अवटंन किया गया है जो लगभग शून्य है इसी तर्ज पर राष्टीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के लिए पिछले वर्ष 15 करोड रूपये का आवंटन किया गया था जो इस वर्ष घटकर 0.01 करोड रूपये रह गया है।
दलित समुदाय को प्रणालीगत चुनौतियों और भेदभाव का सामना करना पड रहा है जिन्हे प्रायः अपने अधिकारों और गरिमा को सुरक्षित रखने के लिए विधिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है वर्ष 2022 में दलितों और आदिवासियों के विरूद्व अत्याचारों की एक गम्भीर लहर देखी गई है जो देश के विभिन्न हिस्सों में प्रकाश में आई है पिछले वर्ष की तुलना में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले 13.12 प्रतिशत से बढकर 57582 मामले हो गये है जबकि यह संख्या पिछले वर्ष 50,900 थी। इसी प्रकार आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों में वृद्वि हुई है और वार्षिक संख्या 10,064 हो गयी जवकि 2021 में यह 8,802 थी इन चिन्ताजनक आंकडों के बावजूद राज्य दलितों और आदिवासियों के लिए न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करने में विफल रहा है जैसा कि अंतरिम बजट में उजागर होता है न्याय प्रणाली के भीतर दलितों और आदिवासियों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए बजटीय आवंटन कम किया जाता है और इस वर्ष अत्याचार के मामलों में भी वृद्धि देखी गई है हम दलित और आदिवासी महिलाओं के कल्याण और सुरक्षा के लिए जेंडर बजट इन समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट जरूरतों और चुनौतियों को संबोधित करने में विफल रहा है जिससे समावेशी विकास की प्रगति में बाधा उत्पन्न हुई है। दलित और आदिवासी महिलाओं की सुरक्षा के लिए 160 करोड रूपये का आवंटन हुआ है राष्टीय दलित मानव अधिकार आन्दोलन दलित और आदिवासी महिलाओं की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने के साथ संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए पुनर्मूल्याकंन का आग्रह करता है लिंग और जाति के प्रतिच्छेद को पहचानना और समाज के सबसे हाशियें वर्गो के उत्थान के लिए तदनुसार धन आवंटित करना अनिवार्य होना चाहिये।
दलित और आदिवासियों के बीच भूमिहीनता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है जो संशाधनों और आजीविका के अवसरों तक उनकी पहुंच को प्रभावित करता है बजट व्यापक भूमि सुधारों की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करने में विफल रहा है और और भूमिअधिकारों के मुद्वदों को संबोधित करने और दलित और आदिवासियों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने में अपर्याप्त है जिससे उनकी आर्थिक भेदता और हाशिये पर योगदान हुआ है भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के लिए आवंटित निधि दलित और आदिवासियों के लिए भूमि अधिकारों तक समान पहुंच सुनिश्चिित करने की आवश्यकता के लिए पर्याप्त नही है।
हालाकि राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृति के लिये धन आवंटन में वृद्वि हुई है, लेकिन पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति के लिए आवंटित बजट को कम कर दिया गया है जो दलितों और आदिवासियों के शिक्षा के अधिकार के लिये भविष्य में और भी अधिक चुनौतियां लायेगा।
हालंकि केंन्द्र सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से धन आवंटन बढाने का प्रयास किया है। जो निस्संदेह दलितों ओर आदिवासी समुदाय के लिये एक आशा की किरण है लेकिन दूसरी ओर कुछ कहुत महत्वपूर्ण बाते है जिन पर केंन्द्र सरकार को दलितों और आदिवासियों के आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिये दोबारा देखना चाहिये।
दलितों और आदिवासी समुदायों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों पहचानना और निम्न लिखित सुझावों/ सिफारिशों पर विचार करते हुये लक्षित बजटीय आवंटन के माध्यम से उन्हें संबोधित करने के लिये निम्नलिखित सक्रिय कदम उठाना अनिवार्य हैः-
1. ज्यादा संख्या में योजनायें होने के बावजूद उनके के लिए किया गया आवंटन काफी कम है और कई अप्रासंगिक योजनाए भी है, जहां आवंटन बहुत ज्यादा है, लेकिन दुर्भाग्य से, इन योजनाओं का समुदायों को शायद ही कोई लाभ होता है, इसलिये, इस तरह की बडी-बडी गैर-लक्षित योजना को खारिज कर दिया जाना चाहिये।
2. पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति, छात्रावास, कौशल विकास योजनाओं जैसी सीधे तौर पर लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं के लिये आवंटन बढाया जाना चाहिए और हर सूरत में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लाभार्थियों को राशि समय पर मिले तथा राष्टीय ओवरसीज योजना के लिए अधिक बजटीय आवंटन किया जाना चाहिए।
3. दलित महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत का आवंटन और प्रभावी कार्यान्वयंन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कार्यान्वयंन तंत्र के साथ दलित महिलाओं के लिए एक विशेष घटक योजना शुरू की जानी चाहिए।
4. हाथ से मैला ढोने काम करने वाली महिलाओं के पुनर्वास के लिए योजनाओ को फिर से शुरू किया जाना चाहिए और इस प्रथा को खत्म करने के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा सफाई के कार्य के मशीनीकरण के लिए शुरू की गई नमस्ते नामक योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे जुडे लाभ महिलाओं को भी दिए जाए।
5. सभी स्कूलों और छात्रावासों को विशेष योग्यजन लांेगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विशेष योग्यजन के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
6. एससी और एसटी योजनाओं के कार्यान्वयंन के लिए कानूनी ढांचे की कमी के कारण अधिकांश योजनाओं के कार्यान्वयंन में कमियां देखी गई है। इसलिए एससीपी/ टीएसपी कानून पारित करने की तत्काल आवश्यकता है।
7. राष्टीय जलवायु बजट स्टेटमेंन्ट प्रस्तुत किया जाए जिसके तहत जलवायु से जुडे पहलुओं को सी केन्द्रीय-प्रायोजित और केन्द्रीय-क्षेत्र योजनाओं में शामिल किया जाए और उनके लिए बजट तय किया जाए और इन सभी में एससी और एसटी के लिए बजट आरक्षित किया जाए (जैसे विहार के ग्रीन बजट में बजट किया गया हैं)।
8. क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों और जनवायु जोखिमों के जोखिम को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी के अनुपात में ए.डब्ल्यू.एस.सी. और ए.डब्ल्यू.एस.टी. के तहत जलवायु कार्यो के लिए बजट में वृद्वि करना।
9. दलित महिनलाओं, पुरूषों, बच्चों, विकलांग लोगों और क्वीर और ट्रांस व्यक्तियों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए अत्याचार निवारण अधिनियम के कार्यान्वयंन के लिए आवंटन बढाया जाना चाहिए। जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा के किसी भी पीडित को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने के लिए स्पष्ट प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है इसके लिए किया गया मौजूदा आवंटन बिलकुल अपर्याप्त है। मामलों के त्वरित सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए, और जाति और जातीयता-आधारित अत्याचारों पीडितों को दिए जाने वाले मुआवजे में बढोत्तरी की जानी चाहिए।
सौजन्य: दैनिक भास्कर
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