जेल में शरजील इमाम के चार साल: न दोषसिद्धि, न एक्टिविस्टों का साथ
आईआईटी से पढ़कर जेएनयू से पीएचडी कर रहे शरजील इमाम जनवरी 2020 से जेल में हैं. उनके भाई का कहना है कि शरजील को नागरिक समाज समूहों और प्रमुख राजनीतिक एक्टिविस्ट से सहयोग नहीं मिला है|
नई दिल्ली: 28 जनवरी, 2024 को आईआईटी-ग्रेजुएट और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पीएचडी-स्कॉलर शरजील इमाम की क़ैद को चार साल पूरे हो गए. साल 2020 में इमाम को पांच अलग-अलग राज्यों- असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, दिल्ली और उत्तर प्रदेश- में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर हुए राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान दिए गए भाषणों के संबंध में पुलिस द्वारा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद गिरफ्तार किया गया था.. अन्य आरोपों के अलावा, उन पर राजद्रोह और उसके बाद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए थे और फिर दिल्ली दंगों की ‘बड़ी साजिश’ वाले मामले में भी आरोपी के रूप में नामजद किया गया.
इनमें से किसी भी मामले में दोषी न ठहराए जाने के बावजूद इमाम जेल में चार साल बिता चुके हैं. उनके खिलाफ दर्ज कुल आठ मामलों में से पांच में उन्हें जमानत मिल चुकी है, एक में उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया गया. ऐसे में उनके खिलाफ केवल यूएपीए के मामले ही बचे हैं.
इन चार वर्षों में उनकी जमानत याचिकाएं दिल्ली की विभिन्न अदालतों में लंबित रहीं. इनमें पिछले साल दायर की गई एक याचिका भी शामिल है जिसमें उन्होंने इस आधार पर तत्काल जमानत की मांग की थी कि वे यूएपीए की धारा 13 के तहत अधिकतम सजा (सात वर्ष) की आधी से अधिक अवधि पूरी कर चुके हैं.
उनके छोटे भाई मुजम्मिल ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘उनकी ज़िंदगी के चार साल बर्बाद हो गए. अगर वो बाहर होते तो और पढ़ सकते थे, और रिसर्च कर सकते थे. उन्होंने अब तक अपनी पीएचडी पूरी नहीं की है. लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ है. वो मुस्कुराते हैं, अम्मी को उम्मीद बंधाते रहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा.’
वो आगे कहते हैं, ‘जेल में क़ैद किसी भी राजनीतिक कैदी के परिवार के लिए स्थिरता चली जाती है. मेरी मां के लिए उनकी जिंदगी बस हम दोनों भाई हैं. अब तो एक तरह से जिंदगी ठहर-सी गई है.’
गिरफ्तार होने के चार साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील की जमानत याचिका को 46 बार सूचीबद्ध किया है और अब एफआईआर 59/2020 के तहत दिल्ली दंगों के मामले में अगले महीने उनकी याचिका पर नए सिरे से सुनवाई होनी है. पहली एफआईआर 20/2020, जिसके तहत उन्हें उनके भाषणों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, के तहत उनकी जमानत याचिका अगले महीने दिल्ली की एक निचली अदालत में नए सिरे से शुरू होगी.
मुजम्मिल ने कहा कि जब शरजील जेल गए तो परिवार को पता था कि उन्हें जमानत मिलने में शायद कुछ साल लगेंगे. ‘लेकिन हमने नहीं सोचा था कि यह इतने सालों तक चलेगा. उनकी गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में दंगे हुए थे, फिर भी उन्हें बेवजह इसमें फंसाया गया.’
‘तारीख पर तारीख’
शरजील के वकील अहमद इब्राहिम के अनुसार, इमाम को सीएए-एनआरसी विरोध के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उनके भाषण, जिसमें उन्होंने असम को शेष भारत से ‘काटने‘ को कहा था, के वायरल होने के कुछ ही दिनों बाद 28 जनवरी, 2020 को गिरफ्तार किया गया था.
उन्होंने बताया, ‘भाषण 16 जनवरी का है, लेकिन 25 जनवरी, 2020 को वायरल हुआ. 26 जनवरी, 2020 तक उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश, दिल्ली, असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में पांच एफआईआर दर्ज की गईं. दो दिन बाद 28 जनवरी को उन्हें दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया जब वह दिल्ली एफआईआर के सिलसिले में अपने वकील के साथ सरेंडर करने जा रहे थे. कुछ महीने बाद जब दिल्ली दंगों का मामला दर्ज किया गया तो उन्हें एफआईआर 59/2020 में उमर खालिद के साथ पूरक आरोप पत्र में नामजद किया गया था. उन्हें दो और मामलों में भी आरोपी बनाया गया था- जो दिसंबर 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया के पास हिंसा से संबंधित है. उनके खिलाफ कुल आठ मामलों में से उन्हें पांच में जमानत मिल गई है, एक में कभी गिरफ्तार नहीं किया गया और उनके खिलाफ केवल यूएपीए मामले बचे हैं.’
उन पर एफआईआर 22/2020 में यूएपीए की धारा 13 के तहत आरोप लगाए गए हैं, वहीं एफआईआर 59/2020, जो दिल्ली दंगों की ‘बड़ी साजिश’ केस से जुड़ी है, उसमें उन पर यूएपीए के तहत कई आरोप हैं.
पिछले साल अगस्त में शरजील इमाम ने एफआईआर 22/2020, जिसमें उन पर आईपीसी की धारा 153 बी, 505, 124 ए (राजद्रोह) और 153ए के साथ यूएपीए की धारा 13 के तहत आरोप हैं, के संबंध में सीआरपीसी की धारा 436 ए के तहत तत्काल जमानत की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था. अपनी जमानत अर्जी में उन्होंने कहा कि 2022 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के बाद राजद्रोह की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी.
इमाम के वकील इब्राहिम बताते हैं कि धारा 436ए के तहत उनकी जमानत याचिका चार महीने से अधिक समय से लंबित है क्योंकि कई कारणों से फैसला नहीं सुनाया गया, जिसमें पीठासीन न्यायाधीश अमिताभ रावत का तबादला भी शामिल है, जिनके ट्रांसफर की घोषणा दिसंबर में की गई थी और आखिर में कहा गया था सुनवाई की तारीख पर अगले जज मामले की नए सिरे से सुनवाई शुरू करेंगे.
इब्राहिम जोड़ते हैं, ‘यह वैधानिक जमानत है, क्योंकि वो अधिकतम सजा की आधी अवधि पूरी कर कर चुके, फिर भी उन्हें बेल नहीं दी गई. अब 7 फरवरी को मामले को दूसरे जज के सामने सूचीबद्ध किया गया है जो मामले पर नए सिरे से विचार करेंगे और फिर आदेश पारित करेंगे|
उन्होंने आगे बताया, ‘एफआईआर 59/2020 के तहत उनकी जमानत दिल्ली हाईकोर्ट में बीस महीने से लंबित है और 22 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. एफआईआर 22/2020 के तहत उनकी नियमित जमानत भी हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है, लेकिन जब उन्होंने आधी सजा पूरी कर ली है हमने अदालत से अनुरोध किया कि मुझे धारा 436ए के तहत अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया जाए, लेकिन वह भी नहीं दी गई और हमें ट्रायल कोर्ट में जाने के लिए कहा गया. इसलिए हमने निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया जहां मामला फिर से महीनों तक लंबित रखा गया. हमें उम्मीद है कि कहीं न कहीं कोई जज आदेश पारित करेंगे जहां धारा 436ए के तहत जमानत एक अनिवार्य प्रावधान है.’
सरकार के इशारे पर हो रही है देरी!
मुज़म्मिल कहते हैं कि इस देरी से पता चलता है कि ‘न्यायपालिका सरकार के दबाव में काम कर रही है.’
उन्होंने कहा, ‘देरी सरकार के निर्देश पर हुई है. न्याय व्यवस्था सरकार के दबाव में काम कर रही है. भारत में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. ऐसा तब भी होता था जब केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी और अब भाजपा के राज में भी यही हो रहा है. दिल्ली दंगों के मामलों में उनकी (शरजील इमाम की) जमानत की सुनवाई दो साल में 46 बार टाली गई है, इससे साफ पता चलता है कि यह राजनीतिक है.’
मुज़म्मिल कहते हैं कि उमर खालिद जैसे अन्य राजनीतिक कैदियों के उलट शरजील इमाम को नागरिक समाज समूहों और प्रमुख राजनीतिक एक्टिविस्ट की तरफ से समर्थन नहीं मिला है.
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने चुन लिया है कि वे किसका सहयोग करना चाहते हैं, किसका नहीं. शरजील सभी प्रमुख संगठनों के पोस्टरों से गायब है. मैं सबके बारे में नहीं कह रहा हूं, लेकिन सभी संगठनों में सामान्य दृष्टिकोण यह है कि वे उस व्यक्ति को पीड़ित की तरह दिखाना चाहते हैं जो सलाखों के पीछे है. मेरा भाई पीड़ित नहीं है, वो फाइटर हैं और मैं उन्हें पीड़ित की तरह नहीं दिखाना चाहता.’
मुजम्मिल ने आगे कहा, ‘हम असाधारण लोग नहीं हैं, लेकिन हम तथ्यों के आधार पर लड़ना चाहते हैं. शरजील के बात करने का तरीका, उनके भाषण हमेशा अलग रहे हैं. उमर खालिद के पीछे एक लॉबी है. लेकिन शरजील ऐसे शख्स हैं, जिन्हें सीएए-एनआरसी प्रदर्शनों से पहले कोई नहीं जानता था. वो तो बस एक छात्र थे, जो जेएनयू से पीएचडी कर रहा था. उनके पीछे कोई लॉबी नहीं थी.’
मुजम्मिल बताते हैं कि शरजील इमाम जेल में कानून की पढ़ाई के लिए कानूनी किताबें पढ़ रहे हैं और उन्होंने अन्य वंचित विचाराधीन कैदियों, , जिनके पास कानूनी सहारा नहीं है, की मदद भी की है|
वो कहते हैं, ‘हमारे पास इस उम्मीद को बनाए रखने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है कि एक दिन तो वो बाहर आएंगे. बात बस ये है कि किसी की जिंदगी के कीमती साल बर्बाद हो रहे हैं. वो उसकी जमानत को टालते रह सकते हैं लेकिन कब तक उन्हें जेल में रखेंगे? जैसा कि कहा जाता है, ‘हर उरूज को ज़वाल देखना होता है’, यह हमारे साथ-साथ उनके लिए भी सच होगा|
सौजन्य:द वायर
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