गुजरात पुलिस ने 5 मुस्लिमों को खंबे से बांधकर पीटा था, सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई, पूछा- ‘ये कैसा अत्याचार?’
घटना अक्टूबर, 2022 की है. गुजरात के खेड़ा में गरबा कार्यक्रम के दौरान पत्थरबाजी के आरोप में पांच मुस्लिम आदमियों को पकड़ा गया था. इसके बाद उन्हें सरेआम पीटने का वीडियो सामने आया था|
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने गुजरात के खेड़ा में पांच मुस्लिम आदमियों की सरेआम पिटाई के मामले में पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई है. सवाल किया है कि क्या पुलिस को कानूनन लोगों को खंभे से बांधकर पीटने का अधिकार है? इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने चार पुलिस वालों को सजा सुनाई थी. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ इन पुलिस वालों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक 23 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस वालों की अपील स्वीकार कर ली है. हाई कोर्ट की सुनाई सजा पर फिलहाल रोक लगा दी है. लेकिन साथ ही, पुलिस वालों के आचरण पर सख्त टिप्पणी भी की है.
पूरा मामला क्या है?
अक्टूबर, 2022 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया था. पांच आदमियों को बीच सड़क खंभे से बांधकर पीटा जा रहा था. वीडियो वायरल हुआ. लोगों ने सवाल उठाए. पता चला कि वीडियो गुजरात के खेड़ा जिले का है. सरेआम जिन पांच लोगों की पिटाई की गई, वो मुस्लिम समुदाय से थे. उन्हें पुलिस ने कथित तौर पर गरबा कार्यक्रम में पत्थरबाजी के आरोप में पकड़ा था|
इस मामले में पीड़ित 13 पुलिस वालों के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में गए. पुलिस वालों पर अवैध हिरासत में रखने और हिरासत के दौरान यातना देने का आरोप लगाया. मामले में एक मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट के बाद, गुजरात हाई कोर्ट ने चार पुलिस अधिकारियों को दोषी पाया था|
गुजरात HC ने सजा सुनाई थी
हाई कोर्ट ने ‘डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले’ का हवाला दिया था. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान पुलिस के आचरण के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं. गुजरात हाई कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का उल्लंघन हुआ है|
इस तरह पुलिस अधिकारियों ए.वी परमार, डी.बी कुमावत, लक्ष्मणसिंह कनकसिंह डाभी और राजूभाई डाभी के खिलाफ अदालत की अवमानना के आरोप तय किए गए. 19 अक्टूबर, 2023 को इन पुलिस वालों को 14 दिनों के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई. हर पुलिस अधिकारी पर 2000 रुपये का जुर्माना भी लगाया.
पुलिस वालों ने SC में अपील की
हालांकि, इस सजा को अमल में लाने के लिए तीन महीने का वक्त दिया गया था. इस दौरान पुलिस वालों ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. जस्टिस बी.आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने पुलिस अधिकारियों की ओर से दायर अपील को स्वीकार कर लिया. जस्टिस गवई ने सुनवाई के दौरान कहा,
“यह एक कानूनी अपील है. इसे स्वीकार किया जाना चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों की अपील स्वीकार करते हुए गुजरात हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है. लेकिन साथ ही, पुलिस अधिकारियों को उनके बर्ताव के लिए फटकार लगाई है.
पुलिस के बर्ताव पर सवाल उठाया
जस्टिस मेहता ने कहा,
“किस तरह का अत्याचार है ये! लोगों को खंभे से बांधना, सरेआम उनकी पिटाई करना! और फिर आप इस अदालत से उम्मीद करते हैं कि…”
इस मामले में पुलिस अधिकारियों की पैरवी सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे कर रहे थे. सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने कहा कि उनके मुवक्किल पहले से ही आपराधिक मुकदमा और विभागीय कार्यवाही का सामना कर रहे हैं. साथ ही, उनके खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच भी चल रही है|
सिद्धार्थ दवे ने इस मामले में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया. उन्होंने दलील दी कि डीके बसु मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का जानबूझकर उल्लंघन नहीं किया गया.
इस पर जस्टिस गवई ने पूछा,
“तो क्या आपके पास कानून के तहत अधिकार है? लोगों को खंभे से बांधने और उन्हें पीटने का? और वीडियो बनाने का?”
दवे ने जोर देकर कहा कि सवाल पुलिस अधिकारियों के दोषी होने के बारे में नहीं है, बल्कि हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के बारे में है.
गुजरात HC के फैसले पर स्टे
इसके जवाब में, जस्टिस गवई ने कहा,
“तो, कानून की जानकारी ना होना एक वैध बचाव है? ये जानना हर पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि डीके बसु मामले में निर्धारित कानून क्या है. कानून के छात्र के तौर पर हम डीके बसु केस के बारे में सुनते रहे हैं…”
सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पुलिस अधिकारियों की अपील स्वीकार कर ली. गुजरात हाई कोर्ट की सजा पर फिलहाल रोक लगा दी है. अगली सुनवाई कब होगी, ये फिलहाल पता नहीं चल सका है|
सौजन्य:द ललनटॉप
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