आरटीआई में पीएम मोदी के साथ सेल्फ़ी पॉइन्ट का खर्च बताने के बाद रेलवे ने बदले नियम, जानकारी देने वाला अधिकारी बदला- प्रेस रिव्यू
रेलवे स्टेशनों पर बनाए गए सेल्फ़ी पॉइन्ट को लेकर हुए विवाद के बाद भारतीय रेलवे ने सूचना का अधिकार क़ानून (आरटीआई) के तहत जानकारी देने के ज़ोनल रेलवे के नियमों को और कड़ा कर दिया है|
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में छपी एक ख़बर के अनुसार, नए नियमों के अनुसार अब आरटीआई के सभी जवाबों को ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधक या मंडल रेलवे प्रबंधक मंजूरी देंगे, जिसके बाद ही वो जवाब दिया जाएगा| अख़बार लिखता है कि बीते साल दिसंबर 27 को छपी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि रेलवे स्टेशन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले वाले स्थायी सेल्फ़ी बूथ की लागत 6.25 लाख रुपये है जबकि इस तरह के अस्थायी बूथ की लागत 1.25 लाख रुपये है.
ये सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा अनुमोदित लागत है. अख़बार के अनुसार एक आरटीआई के जबाव में ये जानकारी दी गई थी|
एडवाइज़री में क्या है?
अख़बार लिखता है कि 28 दिसंबर 2023 को रेलवे बोर्ड ने ज़ोनल रेलवे के सभी महाप्रबंधकों को एक एडवाइज़री भेजी है|
इसमें कहा गया है, “ज़ोनल रेलवे और अन्य फ़ील्ड यूनिटों के संभाले जाने वाले आरटीआई आवेदनों के जवाब की गुणवत्ता ख़राब हो गई है.”
“कई मामलों में आरटीआई का जवाब देने की समय-सीमा को पार किया गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि फर्स्ट एपेलेट ऑथॉरिटी और केंद्रीय सूचना आयोग के पास लोगों ने बड़ी संख्या में अपीलें दायर कीं. इससे न केवल अतिरिक्त काम बढ़े बल्कि संस्था की भी बदनामी हुई.”
अख़बार लिखता है कि 28 दिसंबर 2023 को रेलवे बोर्ड ने ज़ोनल रेलवे के सभी महाप्रबंधकों को एक एडवाइज़री भेजी है| इसमें कहा गया, ऐसा देखा गया है कि “ज़ोनल रेलवे और अन्य फ़ील्ड यूनिटों के संभाले जाने वाले आरटीआई आवेदनों के जवाब की गुणवत्ता ख़राब हो गई है.”
“कई मामलों में आरटीआई का जवाब देने की समय-सीमा को पार किया गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि फर्स्ट एपेलेट ऑथॉरिटी और केंद्रीय सूचना आयोग के पास लोगों ने बड़ी संख्या में अपीलें दायर कीं. इससे न केवल काम बढे़ बल्कि संगठन की भी बदनामी हुई.”
अख़बार लिखता है कि एडवाइज़री में कहा गया है कि इस समस्या को सुलझाने के लिए क़ानून में जवाब देने की जो समय-सीमा दी गई है, उसका पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए|
इसमें कहा गया है, “आरटीआई जवाबों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आरटीआई के सभी जवाबों को ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधक (जीएम) या मंडल रेलवे प्रबंधक मंज़ूरी (डीआरएम) देंगे. वहीं आरटीआई क़ानून के तहत फर्स्ट अपील के उत्तर में दिए जाने वाले जवाबों को भी संबंधित ज़ोनल रेलवे के महाप्रबंधक (जीएम) या मंडल रेलवे प्रबंधक मंजूरी देंगे.”
क्या है मामला?
आरटीआई क़ानून 2005 के तहत के पूछे गए सवालों के जवाब देने के लिए रेलवे ने सूचना अधिकारी और मुख्य सूचना अधिकारी नियुक्त किए हैं.
दक्षिण रेलवे में सूत्रों के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि क़ानून के तहत जीएम या डीआरएम की न तो एपेलेट ऑथोरिटी और न ही संबंधित ऑथोरिटी के रूप में इसमें कोई भूमिका है.
आरटीआई आवेदन के जिस जवाब को लेकर विवाद हुआ वो जानकारी मध्य रेलवे के डिप्टी महाप्रबंधक अभय मिश्रा ने साझा की थी. उन्होंने एक रेवले के एक पूर्व कर्मचारी अजय बोस के आरटीआई सवाल के जवाब में ये जानकारी साझा की थी.
जानकारी साझा किए जाने के बाद अभय मिश्रा के वरिष्ठ अधिकारी मध्य रेलवे के सूचना अधिकारी शिवाजी मानसपुरे को सात महीने के पद पर रहने के बाद हटा दिया गया. आमतौर पर किसी व्यक्ति को इस पद पर दो साल के लिए नियुक्त किया जाता है.
शिवाजी मानसपुरे के ट्रांसफर से जुड़ी मीडिया रिपोर्टों का ज़िक्र करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “शहंशाह की रज़ा, सच का इनाम सज़ा!”
हालांकि अख़बार लिखता है कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने आरटीआई जवाब को शिवाजी मानसपुरे के ट्रांसफर से जोड़ने की बात को अफ़वाह कहा और कहा कि ऑपरेशन कारणों से उनका ट्रांसफर किया गया है|
नाम न छापने की शर्त पर एक रेलवे अधिकारी ने कहा कि नए दिशानिर्देशों का आरटीआई के जवाब से कोई लेना-देना नहीं है.
वहीं आरटीआई के ज़रिए सवाल पूछने वाले अजय बोस ने अख़बार को बताया कि “दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी रेलवे से भी थ्री-डी सेल्फ़ी बूथ पर किए गए खर्च पर जानकारी के लिए आरटीआई भेजी थी लेकिन उसका जवाब नहीं मिला.”
सौजन्य: बी बी सी
नोट: यह समाचार मूल रूप सेhttps://www.bbc.com/ में प्रकाशित हुआ है और इसका उपयोग पूरी तरह से गैर-लाभकारी/गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से मानव अधिकार के लिए किया गया था।