दलित या ब्राह्मण… रामायण लिखने वाले वाल्मीकि की जाति क्या? एक राज्य तो जांच करवा चुका है
महर्षि वाल्मीकि की जाति पर लंबे वक्त से विवाद है. महर्षि वाल्मीकि की जाति पर लंबे वक्त से विवाद है| अयोध्या हवाई अड्डे का नाम हाल ही में महर्षि वाल्मीकि के नाम पर कर दिया गया. इस बदलाव के साथ ही महर्षि वाल्मीकि फिर सुर्खियों में हैं. आइये उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से जानते हैं|
‘रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि एक ऐसे पात्र हैं, जिनकी अक्सर चर्चा होती है. हाल ही में अयोध्या में बने नए एयरपोर्ट का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखा गया. अयोध्या के नए हवाई अड्डे को अब ‘महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, अयोध्या धाम’ के नाम से जाना जाएगा. इस बदलाव के साथ ही महर्षि वाल्मीकि फिर सुर्खियों में हैं. आइये आपको उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से बताते हैं…
कैसे पड़ा ‘आदि कवि’ नाम?
महर्षि वाल्मीकि को ‘आदि कवि’ भी कहा जाता है. आदि कवि यानी संस्कृत का पहला ‘मूल कवि’. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने रामायण लिखी, जिसे संस्कृत साहित्य परंपरा का पहला महाकाव्य माना जाता है. इतिहासकार रोमिला थापर अपनी किताब ‘अर्ली इंडिया’ में लिखती हैं कि रामायण को ‘आदि काव्य’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि संस्कृत की साहित्य परंपरा में किसी और रचना को आदि काव्य के रूप में वर्णित नहीं किया गया है.
हालांकि यह बहस का विषय है कि वाल्मीकि रामायण, वास्तव में संस्कृत का पुराना ग्रंथ है. वाल्मीकि रामायण और महर्षि व्यास द्वारा रचित ‘महाभारत’ के साहित्यिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि वास्तव में महाभारत, पुराना हो सकता है. इतिहासकारों का तर्क है कि महाभारत के मुकाबले वाल्मीकि रामायण की भाषा कहीं आधुनिक और परिष्कृत दिखती है और इसकी अवधारणाएं बाद के समाज से अधिक जुड़ी नजर आती हैं.
क्या है वाल्मीकि की जाति?
महर्षि वाल्मीकि दलित थे या ब्राह्मण? यह एक ऐसा सवाल है, जिसपर दशकों से बहस होती रही है. देश की तमाम अनुसूचित जातियां खुद को वाल्मीकि का वंशज बताती हैं. उत्तर भारत में तो दलित समुदाय का एक वर्ग, अपने नाम के साथ टाइटल के तौर पर वाल्मीकि लगाता है. जबकि कई ग्रंथों में उन्हें ब्राह्मण बताया गया है.
स्कंद पुराण में क्या बताया गया है?
उदाहरण के तौर पर स्कंद पुराण के नागर खंड में महर्षि वाल्मीकि को ब्राह्मण बताया गया है. पुराण के मुताबिक ब्राह्मण परिवार में जन्में वाल्मीकि के बचपन का नाम ‘लोहजंघा’ था और वह अपने माता-पिता के प्रति बहुत समर्पित थे.
किस राज्य ने बनाई थी कमेटी?
महर्षि वाल्मीकि की जाति पर विवाद इतना पेचीदा है कि साल 2016 में कर्नाटक की सरकार ने उनकी जाति का पता लगाने के लिए 14 सदस्यों की एक कमेटी तक बना दी थी. राज्य सरकार ने ऐसा कन्नड़ लेखक केएस नारायणाचार्य की किताब के उस दावे पर किया था, जिसमें उन्हें ब्राह्मण बताया गया था. नारायणाचार्य के इस दावे पर राज्य का नाविक समुदाय खासा नाराज हो गया था, जो खुद को वाल्मीकि का वंशज बताते हैं. मामला इतना बढ़ा कि कोर्ट तक पहुंच गया|
बहरहाल, तमाम धार्मिक और ऐतिहासिक पुस्तकों में महर्षि वाल्मीकि की जाति के बारे में अलग-अलग दावे किए गए हैं, हालांकि इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है. कई इतिहासकार कहते हैं कि जिस दौर में वाल्मीकि (Valmiki) हुए, उस दौर में जाति का आधार कर्म हुआ करता था. ऐसे में महर्षि वाल्मीकि की जाति ठीक-ठीक बताना मुश्किल है.
जाति पर विवाद की वजह ये किस्सा भी
महर्षि वाल्मीकि की जाति पर विवाद की सबसे बड़ी वजह उनसे जुड़ी एक कहानी है. कई पुस्तकों में ऐसा दावा मिलता है कि महर्षि वाल्मीकि पहले डाकू हुआ करते थे और उनका नाम रत्नाकर था. डकैत बनने से पहले वह ब्राह्मण के घर में थे और बाद में उन्हें एक शिकारी जोड़े ने गोद ले लिया. कुछ जगह तो उनके भील राजा होने का भी जिक्र मिलता है|
सौजन्य: न्यूज़ 18
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