भारत की पहली महिला गाइड, गूगल ने बनाया ब्रांड एम्बेसडर
मैं सूरज बाई मीणा रणथम्भौर के 250 गाइड में से अकेली भारत की पहली महिला गाइड हूं। रणथम्भौर जिसे फोर्ट, नेशनल पार्क, घने जंगल, झील, तालाब, कचिदा वैली, राजबाग के खंडहर और अनगिनत खूबसूरत लोकेशन के लिए जाना जाता है वहां गाइड के साथ नेचरलिस्ट भी हूं। प्रकृति के नजारे यहां हर जगह हैं जिसे देखने पूरी दुनिया से लोग आते हैं। जिप्सी सफारी तो सबसे मशहूर है। रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में सैलानी बाघ देखने आते हैं। केवल बाघ ही नहीं, चीते, हाथी, बारहसिंगा, भेड़िए, जंगली भालू, मगरमच्छ और कई तरह के जंगली जानवर भी यहां हैं।
टूरिस्ट को रणथम्भौर नेशनल पार्क में जंगल सफारी पर ले जाना मेरा काम है। गाइड के रूप में काम करते हुए 16 साल हो गए हैं। जब काम शुरू किया था तब बहुत चुनौतियां आईं, संघर्ष किया। मेरी मेहनत तब रंग लाई जब मुझे ‘महाराजा ऑफ जयपुर’ की ओर से बेस्ट गाइड का खिताब दिया गया।
दैनिक भास्कर के ‘ये मैं हूं’ में आज मेरे इस संघर्ष की कहानी
सुबह 5 बजे घर से निकलती हूं, रात 7-8 बजे लौटती हूं रणथम्भौर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में है। रणथम्भौर नेशनल पार्क की बाउंड्री से ही सटा मेरा गांव भूरी पहाड़ी है। अप्रैल 2007 से नेचर गाइड के रूप में काम कर रही हूं। जब टाइगर सफारी पर जाती हूं तो 10-11 घंटे जंगल में रहना होता है। सुबह 5 बजे घर से निकलती हूं तो रात 7-8 बजे तक घर आ पाती हूं। टाइगर सफारी का शिड्यूल होता है। गर्मी में अलग, सर्दियों में अलग। सुबह 5 बजे निकलने पर दिन के 10.30 बजे घर आती हूं, फिर दोपहर 1 बजे वापस जंगल चली जाती हूं।
रणथम्बौर नेशनल पार्क में विदेशी सैलानी के साथ सूरज मीणा।
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की परीक्षा पास कर लाइसेंस मिला
रणथम्भौर में गाइड बनने के लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की ओर से परीक्षा ली जाती है। ये परीक्षा मैंने भी दी थी। जब वैकेंसी आई तो मैंने भी अप्लाई किया। इंटरव्यू पास कर गई तो एक महीने की ट्रेनिंग हुई। इसके बाद ही गाइड के रूप में काम करने के लिए लाइसेंस मिला।
रणथम्भौर में लाइसेंसी 250 गाइड हैं जबकि 350 ड्राइवर हैं। रोस्टर से ही गाड़ियां चलती हैं और रोस्टर से ही गाइड काम करते हैं। टूरिस्ट की संख्या अच्छी रही तो हम सुबह-शाम दोनों टाइम काम करते हैं।अगर टूरिस्ट नहीं है और रोस्टर से नंबर नहीं आया तो हम नहीं भी जाते हैं। 250 गाइड में मैं अकेली लेडी गाइड
हूं। गाइड बन रही है, गांव वाले कहते-अंग्रेज के साथ चली जाएगी
जब मैंने गाइड के लिए एप्लिकेशन दिया तो पापा ने मना किया। वो कहते कि ये काम उन्हें पसंद नहीं है। गांव से लोग निकाल देंगे। गांव वाले कहते कि गाइड बनकर काम करेगी तो एक न एक दिन अंग्रेजों के साथ चली जाएगी। गांव की इज्जत चली जाएगी। पापा को कई तरह की बातें सुनने को मिलतीं। बेटी को बेच दिया है, अब अंग्रेज ले जाएंगे। पिता को नीचा दिखाया जाता, पंचायत वाले भी दबाते थे। भद्दे कमेंट्स सुनने को मिलते। गांव वाले कहते कि इस काम में इज्जत नहीं है। लड़कों के साथ कैसे काम करेगी। इसकी वजह से गांव की लड़कियों की भी शादी नहीं होगी। इसलिए सबने गाइड बनने से मुझे रोका। पर मैं अपनी जिद पर रही, अपने मन की सुनी।
सूरज को वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का भी शौक है। साथी गाइड बोलते-हिन्दी ठीक से बोलती नहीं, ये क्या गाइड का काम करेगी मैंने जब गाइड के रूप में काम करना शुरू किया तो साथी गाइड मेरी हंसी उड़ाते। कहते कि इसे ठीक से हिन्दी बोलनी नहीं आती, ये गाइड का काम कैसे करेगी। टूरिस्ट के साथ अंग्रेजी में बात करना तो दूर की बात है।
वो हर तरह से जताते कि मैं कितनी कमजोर हूं।
उनकी बात भी ठीक थी, मैंने इसे चैलेंज के रूप में लिया। खूब मेहनत की। मेरे भाई हेमराज ने काफी मदद की। मैं नोटबुक रखती और टूरिस्ट से सुने नए शब्दों को लिख लेती। भाई बताता कि इसे कैसे प्रनाउन्स करना है। शब्दों के अर्थ समझती, सीखती कि कहां किन शब्दों का इस्तेमाल करना है। इन शब्दों को डिक्शनरी से मिलाती। ऐसा करके कुछ ही समय में मैंने अंग्रेजी और हिन्दी पर पकड़ बना ली। ज्यादा पढ़ेगी तो कोई शादी नहीं करेगा मेरा गांव कभी बहुत पिछड़ा हुआ था। पढ़ाई-लिखाई नहीं थी। लोग लड़कियों को पढ़ाते नहीं थे। 12-13 साल की उम्र में शादी हो जाती। मैं छह भाई और दो बहन हूं। मेरी बहन की भी शादी इसी उम्र में हो गई।
गांव वाले कहते कि पढ़ोगी-लिखोगी तो कोई शादी नहीं करेगा। शादी करने के लिए दहेज देना पड़ेगा। इसलिए लड़कियां पढ़ती नहीं थीं। मैंने कहा-मैं पढ़ूंगी।गाइड के साथ सूरज खेतीबाड़ी का भी काम करती हैं। पशुओं के लिए चारा तैयार करतीं सूरज।
पापा जानवर चराने भेजते, मैं स्कूल पहुंच जाती
मेरे गांव में सरकारी स्कूल है। तब पांचवीं तक ही स्कूल में पढ़ाई होती थी। मेरे पापा को पसंद नहीं था कि मैं स्कूल पढ़ने जाऊं। लेकिन बड़े भैया हेमराज कहते कि तुम पढ़ने जाओ। घर में गाय, भैंस, बकरी जैसे पालतू जानवर थे। पापा मुझे जानवरों को चराने के लिए भेजते ताकि मैं स्कूल न जा पाऊं। लेकिन मैं चोरी-चोरी स्कूल पहुंच जाती। बाहर खेतों में जानवर चरते और मैं स्कूल में पढ़ते रहती। पढ़ाई में अच्छी थी। गांव में हाई स्कूल नहीं था, तो मैं भैया के पास सवाई माधोपुर चली आई। भैया कमाते इसलिए घर में उनकी बात सुनी जाती।
बाजरे की खिचड़ी बना खाते, कभी भूखे भी सोना पड़ता
मैं गरीब परिवार से हूं। पिता खेती करते लेकिन 6 भाई और दो बहनों के लिए सब कुछ पूरा करना आसान नहीं रहा। अनाज इतना ही होता कि किसी तरह सबका पेट भर जाए। लेकिन कई बार ऐसा होता कि एक टाइम ही खाना मिलता। सुबह खाया तो शाम को भूखा ही सोना पड़ता। खाने में चपाती-सब्जी मिली तो ठीक नहीं मिली तो बाजरे की खिचड़ी बना खा लेते थे। पापा यही सिखाते कि कुछ भी हो जाए मांग कर नहीं खाना है। जितना है उतना ही खाना है। मेहनत करके ही खाना है। मुझे याद है मेरी मां रात में चक्की पर गेहूं पीसती। रात में केवल 2 घंटे ही सो पाती लेकिन हमलोगों के लिए आटा तैयार करती। दलिया बनाती। जब भाई बड़े हुए तब पिता का बोझ कम हुआ।
छठी क्लास में जाकर A,B,C सीखा
आज के बच्चे केजी और नर्सरी में A,B,C सीखते हैं लेकिन मैंने छठी क्लास में जाकर जाना कि A,B,C क्या होता है। वहीं से 10 प्लस 2 किया। पढ़ाई के दौरान ही मेरी शादी को लेकर बातें होने लगी। कब तक शादी नहीं करेगी, देरी हुई तो शादी नहीं होगी। पापा कहते कि हम दहेज नहीं दे पाएंगे। तब भाई कहते कि मैं तुम्हारी शादी कराऊंगा लेकिन पहले कुछ बन जाओ। भाई हेमराज भी गाइड हैं। उन्होंने मुझे गाइड के रूप में काम करने को मोटिवेट किया। जब मुझे गाइड के रूप में काम करने का लाइसेंस मिल गया तो लोगों का नजरिया बदल गया।
खुद से पैसे कमाने लगी तो अपने पैसों से ग्रेजुएशन किया। आगे बीएड और एमए किया। काम करते हुए पढ़ाई पूरी की। पहले हिन्दी भी मुश्किल से बोल पाती थी आज विदेशी टूरिस्ट के साथ अंग्रेजी में बात करती हूं।
हॉलीवुड के स्टार्स को टाइगर सफारी पर ले जाती हूं |आज मैं दुनिया की नामी-गिरामी कंपनियों के साथ काम करती हूं। न्यू मार्केट, रिवेरा, टाइटन, माउंट वैली, ऑरेंज के साथ काम किया है।
रणथम्बौर के मशहूर होटल ‘सिक्स सेंसेज’ जहां कटरीना कैफ की शादी हुई, उस होटल के लिए भी गाइड का काम किया। ओबेराय होटल और अमान ए खास के साथ भी मेरा कॉन्ट्रैक्ट रहा है। अमान ए खास में हॉलीवुड के स्टार आते हैं। यह बहुत महंगा होटल है।
गूगल ने ब्रांड एम्बेसडर बनाया, सवाई माधोपुर में लगे पोस्टर
मैं एक गाइड के रूप में जितनी भी मेहनत की, उसका फल भी मिला। महाराजा ऑफ जयपुर ने मुजे बेस्ट गाइड का अवॉर्ड दिया। मेरे काम को न सिर्फ प्रोत्साहना मिलती है बल्कि सम्मान भी मिलता है। वुमंस डे पर गूगल ने मुझे ब्रांड एम्बेसडर बनाया। गूगल सर्च इंजन के बड़े से पोस्टर पर मेरी तस्वीर लगी जिसमें लिखा था ‘हमने तो आज तक एक भी महिला फॉरेस्ट गाइड नहीं देखी’ बोलने से सब होगा। ये पोस्टर सवाई माधोपुर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की बिल्डिंग पर लगे। गूगल ने इनवाइट किया। फ्लाइट से मुंबई गई जहां मुझ पर वीडियो बनाई गई।
गांव की जिस लड़की को ठीक से बोलना नहीं आता था, जो भेड़-बकरी चराती थी, वो बड़े पोस्टर पर दिख रही थी। कुछ समय बाद मुझे दुनिया की बड़ी कंपनी कोंडेनेस्ट के लिए चुना गया। महीने के 25-30,000 रुपए कमा लेती हूं गाइड के रूप में मैं रोस्टर के हिसाब से काम करती हूं। टूरिस्ट को ऐसा गाइड चाहिए होता है जो सही से इन्फॉर्मेशन दे सके। गेस्ट संतुष्ट होकर जाएं और कहें कि हमने एंजॉय किया। इसलिए होटल वाले ऐसे ही गाइड को प्रॉयरिटी देते हैं।
होटल से किसी तरह का पेमेंट नहीं मिलता। बुकिंग फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की ओर से की जाती है। जैसी बुकिंग होती है उसी हिसाब से पेमेंट होता है। डेवलपमेंट फीस और कई तरह के एलाउंस काट कर 750-800 एक टाइम के मिल जाते हैं। यानी महीने के 25 से 30,000 रुपए कमा लेती हूं। मैं गाइड के रूप में काम करती हूं लेकिन खेती-किसानी से मेरा परिवार जुड़ा है। साग-सब्जी घर पर उगा लेते हैं, साल भर का अनाज पैदा हो जाता है। घर पर जानवर भी हैं। बच्चों के लिए नोटबुक में लिखती हूं, खाने में ये बनाया है
गाइड के रूप में काम करने के लिए मुझे ससुराल वालों ने काफी सपोर्ट किया है। शादी के बाद मुझे अच्छी फैमिली मिली। पति प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाते हैं। मुझे 11 साल की बेटी और 9 साल का बेटा है।
बच्चों को पढ़ाने के लिए रणथंबौर में किराये पर घर लिया है। पति भी हमेशा मोटिवेट करते हैं कि जो तुम करना चाहती हो करो। मैं हर सुबह 3 बजे उठती हूं, नहा-धोकर पूजा करती हूं। नाश्ता तैयार करती हूं और एक नोटबुक में लिख देती हूं कि नाश्ते में ये-ये बना दिया है, खा लेना। सुबह 5 बजे निकलती हूं और दिन के 11 बजे आ जाती हूं। इस समय तक बच्चे स्कूल में और पति कॉलेज जा चुके होते हैं। 1 बजे निकलने से पहले मैं लंच तैयार करती हूं और फिर नोटबुक में लिखती हूं कि खाना खा लेना। इस बीच बर्तन धोना, कपड़े धोना और घर के दूसरे काम भी निपटाती हूं। 1 बजे फिर से जंगल चली जाती हूं और 7-8 बजे लौटती हू। फिर पूरे परिवार के लिए खाना पकाती हूं।
रणथम्बौर के भूरी पहाड़ी गांव में अपने परिवार के साथ सूरज मीणा। ससुराल में घूंघट में रहती हूं, जंगल सफारी में सलवार सूट पहनती हूं घर में अभी भी पर्दा सिस्टम है। जब ससुराल में रहती हूं तो घाघरा चोली पहन कर रहती हूं। घूंघट में रहती हूं। लेकिन जब जंगल सफारी पर जाती हूं तो सलवार सूट पहनती हूं। परिवार की ओर से कोई रोक-टोक नहीं की जाती। कई बार होटल वाले ड्रेस कोड के बारे में बोलते हैं। जींस या पैंट पहनने को कहते हैं। लेकिन मैं बोल देती हूं कि मैं गांव से हूं। पैंट या जींस पहनने से भारतीय संस्कृति नहीं झलकेगी। मैं जितनी पढ़ी-लिखी हूं, उस लिहाज से सलवार सूट ही सही है।
स्कूल-कॉलेज में बोलने के लिए बुलाते हैं
मीणा कम्यूनिटी की लड़की जब पहली बार हवाई जहाज में बैठ कर गांव आई तो सबने ऐसे स्वागत किया जैसे कोई अजूबा काम हुआ है। मैं गांव की पहली लड़की बनी जो फ्लाइट में बैठी। गांव में मेरी आरती उतारी गई। मुझे हमेशा यह अफसोस रहा कि स्कूल-कॉलेज में मेरी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई। काम के साथ पढ़ाई बहुत मुश्किल था। केवल पास करने के लिए डिग्री ली। लेकिन इन्हीं स्कूल-कॉलेज में मुझे बोलने के लिए बुलाया जाता है। ये एक सपने के सच होने जैसा है।
सूरज की वजह से गांव की लड़कियां को लोग पढ़ा रहे
अब गांव के ही लोग कहते हैं कि सूरज की वजह से अंधियारा छंटा है। जिस गांव में लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता था, वहां लड़कियां पढ़-लिख रही हैं। लोग बेटों से ज्यादा बेटियों को पढ़ा रहे। गांव की कई लड़कियां डॉक्टर, नर्स, पुलिस बनने की तैयारी कर रही हैं। पेरेंट्स खुशी-खुशी उन्हें भेज रहे। मुझे लगता है कि भले मैंने पैसे कम कमाए हैं लेकिन मेरी वजह से गांव में एक बड़ा बदलाव हुआ है।
विदेशी कहते हैं लंदन, अमेरिका चलो, मैं कहती हूं जंगल ही मेरा घर
कई विदेशी टूरिस्ट मेरे अच्छे दोस्त हैं। अमेरिका, इंग्लैंड के कई मशहूर फोटोग्राफर कहते हैं कि विदेश चलो। वहां घूमो, दुनिया को जानो, डोनेशन की बात करते हैं। कहते हैं कि बच्चों का फ्यूचर बन जाएगा। मैं कहती हूं कि जंगल ही मेरा घर है। जब मेरे पास कुछ नहीं था तो भी मैं कुछ बन गई। वैसे ही बच्चे भी अपनी जगह बनाएंगे। मैं खुद अपनी मेहनत से पढ़ाऊंगी।
सौजन्य :दैनिक भास्कर
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