सविता सिंह से बनी सविता अली:खाप पंचायतों के खौफ के कारण पानीपत से पटना पहुंची, दलितों के हक की लड़ाई लड़ रही
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मैं सविता अली पेशे से वकील हूं। आप मुझे नारीवादी एडवोकेट कह सकते हैं क्योंकि मैं दलित और मुस्लिम महिलाओं के केस लड़ती हूं। पटना हाई कोर्ट और सेशंस कोर्ट में प्रैक्टिस करती हूं। ह्मूमन राइट्स एक्टिविस्ट भी हूं और पिछले 10 सालों से दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हूं।
भाई इंग्लिश मीडियम में, मैं सरकारी स्कूल में पढ़ी
मैं हरियाणा के पानीपत जिले के नरैना गांव की रहने वाली हूं। पिता बैंक अधिकारी हैं। हम तीन बहनें और दो भाई हैं। मैं घर में सबसे बड़ी हूं। सरकारी गर्ल्स स्कूल में 10वीं तक पढ़ाई की। जबकि भाइयों की पढ़ाई-लिखाई इंग्लिश मीडियम स्कूल में हुई।
पापा चाहते तो हमें भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सकते थे। लड़कियां साइकिल नहीं चला सकतीं, उनका वोटर कार्ड नहीं बन सकता, ये हरियाणा में आम है। किसी ने 10वीं तक पढ़ाई कर ली तो वही बहुत है। मैंने एमए तक की पढ़ाई की, ये बड़ी बात थी।
कैसे बाप हो, लड़की को घर में बिठा रखा है
जब मैंने बीए की पढ़ाई पूरी कर ली तो समाज के लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। आसपड़ोस के लोग पापा को कहते कि जवान बेटी को घर में बिठा रखा है। इसकी शादी क्यों नहीं करते। घर से बाहर निकली, किसी के साथ गई किसी से बात की तो सजा के रूप में शादी की ही बात की जाती है। ये हमेशा सुनने को मिलता। गांव में जिसकी बेटी की शादी हुई तो समझो गंगा नहा लिया। मुझ पर शादी का दबाव बनाया जाता।
मां ने मुझे सपोर्ट किया। उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश के लिए आंगनबाड़ी सुपरवाइजर की नौकरी छोड़ दी। किसी से बात करने में भी डर लगता, आज कोर्ट में बहस करती हूं|
मैं बचपन में काफी शर्मीली थी। जब घर में कोई आता तो खुद को किसी कमरे में बंद कर लेती। मैं काले रंग, कम हाइट, देखने में बिल्कुल एवरेज, ऊपर से इंट्रोवर्ट लड़की थी। लोग कहते-इस लड़की का क्या होगा। मैंने अपने जीवन के 25 वर्ष इसी तरह निकाले। लेकिन जब नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्मूमन राइट्स (NCDHR) से जुड़ी तो इसने मेरी पर्सनैलिटी को बदल दिया।
इस दौरान दलित और हाशिये पर खड़े लोगों के लिए मैंने काम करना शुरू किया। गांव-गांव घूमती, लोगों से बात करती। मुद्दों को समझती। कैसे लोग जाति की वजह से शोषित होते हैं। हरियाणा में मेवात, पानीपत, जिंद, हिसार, अंबाला, करनाल में काम किया। हाशिये पर खड़े लोगों के बीच से लीडरशिप तलाशती। मेरा नारा-जिनकी लड़ाई, उनकी ही अगुवाई।
हरियाणा में सफाईकर्मी, नाली साफ करने वाले, मैला ढोने वाली कम्यूनिटी के बीच जाती, उनके अधिकारों पर बात करती।
इन सबके बीच लगा कि कानून की पढ़ाई जरूरी है। तब मैंने 2008 में एलएलबी में एडमिशन लिया। 2010 में पासआउट होने के बाद 2011 में बार काउंसिल में एंरॉलमेंट हो गया।
मुस्लिम लड़के से शादी की, पानीपत से पटना आ गई
2013 में मैंने शादी कर ली। लड़का मुस्लिम परिवार से होने की वजह से विरोध भी हुआ। हरियाणा में जहां पुलिस को उतनी पॉवर नहीं जितना खाप पंचायतों का दबदबा है। इसलिए मैंने पहले से ही तैयारी कर ली थी।
1 जून को शादी हुई और 2 जून को बिहार आ गई। पिछले 10 वर्षों से बिहार में रह रही हूं। पति सफदर अली सीतामढ़ी के हैं। शादी के बाद मैंने नई जिंदगी की शुरुआत की। खुद को भीतर से मजबूत बनाया।
शादी के बाद कुछ समय तक घर पर बैठी रही। लेकिन मुझे किचन से नफरत है। चूल्हा-चौका के लिए नहीं बनी हूं। इसलिए पटना में भी मैंने काम शुरू किया।
पति को ताने मिलते, मुस्लिम लड़की से शादी क्यों नहीं की
मुस्लिम परिवार में शादी होने से पहले कई तरह के मिथ को जानती थी। मुस्लिम पर भरोसा नहीं कर सकते, खतरनाक होते हैं, गंदे रहते हैं, हिंदू लड़की को प्यार के जाल में फंसाते हैं, बुरका में रखेंगे। मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पति को ताने मिलते कि गैर मुस्लिम लड़की से शादी क्यों की? लेकिन मेरे पति ने पूरी तरह सपोर्ट किया। जब मैंने काम शुरू किया तो पति ने कभी रोका नहीं। परिवार में भी बहुत प्यार, सम्मान मिला।
कोर्ट में सुनवाई के पहले दिन बोल नहीं पाई
मैंने HRLM के कॉर्डिनेटर के रूप में काम शुरू किया। लीगल जर्नी शुरू हुई। सीनियर वकीलों से काफी कुछ सीखा। पहले दिन कोर्ट में सुनवाई के दौरान मैं बोल नहीं पाई। मैं कांप रही थी। मुझे पता नहीं था कि कोर्ट का स्ट्रक्चर क्या है, बहस कैसे की जाती है। मी लॉर्ड बोलना है या सर, ये भी नहीं पता था।
लेकिन मैंने बहुत आत्मविश्वास के साथ काम करना शुरू किया। रात-रात भर केस के सभी पॉइंट्स लिखती। मेरा आर्ग्यूमेंट शानदार रहते। केस जीतने लगी तो तारीफें भी मिलीं। जब मामला हाई कोर्ट गया तो वहां भी आरोपित का बेल रिजेक्ट हुआ। तब बहस सुनने के लिए कोर्ट में वकीलों की भीड़ लग गई।
कई वकीलों ने मुझे महिलाओं से जुड़े केस में बहस करने का ऑफर दिया, कहा कि वे बहस का पैसा देंगे। छह महीने के अंदर ही मेरे पास 100 केस आ गए। घरेलू हिंसा, मैटरिमोनियल, मेंटनेंस, कस्टडी, म्यूचुअल कंसेंट से डाइवोर्स के केस लड़ने लगी।
आज मैं 200 केस पर काम कर रही हूं। 498 ए, फैमिली कोर्ट, कस्टोडियल डेथ, विच हंटिंग, एससी-एसटी केस, सिवरेज डेथ, मॉब लिंचिंग, हेट क्राइम, पॉक्सो, रेप, गैंगरेप, किडनैपिंग, मर्डर, सेक्सुअल हैरासमेंट जैसे केस लड़ती हूं।
लीगल एड के लिए वकीलों की टीम बनाई
कोर्ट में प्रैक्टिस के साथ लीगल अवेयरनेस और लीगल एड पर काम शुरू किया। दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग जेल में सड़ते रहते हैं और वकील नहीं कर पाते। मैंने 60-70 वकीलों की टीम बनाई। साथ ही बिहार लीगल नेटवर्क की भी स्थापना की और इसे मूवमेंट की शक्ल दी।
FIR लिखने की ट्रेनिंग देती
मैं लोगों को एफआईआर लिखना सिखाती हूं। किसी फिल्मी स्टोरी की तरह अधिकतर मामलों में पीड़ित से चार लाइन सुनकर एफआईआर लिख ली जाती है । लेकिन ऐसा कानून में नहीं चलता। जितना मजबूत एफआईआर, उतने मजबूत सेक्शन लगेंगे।
लोगों को यह बताती हूं कि सही सेक्शन में केस दर्ज हुआ है या नहीं। अगर रेप हुआ है और थाने में अटेम्प्ट टू रेप दर्ज करा दिया गया है तो फिर केस ऐसे ही कमजोर हो गया। रेप के कंपन्सेशन अलग हैं अटेम्प्ट टू रेप के अलग। चार लोगों ने रेप किया तो सिंपल रेप केस लगा देते हैं। एफआईआर में कई बार लिखा जाता है कि मेरे साथ गलत हुआ। ऐसा लिखेंगे तो कोर्ट में जाकर क्रॉस हो जाएगा।
सेक्शन भी नहीं लगता। आपको बताना होगा कि रेप हुआ है या नहीं। जब पुलिस किसी को गिरफ्तार करने पहुंचती है तो पीड़ित के क्या-क्या अधिकार हैं, ये बताती हूं।
300 वोलेंटियर को ट्रेनिंग दी गई है। 200 से अधिक वकील सात जिलों में हैं। लीगल अवेयरनेस कैंप लगाती हूं। लोगों को स्पेशल एक्ट के बारे में बताती हूं। केस पर काम शुरू करने से पहले सरवाइवर की पूरी स्टोरी सुनती हूं।
इवा फाउंडेशन से महिलाओं को स्किल्ड बना रही
मैंने इवा फाउंडेशन भी बनाया है जिसके जरिए महिलाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देती हूं। इवा में कंप्यूटर सेंटर और सिलाई सेंटर चलाया जाता है। महिलाओं को आजीविका मिले, वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें, इस लिहाज से 500 से अधिक महिलाओं को सशक्त किया है।
लड़कियों को कहती हूं कि पढ़-लिखकर वकील बनो।
महिलाओं के खिलाफ क्राइम करने वालों को बेल नहीं दिलवाती मैं समाज के अलग-अलग वर्ग की महिलाओं का केस लड़ती हूं। बार गर्ल हो या सेक्स वर्कर। कई लोग कहते हैं कि मैम, ऐसी औरतों के केस क्यों लेती हैं। मैं कहती हूं कि आप रेपिस्ट को छुड़वाते हो तो मैं पीड़ित को मदद क्यों नहीं कर सकती। इसलिए पॉक्सो, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, दलित महिला की हत्या, रेप जैसे क्राइम में बेल नहीं करवाती।
मैं कहती हूं कि एक करोड भी दोगो तो बेल नहीं करवाऊंगी।
बिहार में 6 साल में 586 कस्टडी में मौत
दलित और अल्पसंख्य समुदाय के लोगों पर आज भी अत्याचार कम नहीं हुआ है। बिहार में शराबबंदी के मामले में जितने लोग जेल भेजे गए उनमें 80-90% लोग दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। ऐसा नहीं है कि केवल इन्हीं समुदाय के लोग शराब पीते हैं।
RTI से पता चला कि बिहार में 2006 से 2011 के बीच 586 लोगों की हिरासत में मौत हुई है। 2021 और 2022 में भी कस्टोडियल डेथ के 7-8 मामले सामने आए। इसी में खुलासा हुआ कि कस्टोडियल डेथ को अननेचुरल डेथ एफआईआर बना दिया गया।
सौजन्य :दैनिक भास्कर
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