डीआरआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- अडानी के खिलाफ कोयला घोटाले की जांच जारी रहेगी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक शपथ पत्र में डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस यानि डीआरआई ने कोयला आयात के ओवर वैल्यूएशन के मामले की जांच को आगे बढ़ाने की बात दोहराई है। उसका कहना है कि वह उस प्रक्रिया का पालन कर रही है जिसके तहत उसने सिंगापुर से तमाम जरूरी दस्तावेजों को हासिल करने के लिए मुंबई कोर्ट के जरिये लेटर रोगेटरी जारी करवाया है।
लेटर रोगेटरी एक तरह का औपचारिक निवेदन होता है जिसमें किसी विदेशी संस्था को शामिल करने के लिए जांच के समय न्यायिक सहयोग की मांग की जाती है।
यह शपथ पत्र 10 अक्तूबर को भरा गया है। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के साथ एक दूसरे केस को भी नत्थी कर दिया जिसमें हैदराबाद के रहने वाले ज्वेलर पर ड्यूटी फ्री गोल्ड की स्मगलिंग का आरोप लगा था। यह ऑर्डर अडानी समूह के लिए था। इस केस की पिछले चार सालों में पांच बार सुनवाई हुई है। लेकिन अभी भी इसमें आखिरी बहस नहीं हो पायी है।
अपने हालिया एफिडेविट में डीआरआई ने इस बात को चिन्हित किया है कि एजेंसी नहीं बल्कि अडानी समूह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसका कहना है कि अगर जांच झूठी और चलते-फिरते तरीके से होती तो सिंगापुर और भारत की अदालतें याचिकाकर्ता के आवेदन पर पहले ही इस मामले को खारिज कर देतीं।
इसके विपरीत एजेंसी ने इस बात को चिन्हित किया कि अगस्त, 2016 में मुंबई की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की ओर से जारी लेटर रोगेटरी के तहत उसने सिंगापुर के एटार्नी जनरल के चैंबर (एजीसी) के जरिये सिंगापुर स्टेट कोर्ट के सामने आवेदन दिया जिसमें उसने सिंगापुर आधारित अडानी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड, सिंगापुर (एजीपीटीई) और सिंगापुर आधारित इससे संबंधित दूसरे समूहों के खिलाफ छह प्रोडक्शन ऑर्डर जारी करने की मांग की।
इसी तरह से एजीसी ने सिंगापुर हाईकोर्ट के सामने आवेदन दिया और अडानी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड के 20 बैंकों के खिलाफ 20 प्रोडक्शन आर्डर हासिल किए। इन प्रोडक्शन ऑर्डरों को जुलाई-अगस्त 2017 के दौरान अडानी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड, उसके समूह, संबंधित कंपनियों और बैंकों को दे दिया गया।
डीआरआई ने आगे बताया कि जांच के लिए वह जरूरी दस्तावेजों तक पूरी पहुंच इसलिए नहीं बना सकी क्योंकि अडानी समूह की कंपनियों और बैंकों ने आवश्यक सहयोग नहीं किया।
इसीलिए एजेंसी का कहना था कि यह बहुत जरूरी महसूस होने लगा था कि संबंधित दस्तावेज लेटर रोगेटरी के यंत्र के जरिये ही हासिल किया जा सकता है।
इस रास्ते पर जाने की अनुमति वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय के जरिये हासिल की गयी है। डीआरआई 2011 और 2015 के बीच कम से कम 29000 करोड़ रुपये के इंडोनिशिया से आयातित कोयले के कथित ओवर वैल्यूएशन से जुड़ी 40 कंपनियों की जांच कर रही है। सूची में छह अडानी की कंपनियां शामिल हैं जिसमें अडानी इंटरप्राइजेज और अडानी पावर प्रमुख हैं।
अडानी समूह का किसी भी गलती से इंकार
2016 में एजेंसी ने अपने फील्ड अफसरों और पूरे देश के स्तर पर कस्टम को आयातित कोयले की बढ़ी खरीद कीमत के मोडस आपरेंडी पर जनरल अलर्ट जारी किया। जिसमें पैसे को विदेश ले जाना और आयातित कोयले की कृत्रिम तौर पर बढ़ी कीमत के आधार पर उच्च बिजली कीमतों का मुआवजा हासिल करने का उद्देश्य था।
डीआरआई का 2016 का अलर्ट कहता है कि इंडोनेशियाई कोयला इंडोनेशिया पोर्ट से सीधे भारत आता था। जबकि सप्लायरों की इनवायसेज में इन्हें सिंगापुर, दुबई, हांगकांग, ब्रिटिश वर्जिन आइसलैंड आदि आधारित एक या फिर ज्यादा दूसरे रास्तों से ले आया जाता था जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मनचाहा तरीके से कीमतों को बढ़ाना था।
डीआरआई एलर्ट में कहा गया है कि बीच की कंपनियां ऐसा लगता है कि या तो भारतीय आयातकों की सहयोगी कंपनियां थीं या फिर उनकी सिस्टर कंपनियां थीं। अलर्ट में कहा गया है कि जिन मामलों की जांच की जा रही है उसमें बहुत ज्यादा ओवर वैल्यूएशन है जो 50 फीसदी से 100 फीसदी तक जाता है।
अडानी समूह के खिलाफ डीआरआई का केस इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि नवंबर, 2017 में सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीईआरसी) ने इस बात को चिन्हित किया था कि इंडोनेशिया से कोयला आयात के दौरान कथित तौर पर लगायी गयी ज्यादा कीमतों का मामला उस मुआवजे को प्रभावित करेगा जिसे अडानी पावर हरियाणा में डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों से हासिल कर रहा है। अडानी समूह ने राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में भी वितरण कंपनियों से मुआवजे हासिल किए हैं।
सिद्धांत में कोयले की ज्यादा कीमत उत्पादन की लागत को बढ़ा देती है, इससे सीईआरसी या फिर संबंधित स्टेट रेगुलेटरी कमीशन द्वारा तय की गयी बिजली की कीमतें बढ़ जाती हैं और इसका नतीजा यह होता है कि उपभोक्ताओं को बिजली की महंगी कीमत देकर चुकानी पड़ती है।
डीआरआई ने तब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है जब सितंबर 2018 में बांबे हाईकोर्ट ने सिंगापुर समेत दूसरे देशों को एजेंसी द्वारा भेजी गयीं सभी लेटर रोगेटरी को रद्द कर दिया था।
जनवरी, 2020 में पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया। उसके बाद फरवरी, 2020 में दूसरी सुनवाई के दौरान तब के चीफ जस्टिस एसए बोबडे के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने केस को एक हफ्ते बाद सुनवाई के लिए रखने का आदेश दिया।
अडानी समूह ने काउंटर शपथ पत्र पेश करने में 22 महीने लगा दिए और उसने इस काम को 2021 में किया। और फिर अगली सुनवाई के लिए उसने 19 महीने ले लिए। इसके बाद आखिर में केस दिसंबर 2021 में सुनवाई के लिए आया। जब सुप्रीम कोर्ट ने डीआरआई से दस्तावेजों के साथ अतिरिक्त शपथपत्र और रिज्वाइंडर शपथ पत्र जमा करने के लिए कहा और मामले को 10 अक्तूबर को सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया।
10 अक्तूबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दो सवाल पूछे क्या डीआरआई अफसर पुलिस अफसर हैं? और दूसरा यह कि कस्टम एक्ट, किसी को गिरफ्तार करने से पहले 1962 के तहत 133 से 135 के सेक्शन का एफआईआर दर्ज होना जरूरी है? यह इस केस के लिए प्रासंगिक है और इस बात का निर्देश दिया कि दोनों मामलों को उचित बेंच के सामने पेश किया जाए।(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिया गया है।)
सौजन्य :जनचौक
नोट : समाचार मूलरूप से janchowk.comमें प्रकाशित हुआ है मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित !