इविवि के दलित छात्र को पीटने वाले प्रोफेसर पर प्रशासन मेहरबान, अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई, छात्र आक्रोशित
प्रयागराज। इविवि के दलित छात्र को पीटने वाले प्रोफसर पर आखिर प्रशासन क्यों मेहरबान है? मामले में लगातार आंदोलन और चेतावनी के बाद भी प्रोफेसर को क्यों बचाने का प्रयास किया जा रहा है। बता दें कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय 1887 में बना था। ये अब केंद्रीय विश्वविद्यालय है, लेकिन पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इस विश्वविद्यालय के छात्र अब यहां के विचारों के कारण आंदोलित हैं। दरअसल, 17 अक्टूबर को चीफ प्रॉक्टर डॉ. राकेश सिंह द्वारा एक दलित छात्र नेता विवेक कुमार को लाठियों से जमकर पिटाई कर दी गयी। छात्र से गाली-गलौज की।
सोशल मीडिया पर पिटाई का वीडियो भी वायरल हुआ। जिसमें सबकुछ स्पष्ट रूप से देखा-सुना गया। जौनपुर के टीडी कॉलेज से कुछ साल पहले सीधे इलाहाबाद विश्वविद्यालय पहुंचे। छात्रों का कहना है कि डॉ. राकेश सिंह पढ़ाने से ज़्यादा अपनी ‘ठकुरई’ के लिए फेमस हैं। जिस तरह वीडियो में वे लाठियां भांज रहे थे। उसे देखकर लगता है कि वह ‘अदंड्य’ होने यानी किसी भी सूरत में दंडित न होने को लेकर उनका आत्मविश्वास दिखाई दे रहा है।
प्रोफेसर के इस कृत्य से छात्रों में काफी रोष है, लेकिन कैंपस में किसी तरह के विरोध-प्रदर्शन की इजाज़त नहीं है। प्रो. यू.एन. सिंह की कुर्सी पर विराजमान मौजूदा कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव कुछ समय पहले सुबह की अज़ान से होने वाली परेशानी की सार्वजनिक शिकायत करके देश भर में चर्चित हुई थीं, लेकिन एक दलित छात्र की चीख और अपने प्रॉक्टर की लाठीबाजी पर उन्होंने जुबान को सिल रखा है।
इविवि में छात्रनेता विवेक कुमार की पिटाई के बाद कई दूसरे कैंपसों में विरोध के स्वर फूट रहे हैं। बनारस से लेकर लखनऊ तक इसका विरोध लगातार दिख रहा है। छात्रों का कहना है कि गैरबीजेपी छात्र संगठनों का मोर्चा बन रहा है। यह सबसे बड़ा मुद्दा है कि पिटाई और गाली-गलौज का वीडियो वायरल होने के बावजूद पुलिस प्रशासन प्रॉक्टर डॉ. राकेश सिंह के ख़िलाफ़ एफ़आईआर नहीं लिख रहा है। जबकि इस मामले में अनुसूचित जाति उत्पीड़न से जुड़ा एक्ट भी लगना चाहिए। छात्रों ने कहा कि योगी सरकार प्रोफेसर पर मेहरबान है। जिसकी वजह से अभी तक कार्रवाई नहीं कि गयी है।
क्या था मामला
दरअसल, पिछले दिनों इलाहाबाद युनिवर्सिटी में पढ़ाई से लेकर छात्रावासों की फीस में सैकड़ों गुना का इज़ाफ़ा हुआ है। इसके ख़िलाफ़ छात्रों ने आंदोलन किया जिसे लेकर छात्रनेता अजय यादव सम्राट जितेंद्र धनराज और सत्यम कुशवाहा कई महीनों से जेल में हैं। छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के इशारे पर उन्हें फ़र्जी मुक़दमे में फँसाया गया है।
इनकी रिहाई की माँग को लेकर जब ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) नेता और शोध-छात्र मनीष कुमार ने फेसबुक पर पोस्ट लिखी तो उन्हें निलंबित ही नहीं किया गया, परिसर में प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया गया।
निलंबन रद्द करने की माँग को लेकर जब छात्र नेता हरेंद्र यादव ने कुलपति को ज्ञापन देने का प्रयास किया तो उन्हें एम.ए. तृतीय सेमेस्टर की परीक्षा देने से रोक दिया गया। इन्हीं सब मुद्दों पर 17 अक्टूबर को आइसा नेता विवेक कुमार अन्य छात्रों के साथ प्रशासन से विरोध जताने गये थे जब उन पर बर्बर लाठीचार्ज हुआ जिसका वीडियो वायरल है।
बता दें कि प्रो. यूएन सिंह 1980-1983 के बीच इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उनके कार्यकाल में एक बार पुलिस ने हॉस्टल में घुसकर छात्रों पर लाठीचार्ज किया था। जिसके बाद वह स्वयं से दुःखी होकर छात्रावासों में जाकर छात्रों से खेद प्रकट किया था और घायल छात्रों के उपचार की पूरी व्यवस्था की थी।
उन्हें देखकर लगता था कि वह ‘कुल’ के पति या पालक होने का मतलब समझते थे और छात्रों को इसका अहसास भी कराना चाहते थे। लेकिन यहां आज के प्रोफेसर छात्रों पर लाठी बरसाने के बाद उनका इलाज कराना तो दूर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा रहे है। इस गंभीर मामले में प्रोफेसर पर कोई कार्रवाई करने वाला नहीं है।
सौजन्य : Amrit vichar
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