भेदभाव और अभाव का दर्द महसूस करते रहते हैं दलित
सरवन राम दारापुरी के बारे में तब ज्यादा जानकारी नहीं थी जब पंजाब का रहने वाला भारतीय पुलिस सेवा का यह अधिकारी उत्तर प्रदेश राज्य में कार्यरत था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अनुसूचित जाति के लिए काम किया जिससे वह संबंधित हैं। अभी हाल ही में 79 वर्ष से अधिक आयु में उन्होंने राजस्व आयुक्त गोरखपुर मंडल के कार्यालय पर दलितों के एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया और हत्या के प्रयास के गम्भीर आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
गोरखपुर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शरणस्थली है। न तो राजस्व और न ही गोरखपुर के पुलिस अधिकारी तेज-तर्रार मुख्यमंत्री के विरोधियों की किसी भी अवज्ञा को नरम करने वाले थे। ऐसे मौकों पर दिखाई गई कोई भी कमजोरी अधिकारियों के लिए बुरा संकेत होगी। इसलिए वह हद से आगे बढ़ गए और अपराध के तथ्य को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जिसका दोष आंदोलनकारियों पर डाला जा सकता था। जैसा कि अपेक्षित था, प्रदर्शन में भाग लेने वाले कुछ हद तक अनियंत्रित थे।
राजस्व आयुक्त के कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ कुछ झड़पें हुईं और ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ या अधिक अधिकारियों को धक्का दिया गया था। उनके साथ हाथापाई भी की गई लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि चोटों को बलात्कार और हत्या के प्रयास के योग्य बनाने के लिए उचित रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। राजस्व और पुलिस दोनों अधिकारियों के मन में योगी की छवि रही होगी और उन्होंने ‘प्रभावी कार्रवाई’ की रिपोर्ट करना उचित समझा होगा, इस तथ्य के बावजूद की प्रमुख अपराधियों में से एक वरिष्ठतम पदानुक्रम से संबंधित पुलिस प्रतिष्ठान एक पुराना सहयोगी था।
बेचारे दारापुरी, जब वह सेवा में थे तब मैंने उनके बारे में नहीं सुना था। मुझे अब पता चला है कि वह पाॢकसंस रोग से पीड़ित हैं। प्रदर्शनकारियों में शामिल होने यहां तक कि उनके नेतृत्व करने का उनका एकमात्र इरादा अपने समुदाय के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना था। हो सकता है कि उनकी भी दलित नेता बनने की आकांक्षा रही हो लेकिन 79 वर्ष की उम्र में और दुर्बल करने वाली बीमारी के कारण यह आकांक्षा संभव नहीं हो सकी होगी। कहानी का दिलचस्प हिस्सा वो मांग है जो आंदोलनकारियों ने योगी सरकार से करने का फैसला किया था। उन्होंने क्षेत्र में प्रत्येक दलित परिवार के लिए एक एकड़ जमीन की मांग की । भूमि का स्वामित्व सदैव एक प्रतिष्ठा का प्रतीक रहा है। हमारे देश में उच्च जातियां हमेशा भूमि के स्वामित्व के माध्यम से ओ.बी.सी. और अनुसूचित जातियों पर अपना वर्चस्व दिखाती रही हैं।
मेरे अपने पैतृक राज्य गोवा में पुर्तगाली विजेताओं द्वारा भूमि स्वामित्व को बनाए रखने का लालच देकर पर्यावरण को प्रेरित करने की सूचना मिली है। ब्राह्मण, जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं और क्षत्रिय (स्थानीय रूप से चार्डोस के रूप में जाने जाते हैं) बड़े जमींदार थे। उनसे कहा गया था कि यदि वह धर्म परिवर्तन करते हैं तो उनका स्वामित्व बरकरार रहेगा, जो उनमें से कइयों ने किया। नेहरूवादी युग में समाजवाद का बोलबाला था। भूमि हदबंदी कानून पारित किए गए। हालांकि उनका कार्यान्वयन असंतुलित था। बंगाल एक ऐसा राज्य था जहां भूमि हदबंदी कानूनों को कार्यान्वयन के लिए गम्भीरता से लिया गया था। मेरे दत्तक राज्य महाराष्ट्र में जहां मेरे पिता का परिवार लगभग 200 साल पहले बस गया था। मुझे मेरे मित्र जोसफ बेयाने डिसूजा जो राज्य के पूर्व सचित थे, ने बताया कि उन्होंने स्वेच्छा से एक बड़ा परिवार त्याग दिया है।
बेयाने ‘ईस्ट इंडियन’ समुदाय से थे। स्थानीय महाराष्ट्रीयन पुर्तगालियों द्वारा लगभग 450 वर्ष पहले उसी समय ईसाई धर्म में परिवर्तित हुए। जब गोवा में हिन्दू, मेरे अपने पूर्वजों की तरह परिवर्तित हुए थे। उनका परिवार बड़े जमीन मालिकों में से एक था। बेयाने कानून और नियमों के कट्टर समर्थक थे वह अनुपालन करने वाले पहले लोगोंमुझे नहीं पता था कि उत्तर प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट का क्रियान्वयन इतना आगे बढ़ा है। मैं केवल इतना जानता हूं कि दारापुरी और उनके अनुयायियों द्वारा उठाई गई मांग इस राज्य में पूरे राजनीतिक परिदृश्य में क्रांति ला देगी। यदि मांग अधिक कठोर, लगातार और व्यापक हो जाती है।
यह एक ऐसी मांग है जिसे यदि स्वीकार कर लिया जाता है तो यह भाजपा के आधार मतदाताओं को नाराज कर देगी लेकिन यह भारतीय समाज में दलितों की स्थिति को मजबूत करने की क्षमता रखती है। आर.एस.एस. नेतृत्व दलितों का हिन्दू धर्म में स्वागत करने में बहुत मुखर रहा है। लेकिन अधिकांश उच्च जाति के हिन्दू अभी भी पुराने ब्राह्मणवादी आदेश का पालन करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप दलित भेदभाव और अभाव का दर्द महसूस करते रहते हैं। गांवों में उनके घर बाहरी इलाकों में बने होते हैं और वह जो काम करते हैं वह अभी भी छोटे स्तर का होता है। वे भूमिहीन मजदूरों का बड़ा हिस्सा है जो मालिकों की जमीन पर खेती करते हैं।
दारापुरी की पहल अगर सफल हुई तो सामाजिक व्यवस्था में बदलाव आना तय है। यह कभी सफल होगा, इसमें संदेह हैं। निहित स्वार्थ वाले लोग जिनका सरकार पर सबसे अधिक प्रभाव है, विरोध करने के लिए बाध्य हैं। दारापुरी का उद्देश्य कभी भी हत्या करना या कोई शारीरिक नुक्सान पहुंचाना नहीं था। दारापुरी और उनके दोस्तों को खुश होना चाहिए अगर उनके निवास स्थानों को ध्वस्त करने के लिए बुल्डोजर का प्रयोग नहीं किया जाता है। गरीब दलितों के लिए जमीन की मांग 2024 के करीब आते ही हमारे सामने उभर रहे चुनावी परिदृश्य का हिस्सा है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
सौजन्य : Punjab kesari
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