संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के न्यूय़ॉर्क कार्यालय के निदेशक क्रेग मोखाइबर ने इस्तीफ़ा
फ़िलिस्तीन में जारी जनसंहार के विरोध में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के न्यूय़ॉर्क कार्यालय के निदेशक क्रेग मोखाइबर ने इस्तीफ़ा दे दिया है। अपने इस्तीफ़े में मोखाइबर ने अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप की ज़्यादातर सरकारों को इस भयावह जनसंहार में शामिल होने का दोषी ठहराया है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त को भेजे उनके इस्तीफ़े का अनुवाद :
प्रति : वोल्कर तुर्क, मानवाधिकार उच्चायुक्त, पैलेस विल्सन, जेनेवा
प्रिय उच्चायुक्त,
मानवाधिकार उच्चायुक्त के न्यूयॉर्क कार्यालय के निदेशक के रूप में यह आपसे मेरा अंतिम आधिकारिक संचार होगा।
मैं ऐसे समय में यह लिख रहा हूँ जो मेरे कई सहयोगियों समेत दुनियाभर के लिए अत्यधिक पीड़ा का क्षण है। एक बार फिर, हम अपनी आँखों के सामने एक जनसंहार घटित होते देख रहे हैं, और जिस संगठन की हम सेवा करते हैं वह इसे रोकने में शक्तिहीन प्रतीत होता है। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने 1980 के दशक से फिलिस्तीन में मानवाधिकारों की जाँच की है, 1990 के दशक में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सलाहकार के रूप में गाज़ा में रहा, और उससे पहले और बाद में उस देश में कई मानवाधिकार मिशन संचालित किए हैं, मैं इसे बेहद व्यक्तिगत रूप से अनुभव कर रहा हूँ।
मैंने (संयुक्त राष्ट्र के) इन हॉलों में तुत्सी, बोस्नियाई मुसलमानों, यज़ीदी और रोहिंग्या के खिलाफ जनसंहार के दौरान भी काम किया है। हर मामले में, जब अरक्षित नागरिक आबादी के ख़िलाफ की गई बर्बरता थमी, तो यह दर्दनाक रूप से स्पष्ट हो गया कि हम सामूहिक अत्याचारों की रोकथाम, कमज़ोर लोगों की सुरक्षा और अपराधियों की जवाबदेही तय करने की बुनियादी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। और संयुक्त राष्ट्र के पूरे कार्यकाल के दौरान फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ हत्या और उत्पीड़न की लगातार जारी लहरों के मामले में भी ऐसा ही हुआ है।
उच्चायुक्त, हम फिर से नाकाम हो रहे हैं।
इस क्षेत्र में तीन दशकों से अधिक के अनुभव वाले एक मानवाधिकार वकील के रूप में, मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि जनसंहार की अवधारणा का अक्सर राजनीतिक दुरुपयोग होता रहा है। लेकिन इस समय जारी फ़िलिस्तीनी लोगों के बड़े पैमाने पर जनसंहार को लेकर सन्देह या बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। इसकी जड़ें एक नस्ली-राष्ट्रवादी उपनिवेशवादी विचारधारा में निहित हैं, और यह पूरी तरह से अरब लोगों के रूप में उनकी स्थिति पर आधारित व्यवस्थित उत्पीड़न और निष्कासन के दशकों की निरंतरता में है, और इस बारे में इज़रायली सरकार व सेना के नेताओं के स्पष्ट इरादे ज़ाहिर करने वाले अनेक बयान आ चुके हैं। गाज़ा में नागरिकों के घरों, स्कूलों, चर्चों, मस्जिदों और चिकित्सा संस्थानों पर बेतहाशा हमले किए जाते हैं और हज़ारों नागरिकों का क़त्लेआम किया जाता है। क़ब्ज़े वाले यरुशलाम सहित, वेस्ट बैंक में, पूरी तरह से नस्ल के आधार पर घरों को ज़ब्त करके दूसरों को दे दिया जाता है, और सेटलर्स द्वारा उजाड़े जाने के हिंसक अभियान इजरायली सैन्य इकाइयों के साथ मिलकर चलाए जाते हैं। पूरे देश में नस्लभेद का राज है।
यह जनसंहार का एक ‘टेक्स्ट-बुक केस’ मामला है। फ़िलिस्तीन में यूरोपीय, नस्ली-राष्ट्रवादी, सेटलर औपनिवेशिक परियोजना वहाँ मूल फ़िलिस्तीनी जीवन के अन्तिम अवशेषों का भी तेज़ी से विनाश करने की दिशा में अपने अन्तिम चरण में प्रवेश कर गई है। इतना ही नहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका, युनाइटेड किंगडम और यूरोप की ज़्यादातर सरकारें इस भयानक हमले में पूरी तरह से शामिल हैं। न सिर्फ़ ये सरकारें जेनेवा कन्वेंशन का “सम्मान सुनिश्चित करने के” अपने दायित्वों को पूरा करने से इनकार कर रही हैं, बल्कि वे वास्तव में सक्रिय रूप से हमले के लिए हथियार दे रही हैं, आर्थिक और जासूसी सहायता प्रदान कर रही हैं, और इज़राइल के अत्याचारों के लिए राजनीतिक और राजनयिक कवर दे रही हैं।
सौजन्य : सत्यम वर्मा की फेसबुक वाल से