INDIA गठबंधन में दरार:मोहब्बत की दुकान पर तैरते ग्रहण के बादल, साइकिल को नहीं पसंद हाथ का साथ
रहीम दास का ये दोहा सपा और कांग्रेस के आपसी संबंधों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। बहुत गाजे बाजे के साथ विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं ने INDIA गठबंधन बनाया था और दावे किए थे कि भाजपा को हराएगें। बैठकों तक तो गठबंधन की गाड़ी ठीक चली, मगर चुनाव की जमीन पर सीट शेयरिंग की बात आते ही गठबंधन की गांठें कमजोर पड़ने लगी हैं। इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा के बीच हुई तकरार के जरिए सबके सामने है।
सपा अध्यक्ष को मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दगाबाजी ऐसी दिल से लगी कि आमतौर पर मर्यादित रहने वाले अखिलेश यादव यूपी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को ‘चिरकुट’ तक बोल गए। बकौल अखिलेश यादव मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने एक भी सीट सपा को ना देकर उन्हें धोखा दिया है। इस धोखे से बौखलाए अखिलेश ने ‘INDIA’ गठबंधन पर सपा के शामिल होने को लेकर पुनर्विचार तक की बात कह दी थी, मगर शनिवार को दिल्ली के एक फोन के बाद से अखिलेश यादव के तेवर थोड़े नरम पड़े। बयानवीर सपा नेताओं को भी अखिलेश ने लक्ष्मण रेखा ना लांघने की हिदायत दी है।
MP में कांग्रेस से 6 सीट मांग रही थी सपा, न मिलने पर 33 उम्मीदवार उतारे
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग में सपा को 6 सीटें देने की बात कही गई थी। मगर, कांग्रेस ने 144 सीटों की जो सूची जारी की है, उसमें सपा को एक भी सीट नहीं दी है। साथ ही, 2018 के चुनाव में सपा ने जो सीट जीती थी, उस पर भी कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतार दिया है। हालांकि सपा ने कांग्रेस की लिस्ट से पहले ही 7 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी थी। इस वार-पलटवार के बाद तो सपा ने अपने 33 प्रत्याशी मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव मैदान में उतार दिए हैं। आपको बता दें कि 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा ने 1 सीट जीती थी। साथ ही पांच सीटों पर वह दूसरे नंबर पर थी। सपा ने 2018 में आदिवासी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन किया था।
MP में जीत की उम्मीद और भविष्य के खतरे भांपकर कांग्रेस चल रही अकेले
मध्यप्रदेश की राजनीति को बहुत करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक का मानना है कि कांग्रेस को लगता है कि पिछले चुनाव में सपा की वजह से वो कुछ सीटों पर जीतते-जीतते हार गई थी। यूपी के बुंदेलखंड से सटी कुछ सीटों पर सपा का जातिगत समीकरण कांग्रेस से बेहतर है, जिसके चलते 2018 के चुनाव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा था। साथ ही सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के सहारे अपना सियासी कैनवास अन्य राज्यों मे भी बढ़ाना चाहती हैं, जिसके दूरगामी परिणाम में कांग्रेस को अपना सियासी नुकसान होता दिखाई पड़ रहा है।
योगी-केशव मौर्य की सीट पर उपचुनाव से खराब हुए थे राहुल-अखिलेश के संबंध
अखिलेश की नाराजगी कांग्रेस को लेकर पहले भी रही है, जो मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में जाहिर हो गई। मुलायम सिंह यादव 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। मगर, अखिलेश ने पिता की इच्छा के विरूद्ध जाकर सियासी प्रयोग किया था, मगर ‘यूपी के लड़के’ कोई कमाल नहीं दिखा पाए। सपा 224 से घटकर 47 सीटों पर आ गई। वहीं, कांग्रेस भी 28 सीटों में से 7 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ की सीट पर उपचुनाव होने थे, जिसमें अखिलेश यादव ने गठबंधन के साथी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से कई बार बात करना चाही, लेकिन राहुल ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। नतीजा गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा ने अपने प्रत्याशी उतार दिए।
कांग्रेस ने उस वक्त भी गठबंधन धर्म को तोड़ते हुए गोरखपुर से सपा के प्रवीण निषाद के खिलाफ अपने प्रत्याशी सुरहिता करीम को उतार दिया था। जिनकी जमानत तक जब्त हो गई थी। फूलपुर से भी कांग्रेस ने मनीष मिश्रा को मैदान में उतारा था, लेकिन सपा के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने चुनाव जीता था। हालांकि बाद में कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा के उपचुनाव में सपा रालोद गठबंधन को समर्थन दिया था।
कांग्रेस नेताओं ने अखिलेश के बयान पर जताई आपत्ति, बताया मिसाइल
अजय राय पर अखिलेश यादव की टिप्पणी पर कांग्रेस नेता अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि जो अपने पिता का सम्मान नहीं कर पाया वो किसी और का क्या सम्मान करेगा। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तो अखिलेश के बयान को ‘इजराइल की मिसाइल’ बना दिया। बयानरूपी मिसाइल से ‘गठबंधन रूपी इमारत’ में दरारें पड़ना तय है। सपा राष्ट्रीय सचिव राजीव राय ने तो मध्यप्रदेश को आगामी लोकसभा में यूपी में दोहराने की बात कह दी।
दरअसल, सपा और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर चल रही अंतर्कलह तब बाहर आई जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस के यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को चिरकुट कह दिया। उनके इस बयान के बाद तो जैसे दोनों तरफ से बयानों की बाढ़-आ गई। दोनों ओर के नेता बयानवीर बन गए। कमलनाथ भी मीडिया वालों से बात करने के दौरान कौन ‘अखिलेश-वखिलेश’ तक बोल गए। इस रार का आनंद लेते हुए भाजपा ने अपने सोशल मीडिया हैंडिल से कमलनाथ का अखिलेश को लेकर बोला गया वीडिया भी साझा किया है। सपा नेता आईपी सिंह की राहुल गांधी पर अमर्यादित टिप्पणी को तो अखिलेश यादव ने खुद ही डिलीट तक करवाया।
MP का सीट बंटवारा नहीं, अखिलेश की नाराजगी की वजह OBC राजनीति है
राजनीति के जानकारों की मानें तो अखिलेश का ये गुस्सा महज कुछ सीटों पर बात ना बन पाने की वजह से नहीं है, बल्कि कांग्रेस जिस तरह से सपा के मुद्दों को अपना बनाती दिख रही है, उसको लेकर है। सूत्रों की मानें तो सपा के कई नाराज नेता कांग्रेस के बड़े नेताओं से बराबर मिल रहे हैं। इस बात को लेकर अखिलेश खासे नाराज भी थे। उनकी नाराजगी तभी सामने आ गई थी जब कांग्रेस ने जाति जनगणना के मुद्दे पर समर्थन दिया था।
अखिलेश ने उस वक्त कांग्रेस पर तंज भी कसा था कि ‘चमत्कार’ हो गया। सपा को ये लगता है कि अगर कांग्रेस ओबीसी की राजनीति करती है तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान सपा को होगा। उत्तर प्रदेश में सपा मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद है। ऐसे में अगर कांग्रेस जातिगत जनगणना, दलितों की हितैषी बनने का दावा करेगी तो मुसलमान वोटरों का झुकाव भी लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस की तरफ हो सकता है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने जिस तरह से इमरान मसूद का अपनी पार्टी में स्वागत किया है उससे पश्चिमी यूपी में कांग्रेस की स्थिति में सुधार होगा, जिसका सीधा नुकसान सपा को होगा।
कांग्रेस-बसपा गठबंधन हुआ तो सपा को होगा सबसे ज्यादा नुकसान
सपा ने जिस PDA को अपनी राजनीति का केन्द्र बिन्दु बनाया है, उसमें उसे सेंधमारी होती दिख रही है। दलित चिंतक और लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रविकांत का मानना है कि कांग्रेस अगर बसपा से यूपी में गठबंधन करती है तो उसे सीटों के साथ वोट प्रतिशत का भी फायदा होगा। क्योंकि OBC वोटरों में सेंधमारी ज्यादा होगी।
भाजपा की निगाह भी OBC वोटरों पर है, उसके सहयोगी दलों में सभी OBC के अपने क्षेत्र के नेता हैं। ऐसे में कांग्रेस का हाथ बसपा के साथ ज्यादा जगह मोहब्बत की दुकान खोल पाएगा, वरना 2017 विधानसभा में जो हुआ सभी ने देखा था। प्रदेश ने ‘यूपी के लड़कों’ के साथ को नामंजूर कर दिया था और भाजपा ने मैदान मार लिया था।
भाजपा से सीखें गठबंधन धर्म क्या होता है: भाजपा प्रवक्ता
भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला कहते हैं कि पूरी सपा आज यूपी में हंसी का पात्र बन चुकी है। भाजपा ने हमेशा अपने साथ के छोटे दलों को इज्जत दी और बड़े दिल के साथ गठबंधन धर्म निभाया है। कई राज्य ऐसे हैं जहां भाजपा के पास बहुमत है फिर भी सहयोगी दलों को पूरी इज्जत देते हैं। भाजपा अपने वादे पर कायम रहती है। चाहें वो जनता से करे या फिर गठबंधन के सहयोगियों से। उन्हें भाजपा से सीखना चाहिए कि गठबंधन धर्म क्या होता है।
MP में कांग्रेस वाली रणनीति UP में अपना सकती है सपा
सपा के अंदर के सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में खुद को मजबूत मानते हुए जिस तरह से गठबंधन धर्म की अनदेखी की है, समाजवादी पार्टी भी उसी फॉर्मूले पर काम करते हुए ऐसा ही रवैया कांग्रेस के साथ अपना सकती है। लेकिन दो दिन से बदले हुए राजनीतिक घटनाक्रम से ये तो तय है कि इंडिया गठबंधन में दरार पड़ चुकी है साथ ही लोकसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे पर रार होना तय है। 80 सीटों वाला उत्तर प्रदेश भाजपा और विपक्ष दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण है।
पटना में बने इंडिया गठबंधन की गाड़ी बेंगलुरु, मुंबई तक तो ठीक चली मगर मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सपा ने जो तेवर दिखाए हैं कांग्रेस के खिलाफ उससे गठबंधन की नैया डगमगाती दिख रही है। महाराष्ट्र में भी आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सभी 48 सीटों पर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में गठबंधन दलों के साथ सीट शेयरिंग का फार्मूला तय कर पाना कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द होने वाला है।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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