डी यू :करीब 50 दिन से घरने पर बैठी दलित शिक्षक ने कहा ”नौकरी नहीं ,न्याय चाहिए ”
”जब हमारी बच्ची जीते जी कह रही है कि मैं जातिगत भेदभाव का शिकार हूं तो हमें बस पहुंचना है ना हमें मोमबत्तियां लेकर पहुंचना है ना हमें झंडे लेकर मार्च करना है।”
दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैंपस में आर्ट फैकल्टी के गेट के बाहर अगस्त के आख़िरी हफ़्ते से चल रहे दलित एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ऋतु सिंह के धरने को क़रीब पचास दिन होने को आए। देर शाम हम उनके धरने में एक बार फिर पहुंचे, तमाम लोगों की भीड़ में कुछ चेहरे अपनी तरफ ध्यान खींच रहे थे। माइक पर बारी-बारी से लोग आ रहे थे और डॉ. ऋतु के समर्थन में अपनी बात रख रहे थे। लोग बता रहे थे कि पूरे देश में 2023 में भी दलितों को क्या कुछ झेलना पड़ रहा है। बहुत ही कम रौशनी में हमारा ध्यान गया उन चेहरों पर जो बहुत ही ध्यान से हर किसी की बात सुन रहे थे। अपनी समझ के मुताबिक जब उन्हें सही लग रहा था तो वे ताली भी बजाते। चेहरे पर कोई भाव नहीं, दुबला-पतला शरीर इस बात की चुगली कर रहा था कि पता नहीं इन लोगों ने आख़िरी बार पेट भर पौष्टिक भोजन कब किया था?
”बाबा साहेब की तस्वीर थी तो हमें पता चल गया कि हमारे लोग हैं”
लोगों की भीड़ में बैठे लेकिन अपने हालात की कहानी बयां करते इन लोगों से हमने बात की तो पता चला वे दलित मजदूर हैं। बलबीर वर्मा, बांदा, यूपी से और लल्लू राम, महोबा से इनके साथ एक 12-13 साल का लड़का भी था ये तीनों डॉ ऋतु सिंह के प्रोटेस्ट में शामिल होने हर शाम अपनी बेलदारी, मजदूरी का काम ख़त्म कर पहुंच जाते हैं। वे बताते हैं उन्ही के जैसे क़रीब 20-25 लोग दलित मजदूर हैं और आजकल दिल्ली यूनिवर्सिटी में ही चल रहे कंस्ट्रक्शन के काम में बेलदारी और मजदूरी का काम कर रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि उन्हें इस प्रोटेस्ट के बारे में कैसे पता चला तो वे बताते हैं कि ” हम तो काम करके आ रहे थे इस बैनर को देखा जिसपर बाबा साहेब की तस्वीर थी तो हमें पता चल गया कि हमारे लोग हैं तो हम इसमें सम्मिलित हो गए। फिर उन्होंने (डॉ. ऋतु सिंह) हमें सब बताया तो हमें पता चला कि ये हमारे समाज की लड़ाई है, धरना है।”
”कभी जीवन में दिहाड़ी नहीं बढ़ सकती”
दिल्ली शहर में कमाने आए बलबीर और लल्लू राम से बात करके हैरानी होती है। उन्होंने अपनी मजदूरी के बारे में बताया कि ” हमको 340 रुपये दिहाड़ी मिलती है। बीच के दलाल खाते हैं। हमें लाने वाला कोई ठेकेदार मान लो 10 रुपया कमीशन खाता है। बाकी के जो मुंशी हैं, सुपरवाइज़र हैं। तमाम लोगों से होते हुए हमारे हाथ में सिर्फ 340 रुपये दिहाड़ी आती है। मजबूरी में घर चलाते हैं। ये दिल्ली है यहां हम किसी को पहचानते नहीं जो हमें लेकर आता है तो हम जब उससे कहते हैं तो वो कहता है कि कभी जीवन में दिहाड़ी नहीं बढ़ सकती।”
”जबरन मजदूरी करवा लेते हैं और पैसे नहीं देते”
बलबीर की ये बातें हैरान करने के साथ ही परेशान करने वाली भी हैं। इन दोनों से बात करके पता चला कि आज भी इन्हें गांव देहात में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लोग जबरन मजदूरी करवा लेते हैं और पैसे नहीं देते। उम्मीद लिए शहरों का रुख़ किया तो यहां भी सरकार के द्वारा तय की गई न्यूनतम मजदूरी से कम में अपनी जिन्दगी खपा रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद जहां इन्हें बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर और नीला झंडा दिखा लगा कि अपना समाज है और उसमें साथ देने पहुंच गए और रोज़ चाहे दो लोग चाहे दस डॉ. ऋतु सिंह के धरने में रात को पहुंच जाते हैं।
”नौकरी नहीं, न्याय चाहिए”
इससे पहले, हम डॉ. ऋतु के धरने के पांचवे दिन उनसे मिलने पहुंचे थे उस दिन के धरने और आज के धरने में बहुत अंतर आ चुका है। कभी तेज़ धूप तो कभी बारिश में अपने धरने को संभाल रही एक महिला एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर के मुताबिक अब उनका धरना एक आंदोलन में तब्दील हो गया है। वे साफ कहती हैं कि अब उन्हें ‘नौकरी नहीं, न्याय चाहिए’।
”शुरू तुमने किया अंत अंबेडकरवादी करेंगे”
दिल्ली यूनिवर्सिटी के दौलत राम कॉलेज में एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर रही डॉ. ऋतु सिंह ने प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय पर 2020 में जातिगत आधार पर उन्हें हटाने का आरोप लगाया था। तब से वे कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। अगस्त के आख़िरी हफ्ते में जब वे धरने पर बैठी थीं तो उन्होंने दौलत राम कॉलेज की प्रिंसिपल की बर्खास्तगी की मांग की थी लेकिन उनका कहना है कि ” हमारी सुनवाई इतनी जल्दी नहीं होती। लेकिन हमारे हौसले पहले दिन की तरह आज भी बुलंद हैं और ऐसे ही रहेंगे। हम अब एक ही चीज़ पर चल रहे हैं कि शुरू तुमने किया अंत अंबेडकरवादी करेंगे। तुमने बेईमानी करी अब इसे अंजाम तक हम लेकर जाएंगे। ये ऐसी लड़ाई हो रही है जिसमें लोगों को समझ में आ रहा है कि आज डॉ. ऋतु है कल को हम भी हो सकते हैं। तो आज हमने सच का साथ नहीं दिया तो कल कुछ भी हो सकता है।”
सौजन्य : न्यूज़ क्लिक
नोट : समाचार मूलरूप से hindi.newsclick.in में प्रकाशित हुआ है मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित !