भीड़ ने 16 दलितों को मारा, 31 साल बाद इंसाफ:फैसले से पहले 36 आरोपियों की मौत, 9 को उम्रकैद, कैसे बरी हुए 41 आरोपी ?
‘कुम्हेर हत्याकांड’ के पार्ट-1 में आपने पढ़ा (अगर नहीं पढ़ा है तो इस खबर के अंत में उसका लिंक है) कि किस तरह फिल्म टिकट का छोटा सा विवाद राजस्थान की सबसे बड़ी जातीय हिंसा में बदल गया। फिर बदले की आग में भीड़ ने 16 लोगों की हत्या कर दी।
इस मामले में 20 दिन बाद ही CBI जांच बैठा दी गई थी, जिसमें पूरी कहानी सामने आई कि 16 लोगों को मारते समय भीड़ बर्बरता पर उतर आई थी। लोग जान की भीख मांग रहे थे लेकिन दंगाई बेखौफ थे। महिलाओं से भी अश्लीलता की भी हदें पार कर दी थीं।
इस हत्याकांड के पीड़ितों को इंसाफ के लिए 31 साल तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। इस दौरान 20 जज बदल गए और सजा का फैसला आने से पहले ही 36 मुजरिमों की तो मौत हो गई। जो जिंदा बचे उनमें से 41 कोर्ट में बरी हो गए।
पार्ट-2 में पढ़िए कुम्हेर हत्याकांड में कैसी बर्बरता की गई और क्या 31 साल बाद भी पीड़ितों को इंसाफ मिल पाया ?
7 मौत होते ही थाने पहुंचा SHO, FIR लिखी और डीएसपी को मिली जांच
6 जून 1992 के दिन हत्याकांड के बाद शाम करीब सवा पांच बजे कुम्हेर के तत्कालीन SHO राजकरण सिंह ने थाने जाकर 37 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया। उनकी लिखी FIR में था कि दोपहर 2 बजे के करीब 5 से 6 हजार लोगों की भीड़ ने पुलिस पर भी हमला बोल दिया था। जवाब में पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन भीड़ कंट्रोल नहीं हुई।
दंगाइयों को रोकने के लिए 30 राउंड फायर भी किए। लेकिन कुछ ही देर में भीड़ ने 50 से 60 घर पूरी तरह आग के हवाले कर दिए। 250 से ज्यादा मकानों में आगजनी कर दी। दो अज्ञात सहित कुल 7 लोगों को जान से मार दिया। भीड़ में शामिल 37 लोगों पर SHO राजकरण सिंह ने धारा 147, 148, 149, 323, 307, 302, 436, 427 व 3 SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाया था। मामला दर्ज होने के तुरंत बाद इसकी जांच रेंज ऑफिस के डीएसपी लोकेश कुमार को दी गई।
देश भर में बवाल, 20 दिन बाद CBI को दी गई जांच
‘कुम्हेर कांड’ ने देश की राजनीति में तब भूचाल ला दिया था। तब रामविलास पासवान से लेकर मायावती व देश के लगभग सभी दलित नेता कुम्हेर पहुंचे थे। उन्होंने इस मामले को लेकर संसद व विधानसभा से लेकर सड़कों पर हत्याकांड के खिलाफ आवाज उठाई थी। यही दबाव था कि घटना के 20 दिन बाद राज्य सरकार की सहमति से 26 जून 1992 को इस मामले की जांच CBI को सौंपी गई।
27 अगस्त 1993 को राज्य सरकार से मिली अभियोजन स्वीकृति के बाद CBI ने मामले में चार्जशीट पेश कर दी। CBI ने अपनी चार्जशीट में 87 लोगों के खिलाफ धारा 147, 148, 149, 323, 324, 325, 326, 380, 451, 427, 429, 435, 302, 436, 354 व 153 ए व 3 SC/ST एक्ट के तहत अलग-अलग 3 धाराओं में आरोप पेश किए।
CBI इन्वेस्टिगेशन में सामने आई दंगे की बर्बरता
CBI ने अपनी पड़ताल में माना कि 6 जून को कुम्हेर में जो जातीय हिंसा भड़की थी वो एक जून को सिनेमा हॉल में हुए विवाद का प्रतिफल था। इसके बाद से ही कुम्हेर में अलग-अलग जगहों पर दलित और अन्य वर्ग के लोग आमने-सामने होना शुरू हो गए थे। कई जगहों पर मारपीट हुई। इसके बाद कुम्हेर बस स्टेशन पर उत्पात भी मचाया गया।
इसके विरोध में 6 जून को पैंगोर के चामुंडा माता मंदिर के बाहर दूसरे वर्ग के लोगों ने महापंचायत बुलाई थी। भीड़ कुम्हेर की तरफ रवाना हुई और 16 दलितों की हत्या कर दी। इनमें से 5 के शवों की शिनाख्त आजतक नहीं हो पाई है।
महापंचायत से निकली भीड़ ने ऐसे की लोगों की हत्या
वीदो पत्नी रामदयाल : दंगाइयों की भीड़ ने कुम्हेर के बड़ा मौहल्ला में स्थित उसके घर में घुसकर मार डाला था। उसके शरीर पर 7 चोटें थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये सामने आया कि यहीं चोटें उसकी मौत का कारण बनी थी।
रामखिलाड़ी और उसकी पत्नी लोंगों : रामखिलाड़ी और उसकी पत्नी लोंगो खेत में काम कर रहे थे। तभी वहां दंगाइयों कि भीड़ पहुंच गई। यहां भीड़ ने इन्हें घेरकर मारपीट करते हुए दोनों की हत्या कर दी। पड़ताल में ये भी सामने आया कि इसी खेत में भीड़ ने दो दलित महिलाओं को नग्न कर उनके साथ अश्लीलता की हदें पार कर दी थी। दोनों महिलाएं अभी भी जिंदा हैं।
रघुवीर पुत्र हब्बा : दंगों के दिन रघुवीर कुम्हेर के बड़ा मोहल्ला में अपनी इकलौती बेटी रामभजी के ससुराल में आया हुआ था। उसे बेटी के घर में ही बने एक कमरे में दंगाइयों ने मार डाला। उसके शरीर पर 5 चोटें थी। शव की हालत ये थी कि पहले तो उसकी शिनाख्त ही नहीं हो पाई थी। उसे मवासी पुत्र रोशन के रूप में पहचाना गया पर बाद में मवासी हॉस्पिटल में जिंदा मिल गया। इसके बाद ही उसकी सही शिनाख्त हो पाई थी।
भगवत पुत्र परभाती : दंगा भड़कने के बाद भीड़ से बचने के लिए भगवत खेतों की तरफ भाग रहा था। उसे भीड़ ने बीच रास्ते में ही पकड़ लिया। मारपीट के बाद भगवत बुरी तरह घायल हो गया था। शाम को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया पर रात होते-होते उसने दम तोड़ दिया था।
कैला पुत्र कारे : कैला को दंगाइयों की भीड़ ने बड़ा मोहला कुम्हेर में स्थित उसके बेटे के घर की पहली मंजिल पर बने कमरे में घुस कर मार डाला था।
हब्बल पुत्र किरोड़ी : हब्बल को भीड़ ने तब मारा जब वो अपने खेतों के पास बचने के लिए लोगों से शरण मांग रहा था। लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। भीड़ ने पहले उसके साथ मारपीट की और फिर उसे जिंदा ही जला दिया।
नत्थीलाल पुत्र मरुआ : नत्थीलाल डीग स्कूल में चपरासी था। दंगे भड़कने से ठीक पहले वो अपने गांव जा रहा था। इस दौरान जब वो चामुंडा माता मंदिर के पास पहुंचा तो उसे बड़ी भीड़ आती दिखाई दी। उसने पास ही स्थित छिद्दा के घर में शरण पाने के लिए छिद्दा से शरण मांगी लेकिन उसे मदद नहीं मिली। इसके बाद वो बादामी जाटव के ट्यूबवेल की तरफ भागा जहां उसे भीड़ ने पकड़ लिया। संगीन मारपीट के बाद उसे वहां अधमरा छोड़ दिया गया। इसके बाद जब भीड़ कुम्हेर से वापस लौट रही थी तो अधमरी हालत में पड़े नत्थीलाल को जिंदा ही जला दिया गया।
गोपाली पुत्र बुड्ढा : गोपाली कुम्हेर के ही मोहिंदर नाम के व्यक्ति के खाली घर में छिपा गया था। लेकिन भीड़ ने उसे वहीं पकड़ लिया और धारदार नुकीले हथियार से वार कर मौत के घाट उतार दिया।
दूरगीराम पुत्र चेताराम : दूरगीराम को भीड़ ने डीग गेट कुम्हेर स्थित उसकी तेल मिल में घेर लिया था। वहां उसके साथ संगीन मारपीट की गई। देर शाम घायल हालत में उसे हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। 20 जून को उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई।
बुद्धिराम : कुम्हेर के बड़ा मौहल्ला का रहने वाला बुद्धिराम जान बचाने के लिए भाग रहा था। हालांकि वो कुछ दंगाइयों से भी मिला हुआ था। बावजूद इसके उसे दंगाइयों ने जिंदा जला दिया था। उसके पैर का एक छोटा सा हिस्सा ही बच पाया था, इसके अलावा पूरा शरीर राख में बदल गया था।
पति के सामने महिला के प्राइवेट पार्ट में डाल दी लाठी
सैंथरी गांव निवासी एक महिला (पहचान छुपा रहे हैं) अपने पति व रिश्तेदारों के साथ गांव से भाग रही थी तो कुम्हेर कस्बे के पास खेतों में भीड़ ने उसे घेरते हुए उसके साथ मारपीट की। यहां दंगाइयों की भीड़ ने उसके प्राइवेट पार्ट में लाठी डाल दी। वहीं एक अन्य महिला के कपडे फाड़ दिए गए।
283 लोगों के बयान, CBI ने मामले में 87 आरोपी बनाए
सीबीआई ने मामले में 283 लोगों के बयान लेने के बाद जांच पूरी कर कुल 87 लोगों को आरोपी बनाया गया। इनके खिलाफ धारा 147, 148, 149, 323, 324, 325, 326, 380, 451, 427, 429, 435, 302, 436, 354 व 153 ए व 3 SC/ST एक्ट के तहत अलग-अलग 3 धाराओं में चार्जशीट पेश की थी।
फैसले से पहले ही 36 आरोपियों की मौत, एक आरोपी अभी तक फरार
मामले की सुनवाई के दौरान फैसला आने से पहले ही सूरजमल, पुष्पेंद्र, कप्तान महाराज सिंह, जगदीश प्रसाद झा, कैलाशी, जगदीश, मनोहरी, दाऊदयाल, गुलाबसिंह, प्रेमसिंह, राजवीरसिंह, बदनसिंह, भूप सिंह, छीतरसिंह, अमोली, रोशनसिंह, अर्जुनसिंह, सोवरनसिंह, गुलाबसिंह, बुड्ढा, कंचनसिंह, सोहनलाल, रामकिशन, करणसिंह, हरदम, उम्मेदसिंह, श्रीचंद, जगराम, चंदालाल, करणसिंह, कमलसिंह, बच्चू, सुजानसिंह, पूरन, कमलसिंह और चतरसिंह की मौत हो गई। वहीं एक अन्य आरोपी महेश पुत्र मंगतूराम पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पाया, जिसके चलते उसे भगौड़ा घोषित किया गया था।
234 गवाहों में से 49 गवाह हुए पक्षद्रोही, 31 साल में 20 जज बदले
सुनवाई के दौरान सीबीआई की तरफ से 234 मौखिक गवाह कोर्ट में पेश किए गए। इनमे से 49 गवाह कोर्ट में दिए गए बयानों से पक्षद्रोही साबित हो गए। वहीं सीबीआई ने जांच में 427 दस्तावेजी एविडेंस भी पेश किए थे। केस की सुनवाई के दौरान और फैसला आने से पहले तक 12 इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर और 20 जज बदल गए।
41 आरोपी हुए बरी, 9 आरोपियों को उम्रकैद की सजा
इस मामले में सीबीआई की तरफ से पेश किए गए कई चश्मदीद गवाहों के कोर्ट में पक्षद्रोही होने के बावजूद बाकी बचे चश्मदीदों के बयानों व केस से जुड़े तथ्यों व सबूतों के आधार पर कोर्ट ने 31 साल बाद अपना फैसला सुनाया। भरतपुर की SC/ST कोर्ट की विशिष्ट न्यायाधीश गिरिजा भारद्वाज ने जिंदा बचे 50 आरोपियों में से 9 आरोपियों को दोषी माना। वहीं 41 आरोपी संदेह का लाभ लेकर बरी हो गए।
कोर्ट ने 9 आरोपियों लक्खो पुत्र रामसिंह, राजवीर पुत्र फ़ोंदी, शिव सिंह पुत्र रामसिंह, मानसिंह पुत्र भमरी, गोपाल पुत्र उदयराम, प्रीतमसिंह पुत्र गिरिराज सिंह, पारस जैन पुत्र माणकचंद जैन, चेतन पुत्र जयसिंह और प्रेमसिंह पुत्र वेदो सिंह को धारा 148, 302/149, 304/149, 323/149, 324/149, 325/149, 326/149, 435/149, 436/149, 429/149, 451/149, 380/149, 153A/149 व SC/ST एक्ट की धारा 3 (2)(3), 3 (2)(4) और 3 (2)(5) के तहत दोषी माना।
31 साल क्यों लगे फैसले को आने में?
एडवोकेट राजेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि इस केस में पहला जजमेंट आने में 31 साल का लंबा वक्त लगा। इसके पीछे कई कारण थे। पहला तो इस केस में 283 गवाह थे। सभी गवाहों को गवाही के लिए तलब करने और उनकी गवाही लेने में ही काफी टाइम लग गया था। वहीं दूसरा कारण बना ट्रायल के दौरान 36 मुजरिमों की मौत होना।
किसी केस में जब भी किसी मुजरिम की मौत होती है तो हर बार कोर्ट में उसका डेथ सर्टिफिकेट पेश करना पड़ता था। जिसमे काफी वक्त लगता है। इस केस में 36 बार ये प्रोसेस हुई। हर बार इसके चलते ट्रायल भी डिले हुआ। इसके अलावा सीबीआई के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (लोक अभियोजक) की गैरहाजिरी भी कई बार रही। कई बार ऐसी स्थिति बनी कि कोर्ट में गवाह मौजूद थे पर सीबीआई का लोक अभियोजक नहीं पहुंचा। कई बार अभियोजक पहुंचा और गवाह नहीं पहुंच पाए।
यहीं हाल इस केस से जुड़े सरकारी गवाहों व दस्तावेजी रिकॉर्ड्स का रहा। इस केस में देरी होने का तीसरा सबसे बड़ा कारण रहा 20 से ज्यादा जज का बदल जाना। ये सभी कारण इस केस में 31 साल के लंबे समय बाद जजमेंट आने के कारण है।
कोर्ट ने फैसले में लिखा- ‘कुम्हेर में मानवता को खत्म करने का प्रयास किया गया’
भरतपुर की SC/ST कोर्ट की विशिष्ट न्यायाधीश गिरिजा भारद्वाज ने फैसले में टिप्पणी करते हुए लिखा कि 6 जून 1992 के दिन कुम्हेर में दंगाइयों ने जातिगत शत्रुता दिखाते हुए आगजनी कर मानवता को खत्म करने का प्रयास किया था।
उन्होंने अपने जजमेंट में ये पंक्तियां लिखीं…
‘आग से बनता भविष्य तो उन झौंपड़ों के स्थान पर खड़े हो गए होते महल, जिनमे लगाईं थी आग।
उठी थी लपटें और कई जानें हो गई थी स्वाहा, धूप और गूगल की तरह
अर्थ खो चुके हैं ये मर्सिये, जिन्हे गाते हैं बड़े-बड़े नेता और महानेता
आग लगने पर रोते हैं भर-भर आंसू, करते हैं घोषणाएं सार्वजनिक स्थलों पर’
‘दे सकती है तपिश देह को ठिठुरते मौसम में, आग की कई-कई उपयोगिताएं हैं।
लेकिन झौंपड़ों के भविष्य में आग है सिर्फ जो जला डालती है, उजाड़ डालती है, एक दुर्बल को
आग एक ही समय कई कई नुकसान नफ़ा एक साथ’
सौजन्य : Dainik bhaskar
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