साराह सन्नी: एक वकील जो सुन नहीं सकतीं, अब जज के सामने दे सकती हैं दलील
27 वर्षीय बधिर अधिवक्ता साराह सन्नी बदलाव का चेहरा बनकर उभरी हैं. वो उन लोगों को भारत की क़ानून व्यवस्था के और क़रीब लेकर आएंगी जो सुन नहीं सकते हैं|
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पिछले सप्ताह एक अहम फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर (दुभाषिए) के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है|
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले ने न सिर्फ़ युवा वकील साराह सन्नी को अगली सुनवाई में अपना तर्क रखने का मौक़ा दिया है बल्कि ये कार्यस्थल पर बराबरी और समावेश की दिशा में एक बड़ा क़दम भी माना जा रहा है|
पछले दो सालों के दौरान, साराह सन्नी को बेंगलुरु की निचली अदालत में मामले की सुनवाई के लिए संकेतों की भाषा समझने वाले दुभाषिए के इस्तेमाल की अनुमति नहीं मिली थी क्योंकि जज का मानना था कि क़ानूनी भाषा को समझने के लिए इंटरप्रेटर को क़ानूनी पृष्ठभूमि से होना चाहिए|
साराह सन्नी को अदालत में लिखकर अपने तर्क देने पड़ते थे|
अब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के फ़ैसले ने देश की अदालतों को ये संदेश दिया है कि सुनवाई के दौरान साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर यानी एसएलआई के इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए|
इससे एसएलआई के पेशे के लिए अधिक अवसर भी उपलब्ध होंगे|
साराह सन्नी अदालत में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड संचिता आइन की तरफ़ से पेश हुईं थीं.संचिता ने कहा, “इस फ़ैसले ने धारणाओं को तोड़ा है और इसके दूरगामी प्रभाव निश्चित रूप से होंगे. इससे अधिक संख्या में मूक-बधिर अधिवक्ता बनेंगे और मूक-बधिर लोगों की क़ानून तक पहुंच बढ़ेगी. यह अंततः बधिर वकीलों के परामर्श से सांकेतिक भाषा के लिए एक कानूनी थिसॉरस के विकास को बढ़ावा देगा|
एसएलआई सौरव राय चौधरी ने बीबीसी से कहा, “90 से 95 प्रतिशत तक मूक-बधिर बच्चे उन अभिभावकों को पैदा होते हैं जो बोल-सुन सकते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक़, भारत में ऐसे लोगों की तादाद 1.8 करोड़ थी जो या तो बधिर हैं या जिन्हें सुनने में दिक़्क़त होती है|
“पिछले 12 सालों में ये संख्या और अधिक बढ़ गई होगी. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला मूक-बधिरों को अहसास कराएगा कि क़ानून की नज़र में वो भी बराबर हैं|
सुप्रीम कोर्ट में एसएलआई राय चौधरी की व्याख्या की भारत के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने भी तारीफ़ की थी और चीफ़ जस्टिस भी इससे तुरंत ही सहमत हो गए थे|
रंजिनी रामानुजम बचपन से बधिर हैं और इस समय इंफोसिस में काम करती हैं. उन्हें साल 1999 का अर्जुन अवॉर्ड (बैडमिंटन में) मिला था|
बीबीसी से बात करते हुए रंजिनी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बधिर लोगों के लिए एक वरदान की तरह है. इसने बधिर लोगों को आवाज़ दी है. इस ऐतिहासिक क़दम से सुप्रीम कोर्ट ने अन्य दफ़्तरों को भी अपने नक़्शे क़दम पर चलने का संदेश दिया है. ये बाधाएं तोड़ने वाला फैसला है|
कौन हैं साराह सन्नी?
साराह सन्नी के लिए ये फ़ैसला किसी सपने के सच होने जैसा है|
बीबीसी से बात करते हुए वो कहती हैं, “मैं हमेशा ये सोचा करती थी कि भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस की अदालत में पेश होना कैसा होता है. जब उस दिन में सीजेआई के सामने खड़ी थी, मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ा हुआ था. जो लोग सुन नहीं सकते हैं मैं उन्हें ये दिखाना चाहती थी कि अगर मैं ये कर सकती हूं तो वो भी कुछ भी कर सकते हैं|
साराह सन्नी अपनी जुड़वा बहन मारिया सन्नी के साथ बधिर पैदा हुईं थीं. उनके बड़े भाई प्रतीक कुरुविला भी बधिर ही हैं|
लेकिन उनके पिता सन्नी कुरुविला और मां ने तय किया कि वो अपने बच्चों को मूक-बधिर बच्चों के विशेष स्कूल में नहीं भेजेंगे|
सन्नी कुरुविला कहते हैं, “जब हम चेन्नई में थे तब हमने कुछ समय के लिए प्रतीक को बाल विद्यालय भेजा. बाद में हम बेंगलुरु आ गए. हमने दो दर्जन से अधिक स्कूलों में प्रतीक का दाख़िला कराना चाहा. एंथनी स्कूल के अलावा सभी स्कूलों ने हमें साफ़-साफ़ मना कर दिया|
सन्नी कुरुविला कहते हैं, “प्रतीक ने सैंट जोसेफ़ ब्वॉयज़ स्कूल से दसवीं की. जब आठ साल बाद हमारी दो जुड़वा बेटियां हुईं, हम सामान्य बच्चों के 25-30 स्कूलों में उनके दाख़िले के लिए गए. अंततः हम क्लूनी कान्वेंट में एडमिशन कराने में कामयाब रहे|
कॉलेज दाखिले में हुई परेशानी
कॉलेज में दाख़िला कराना में भी ऐसी ही समस्याएं आईं. लेकिन ज्योति निवास कॉलेज ने दोनों बहनों को दाख़िला दे दिया. तब तक प्रतीक पढ़ाई करने के लिए विदेश चले गए थे जहां वो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गए. फिलहाल वो समय निकालकर बधिर बच्चों को पढ़ाते भी हैं. मारिया सन्नी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं|
साराह सन्नी ने सैंट जोसेफ़ कॉलेज ऑफ़ लॉ से एलएलबी की और कोविड महामारी के समय 2021 में प्रैक्टिस शुरू की|
वो कहती हैं, “हम में ये आत्मविश्वास हमारे माता-पिता ने भरा जिन्होंने हमें पढ़ने के लिए सामान्य स्कूल भेजा क्योंकि वो बराबरी में यक़ीन करते हैं. मैं लिप रीडिंग करके क्लास में पढ़ा करती थी. मेरी दोस्त मुझे नोट्स लेने में मदद करती थीं. हां कुछ ऐसे भी लोग थे जो मज़ाक बनाते थे लेकिन मैंने हमेशा ही उन्हें जवाब दिया|
उनकी मां घर में पढ़ाई में मदद करती थीं लेकिन जब उन्होंने क़ानून की पढ़ाई शुरू की तब वो मदद नहीं कर पाईं. उनकी एक दोस्त ने विषयों को समझने में मदद की. स्कूल और कॉलेज में उनकी बहन मारिया हमेशा उनके साथ रहीं. वो कहती हैं, “मेरे भाई ने भी बहुत मदद की है|
जब साराह से हमने पूछा कि क्या वो अपनी बहन की कमी महसूस करती हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ गए. मारिया की हाल ही में शादी हुई है|
वो कहती हैं, “जब मैंने सुना कि उसकी शादी होने जा रही है तो मैं बहुत ख़ुश थी. मुझे लगा कि अब पूरा कमरा मेरा होगा. मैं पूरे बिस्तर पर अकेले सो पाऊंगी. सब कुछ अकेला मेरा होगा और मुझे साझा नहीं करना होगा. लेकिन एक दो महीने बाद ही मैं बहुत अकेली हो गई. मैं उसकी कमी को बहुत महसूस करती हूं. लंच के समय में रोज़ाना उसे वीडियो कॉल करती हूं||
दिल्ली हाई कोर्ट ने उठाया क़दम
साराह सन्नी पहली बधिर अधिवक्ता हैं जो सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हुई हैं. लेकिन एक और अधिवक्ता हैं जिन्होंने बधिर अधिवक्ताओं के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में नींव मज़बूत की|
एसएलआई राय चौधरी की मदद से सौदामिनी पेठे ने चालीस के क़रीब उम्र में रोहतक से क़ानून की पढ़ाई की थी. राय चौधरी कहते हैं, “मैं वहां सुबह से शाम तक रहता था और सौदामिनी के लिए लेक्चर का अनुवाद करता था|
केंद्रीय विद्यालयों में बधिर टीचरों की नियुक्ति ना किये जाने से जुड़े एक मामले के संबंध में सौदामिनी दिल्ली हाई कोर्ट की जज प्रतिभा सिंह की अदालत के समक्ष पेश हुईं थीं|
संचिता आईन कहती हैं, “वो 17 अप्रैल को अदालत के समक्ष पेश हुईं थीं और वो बहुत ख़ुश थीं कि उनके लिए एसएलआई भी उपलब्ध था. लेकिन फिर अचानक 22 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई. सबसे अच्छी बात ये हुई थी कि इंटरप्रेटर को अदालत ने ही नियुक्त किया था|
पेठे की मौत के क़रीब पांच महीने बाद दृष्टिबाधित अधिवक्ता राहुल बजाज ने अदालत में दो एसएलआई नियुक्त करने की मांग की थी- एक वकील की बात का अनुवाद करने के लिए और दूसरा जज का अनुवाद करने के लिए. जस्टिस प्रतिभा सिंह ने एसएलआई नियुक्त कर दिए थे|
इस याचिका में मांग की गई थी कि बधिर और दृष्टिबाधित लोगों के लिए फ़िल्म समझने के लिए सबटाइटल और ऑडियो डिस्क्रिपश्न की व्यवस्था की जानी चाहिए. अधिवक्ताओं का तर्क है कि मूक-बधिर और दृष्टिबाधित फ़िल्म को नहीं समझ पाते हैं|
26 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान राय चौधरी और शिवाय शर्मा एसएलआई थे|
संचिता कहती हैं, “हम उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली हाई कोर्ट की तरह बधिर अधिवक्ताओं और याचिकाकर्ताओं की मदद के लिए एसएलआई नियुक्त करेगा|
एसोसिएशन ऑफ़ साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर ऑफ़ इंडिया की अध्यक्ष रेणुका रमेशन ने बीबीसी से कहा, “एसएलआई से दिल्ली हाई कोर्ट ने संपर्क किया था और हमने एसएलआई के लिए प्रोटोकॉल निर्धारित किए. ये प्रोटोकॉल अदालत और पक्षों के लिए चीज़ें आसान करने के लिए बनाए गए हैं|
एसएलआई बनने के लिए विशेष कोर्स करना होता है|
द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हियरिंग हैंडीकैप्ड (एनआईएचए) में ए, बी और सी स्तर के कोर्स होते हैं| अब इंडियन साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटिंग और डिप्लोमा इन टीचिंग एसएल (डीटीआईएसएल) होता है|
ये कोर्स दिल्ली, कोलकाता और अन्य जगहों पर उपलब्ध हैं. बेंगलुरु के इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पीच एंड हियरिंग जैसे अन्य संस्थान भी हैं जो इस तरह के कोर्स करवाते हैं|
राय चौधरी कहते हैं, “एसएलआई के सौ से अधिक सदस्य हैं| देश में 400-500 सर्टिफ़ाइड इंटरप्रेटर हैं लेकिन वास्तविकता में 40-50 ही दक्ष होंगे जो एथिकल कार्य कर रहे हैं|इन इंटरप्रेटर में बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो बहरे लोगों के बच्चे हैं या सिबलिंग हैं|इस फ़ैसले ने इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की ज़रूरत का मौक़ा पैदा किया है. साइन लैंग्वेज का चर्चा में आना अच्छा है|
इससे बधिरों के लिए पहुंच सुनिश्चित होगी|
रमेशन कहती हैं, “साइन लैंग्वेज लगातार विकसित होने वाली भाषा है, ये बहुत गतिशील है. भाषा की गुणवत्ता एसएलआई की शैक्षणिक पृष्ठभूमि पर निर्भर करती है. फिलहाल अधिकतर एसएलआई फ्रीलांसर हैं. अभी हमारे पास कोई लाइसेंस का सिस्टम नहीं है लेकिन चीज़ें बदल रही हैं|
सारा का सिर्फ़ एक निवेदन है, ”मुझे गूंगी ना बुलाएं. मैं सिर्फ़ बहरी हूं|
सौजन्य :दैनिक बी बी सी
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