बिहार में ‘ठाकुर का कुआं’ को लेकर मचे बवाल के मायने
दलित साहित्यकार स्व. ओम प्रकाश वाल्मीकि की काफी मशहूर कविता ‘ठाकुर का कुआं’ इन दिनों चर्चा में है। महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने भी एक कहानी लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘ठाकुर का कुआं।’ कहानी और कविता दोनों का भावपक्ष एक ही है। दोनों रचनाओं में ठाकुर किसी जाति का बिंब या प्रतिबिंब नहीं है।
यह समाज के शोषणवादी व्यवस्था में उच्च शिखर पर बैठे उस शोषक का प्रतीक है जो गांव-देहात, शहर में अपना खूनी पंजा फैलाए लोगों का रक्त शोषण करता है। इस पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में हर उस आदमी के लिए ‘ठाकुर’ शब्द शोषक का प्रतीक है, भले ही वह जाति से ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य या दलित समुदाय से ही क्यों न हो।
कविता ‘ठाकुर का कुआं’ को लेकर इन दिनों बिहार में राजनीति गर्म है। संसद के विशेष सत्र के दौरान राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश होने पर ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ पढ़कर यह जताने की कोशिश की थी कि कहीं ऐसा न हो, सवर्ण महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिल जाए और दलित महिलाएं वंचित हो जाएं। अब इसको लेकर बिहार में हाय-तौबा मची हुई है।
राजपूतों ने हवा में काठ की तलवार भांजनी शुरू कर दी है। विरोध कौन कर रहा है हाल ही में जेल से रिहा हुए गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के आरोपी आनंद मोहन और उनके राजद विधायक चेतन आनंद। सबसे पहले चेतन आनंद ने ही इस मामले को ब्राह्मण बनाम ठाकुर का रूप दिया, तो भाजपा ने इस मुद्दे को लपक लिया। बिहार में जाति का मुद्दा आजादी के बाद से ही एक मुख्य फैक्टर रहा है।
कुछ महीने पहले जब नीतीश कुमार ने जेल मैनुअल में बदलाव करके आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया था, तब भी बिहार में बवाल हुआ था। तब राजद और जदयू ने सारे दबावों को दरकिनार करते हुए यह कदम उठाया था। लेकिन अब वही आनंद मोहन और उनके बेटे इसे राजपूतों की शान के खिलाफ मुद्दा बनाकर भाजपा को एक अवसर प्रदान कर रहे हैं।
भाजपा भी इस मामले में मुखर है क्योंकि पांच छह महीनों में ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। बिहार में भाजपा काफी कमजोर स्थिति में है। चुनाव के दौरान बेरोजगारी, महंगाई, विकास जैसे मुद्दे न उठाए जाएं, इसके लिए वह ब्राह्मण बनाम ठाकुर मुद्दे को आगे कर रही है।
बिहार में जितने जातीय और धार्मिक मुद्दे प्रबलता से उभरेंगे, भाजपा को राहत महसूस होगा क्योंकि कुछ महीने पहले तक बिहार के युवा अपनी बेरोजगारी और केंद्र सरकार के विभागों में भर्ती न होने को लेकर काफी उग्र थे। पूरे देश भर में लागू हुई अग्निवीर योजना को लेकर बिहार में ही सबसे पहले विरोध शुरू हुआ था। इससे केंद्र सरकार काफी असहज थी। यदि ब्राह्मण बनाम ठाकुर का मुद्दा गहराता है, तो भाजपा का ही फायदा है।
कुछ नेताओं ने राजद सांसद मनोज झा से माफी की मांग की है, लेकिन पूरा विपक्ष इस मामले में मनोज झा के साथ खड़ा हुआ है। हम पार्टी के सर्वेसर्वा जीतन राम मांझी तक मनोज झा के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा इस मामले को कितना भुना पाती है, यह देखना है।
सौजन्य : Desh rojana
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