तीन बेटियों के किसान पिता ने क्यों की खुदकुशी:फसलें बह गईं ये सुनने वाला कोई नहीं, पीएम सम्मान निधि के पैसे भी पुराने कर्ज में कटते रहे
पिछले दिनों प्रदेश में हुई जोरदार बारिश ने किसानों को रुला दिया है। कई किसानों की फसलें खराब हो चुकी हैं। फसलें खराब होने से किसानों की कमर टूट गई है। कुछ किसानों ने कर्ज के चलते अपना जीवन खत्म कर लिया है। ताजा मामला खंडवा के गोराड़िया गांव का है, जहां कर्ज से दबे किसान ने फसल खराब होने के बाद जान दे दी।
आप जो तस्वीर देख रहे हैं वो गोराड़िया गांव के पंढरी भील की है। यह उनकी आखिरी तस्वीर है जिसे 20 सितम्बर की सुबह 10.33 बजे उनकी छोटी बेटी नेहा ने खींची थी। पंढरी ने उसी रात अपने ही खेत में लगे नीम के पेड़ पर फांसी लगाकर जान दे दी। पंढरी पर बैंक, दुकानदारों और गांव के कुछ लोगों का करीब चार साढे चार लाख रुपए का कर्ज था। बारिश से खराब हुई फसल के बाद उनकी उम्मीद टूट गई थी, इसलिए उन्होंने अपने जीवन की डोर भी तोड़ दी।
खंडवा जिले के पंधाना के पास आदिवासी लीजेंड टंट्या मामा का गांव बड़दा है। उससे करीब दो किलोमीटर पहले गोराड़िया गांव है। कई जातियों की मिश्रित आबादी वाला गांव जिसमें तीन हजार से अधिक लोग रहते हैं। टंट्या मामा की बिरादरी वाले 45 वर्षीय पंढरी भील इसी गांव में रहते थे। पंढरी की पिछले दो साल से लगातार फसल खराब हो रही थी। पैसा आ नहीं रहा था, कर्ज चुकता नहीं हो पा रहा था और तकादे बढ़ रहे थे। इस साल समय से बारिश नहीं होने से सोयाबीन की फसल खराब हो गई। उसके बाद भी पंढरी थोड़ी-बहुत फसल बचाकर कर्ज चुका पाने की हिम्मत जुटाते रहे। सितम्बर के तीसरे सप्ताह में हुई मुसलाधार बारिश से रही-सही फसल भी गल गई। उसके बाद उनकी हिम्मत जवाब दे गई। उन्होंने गांव के ही एक-दो लोगों से कुछ पैसा मांगा था, लेकिन गांव में अधिकांश बड़े किसानों की हालत भी उधार देने की नहीं थी, ऐसे में उनको नया कर्ज नहीं मिल पाया। नया कर्ज नहीं मिलने और पुराने कर्ज चुका पाने की उम्मीद खत्म होने से निराश पंढरी ने घर से करीब 500 मीटर दूर खेत मेें 20-21 सितम्बर की रात फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला खत्म कर ली। पंढरी के परिवार में पत्नी राजकुमारी के अलावा तीन बेटियां प्रतिभा, कीर्ति, नेहा और बेटा प्रदीप हैं। बड़ी बेटी प्रतिभा ने बीएससी किया है। बाकी दोनों बेटियां भी बीए में पढ़ रही हैं। बेटे ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। वह पिता के साथ खेती में हाथ बंटा रहा था। रुंधे गले से प्रतिभा बताती है कि अभी तक पापा अकेले सब कुछ कर रहे थे। उन्होंने हमारी पढ़ाई में दिक्कत नहीं आने दी। यहां तक की हमें इन कर्जों और तकलीफों की जानकारी तक नहीं होने दी। परिवार पर कर्ज का इतना बोझ है और पैसा है नहीं, अब समझ में नहीं आ रहा है कि आगे हमारा क्या होगा!
इतना पैसा भी नहीं कि आंगन से कीचड़ हटवा सकें
पढ़री भील अपने पांच भाइयों में चौथे नंबर के थे। सभी भाई उसी गांव में अलग-अलग रहते हैं। अब पंढरी के न रहने पर उनका परिवार भी इनके साथ ही है। हमारी मुलाकात पंढरी के बड़े भाई बलिराम से होती है। वे घर दिखाते हैं। पंढरी की दो कमरों की मामूली सी गृहस्थी है। बाहर मवेशियों को बांधने की झोपड़ी है। मिट्टी की पुरानी दीवार गिरी हुई। कच्चा फर्श बरसात के बाद कीचड़ में बदल गया है। बलिराम कहते हैं कि यह तो अभी लोग बैठने के लिए आ रहे हैं तो यहां लोहे के पतरे मंगाकर रख दिए हैं। नहीं तो यहां पूरा कीचड़ था। मवेशियों को बांधने की जगह अब भी कीचड़ से भरी हुई है। बलिराम कहते हैं कि उसके पास थोड़े पैसे होते तो एक ट्राॅली मुरुम डलवा लेता, लेकिन उसके पास तो मामूली से खर्च के लिए भी कर्ज ही रास्ता बचा था। वह कर्ज भी तब मिलता जब पिछला कर्ज चुकता।
कर्जा देने वाले तो फसल कटने से पहले तकादा करने लगते थे
पंढरी के बड़े भाई बलिराम भील बातचीत करते हुए रुंआसे हो जाते हैं। कहते हैं कि पिछले साल सोयाबीन की फसल कट गई थी उस समय भारी बरसात हुई। फसल खराब हो गई और उसके पूरे दाम नहीं मिले। कर्ज चुक नहीं पाया। इस साल भी खाद, बीज, निंदाई, गुड़ाई की पूरी लागत लगाने के बाद फसल खराब हो गई। बच्चों की पढ़ाई का खर्च अलग। पंढरी की पत्नी की तबीयत कुछ सालों से खराब रह रही है। उसका भी खर्च भी हो रहा है। अब कर्ज चाहे बैंक का हो या प्राइवेट वे तो फसल कटने से आठ दिन पहले ही कहने लगते हैं कि भइया मेरा पैसा दे देना। मुझे लगता है कि फसल खराब हो गई तो उसने सोचा होगा कि लोग अपना पैसा मांगेंगे तो कहां से दूंगा। यही सब सोचकर उसने फांसी लगाकर अपनी जान दी है।
फसल से पहले बेटी की शादी की चर्चा भी चली थी
बलिराम बताते हैं कि पंढरी की बेटियां पढ़ने में तेज हैं। बड़ी बेटी बीएससी कर रही थी तो उसने शादी पर जोर नहीं दिया। पिछले साल उसकी पढ़ाई पूरी हो गई। आगे पढ़ना है, लेकिन हम लोगों ने कहा, उसकी पढ़ाई होती रहेगी, अब शादी कर दो। इस साल फसल लेने से पहले परिवार मेें शादी को लेकर चर्चा चली थी। रिश्ते देखे जा रहे थे। पंढरी को इस साल की फसल से बेटी की शादी कर पाने की भी उम्मीद रही होगी। अब जब फसल बर्बाद हो गई तो उसके पास बेटी की शादी को लेकर भी चिंताएं बढ़ गई होंगी। अब अपनी भी हैसियत कर्ज चुकाने की नहीं है, लेकिन वह अपनी परेशानी बताता तो कोई न कोई उपाय तो किया ही जा सकता था।
1.22 हेक्टेयर का खेतिहर आदिवासी, ढाई बीघा किराए पर भी ली थी
दो-तीन बार से खेती में घाटा उठा रहे आदिवासी किसान पंढरी की सारी उम्मीद सोयाबीन की इसी फसल पर टिकी थी। इसका अंदाजा उनकी खेती को देखकर लगाया जा सकता है। पंढरी के बेटे प्रदीप का कहना है कि उनके पिता के नाम से उमरदा गांव में 1.22 हेक्टेयर खेती की जमीन है। इस साल उन्होंने गांव के एक बड़े किसान ने ढाई बीघा जमीन किराए पर ली थी। पूरे खेत में सोयाबीन की फसल लगाई थी। फसल खराब हो गई, पिता भी चल बसे अब समझ में नहीं आ रहा है कि घर कैसे चलेगा और बहनों की शादी कैसे होगी। पंढरी के बड़े भाई बलिराम ने बताया, अभी जब वे लोग बैंक के कर्ज का ब्योरा लेने गए तो पता चला कि उनके खाते में आ रही किसान सम्मान निधि की रकम भी कर्ज के एवज में कटती रही। इसकी वजह से उस रकम का फायदा भी पंढरी नहीं उठा पाए।
परिवार पर माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का भी कर्ज
आत्महत्या कर चुके किसान पंढरी के बेटे प्रदीप ने बताया, उनके पिता ने बैंक ऑफ इंडिया की रूस्तमपुर शाखा से कर्ज लिया था। अभी उसकी एक लाख 91 हजार 936 रुपया बकाया है। उनकी मां ने स्व-सहायता समूहों के जरिए माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से भी कुछ रकम उठाई थी। इसमें आशीर्वाद माइक्रो फाइनेंस कंपनी से 50 हजार रुपए का कर्ज भी शामिल है। कर्ज का अभी 29 हजार 544 रुपया बकाया है। जना स्माल फाइनेंस बैंक से 70 हजार रुपए का कर्ज लिया था, उसके अभी 52 हजार रुपए देने हैं। वहीं बंधन बैंक से 52 हजार रुपए का कर्ज लिया था, उसके 46 हजार रुपये देने हैं। पिता ने गांव के ही कुछ लोगों से करीब एक लाख रुपए का उधार लिया था। आभपुरी के कृषि सेवा केंद्र पर खाद-बीज, दवाई के 47 हजार रुपयों का बकाया है। कर्ज की यह रकम जुड़कर 4 लाख 66 हजार रुपए से अधिक हो चुकी थी। प्रदीप ने इसका पूरा ब्योरा तहसीलदार को भी दिया है।
किसान की आत्महत्या की सूचना पर भी कोई अधिकारी नहीं पहुंचा
गोराड़िया गांव के लोगों को 21 सितम्बर की सुबह पंढरी भील का शव नीम के पेड़ पर लटका हुआ मिला था। परिवार वालों को पता चला। सूचना स्थानीय थाने और तहसील प्रशासन को भी भेजी गई। पुलिस ने शव उतरवा कर मामला दर्ज किया। परिवार ने अंतिम संस्कार कर दिया। इस बीच परिवार और ग्रामीणों ने यह भी बताया कि फसल खराब होने और कर्ज से परेशान होकर उन्होंने जान दी है। मृतक पंढरी के बेटे प्रदीप के साथ गए कुछ ग्रामीणों ने 23 सितम्बर को तहसील कार्यालय में बाकायदा शपथपत्र देकर फसल खराब होने और कर्ज की वजह से आत्महत्या की जानकारी दी है। इसके बाद भी कोई स्थानीय अधिकारी यहां तक कि पटवारी भी परिवार अथवा उनकी फसल का हाल जानने नहीं पहुंचे। गोराडिया के सरपंच रमेश बारे बताते हैं कि पटवारी तो यहां साल भर से नहीं आए। पटवारियों की हड़ताल चल रही है और राजस्व अमले ने खेतों की ओर झांकना छोड़ दिया है।
यहां तो हर किसान की यही कहानी है
गोराड़िया गांव में ही एक किसान कृष्णपाल सिंह गौर बताते हैं कि इस पूरे इलाके में हर किसान की यही कहानी है। कृष्णपाल फसल की लागत और आय का एक सामान्य गणित बताते हैं। उनका कहना है कि एक हेक्टेयर में सोयाबीन के फसल की लागत करीब 75 हजार रुपए आती है। इसमें खेत की तैयारी से लेकर बीज, खाद, दवाई, कटाई और मंडाई शामिल है। सामान्य तौर पर एक हेक्टेयर में 19-20 क्विंटल का उत्पादन होता है। फसल बहुत अच्छी हुई तो औसतन पांच हजार रुपया प्रति क्विंटल की दर से बिक जाती है। कुल मिलाकर एक हेक्टेयर में किसान को करीब एक लाख रुपए मिलता है। 75 हजार की लागत निकाल दी जाए तो 25 हजार रुपए बच जाएंगे। 25 हजार के लिए सारी मेहनत और रिस्क है। अभी फसल की जो स्थिति है उसको देखकर लगता है कि एक हेक्टेयर खेत में मुश्किल से पांच क्विंटल सोयाबीन होगा। उसकी कीमत होगी 25 हजार रुपया। हम पहले ही 75 हजार लगा चुके तो कर्ज बढ़ना ही है।
फसल बीमा योजना से खत्म हो रही उम्मीद
मृतक पंढरी के बड़े भाई बलिराम कहते हैं, फसल बीमा का प्रीमियम हमसे समय पर काट लिया जाता है, लेकिन यह योजना कभी हमारे काम नहीं आई। पिछली बार भी जब फसल बर्बाद हुई तो कोई बीमा नहीं मिला था। किसान कृष्णपाल सिंह गौर का कहना है, अगर कभी बीमा राशि मिली भी है तो वह बेहद मामूली है। उससे नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई। गोराड़िया के ही दर्जन भर किसानों से पूछने पर केवल एक बुजुर्ग किसान ऐसे मिले, जिन्होंने स्वीकार किया कि उनको एक बार बीमा राशि का पांच हजार रुपया मिला है। उसके बाद उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह रकम उनके नुकसान की तुलना में बेहद कम थी। किसानों का कहना था, बीमा का दावा भी तो तब बनेगा जब राजस्व विभाग सर्वे करके नुकसान बताएगा। यहां तो अभी तक पटवारी खेतों की ओर झांकने तक नहीं आए। सर्वे रिपोर्ट कौन बनाएगा?
इसी महीने खंडवा में एक और किसान ने की थी आत्महत्या
सितम्बर की 5 तारीख को खंडवा जिले की पुनासा तहसील में एक किसान सुखराम ने कीटनाशक पीकर जान दे दी थी। डेढ़-दो महीने पहले अचानक आई बाढ़ में उसके दो बैल बह गए थे। बाद में बरसात रुक गई और उसकी फसल खराब हो गई। कर्ज ने सुखराम का सुख-चैन छीन लिया और उसने रात में खेत में जाकर कीटनाशक पी लिया। सुबह परिजनों को वह बेहोशी की हालत में मिला। अस्पताल ले गए तो डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। किसान की मौत के बाद प्रशासन ने बैलों की मौत का मुआवजा उसके खाते में डालकर अपना पिंड छुड़ाने की कोशिश की।
मंदसौर में भी इसी चिंता ने ली किसान की जान
पूरे अगस्त महीने बरसात नहीं होने से प्रदेश के अधिकांश हिस्सो में सोयाबीन की फसल चौपट हो गई है। मंदसौर जिले के बड़ौद गांव के किसान जगदीश धनगर (45) ने पांच सितम्बर को अपने ही खेत में फांसी लगाकर जान आत्महत्या कर ली। उन पर बैंक और बाजार का कर्ज था। बच्चों की शादी भी करनी थी। उनकी पूरी उम्मीद सोयाबीन की फसल से थी। फसल नहीं बची तो जगदीश भी हिम्मत हार बैठे। परिजनों का कहना था कि आत्महत्या से पहले 10-12 दिनों तक वे बार-बार खेत जा रहे थे। वहां से लौटकर केवल फसल खराब होने की ही बात कर रहे थे।
छिंदवाड़ा में सूदखोरो से तंग आकर किसान ने जान दे दी
किसान आत्महत्या की एक दु:खद घटना छिंदवाड़ा में हुईं। यहां सौंसर क्षेत्र के निमनी गांव के किसान आनंदराव ठाकरे ने 17 सितम्बर को आत्महत्या कर ली। उन्होंने अपने खेत में बने कोठे में खुद को रस्सी से लटका लिया था। ठाकरे ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसके मुताबिक उन पर 18 लाख रुपए का कर्ज था। जिसे उन्होंने सात से 10% ब्याज की दर से लिया था। अब सूदखोर उन्हें ब्याज पर ब्याज देने के लिए प्रताड़ित कर रहे थे। ब्याज अदा करने के चक्कर में उनकी खेती बिक गई। मकान को भी एक फाइनेंस कंपनी के पास गिरवी रखना पड़ा। उसके बाद भी वे कर्ज का बोझ नहीं उतार पाए। अपने सुसाइड नोट में आनंदराव ने छह सूदखोराें का नाम और नंबर लिखा है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
कर्ज का यह चक्र कैसे टूटेगा
किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ. सुनीलम कहते हैं कि इसके दो ही उपाय दिखते हैं। पहला फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की कानूनी गारंटी मिले। यानी सभी फसलों का एक मूल्य तय किया जाए और सरकार यह सुनिश्चित करे कि उससे कम कीमत पर खरीदी नहीं होगी। दूसरा उपाय है कि सरकार किसानों को कर्ज मुक्त कर दे यानी अब तक के सभी कर्ज खत्म कर दिए जाएं। इन दोनों उपायों को एक साथ लागू करना होगा, तभी डूबती खेती और कर्ज का यह चक्र टूटेगा। एक उपाय यह भी हो जाता कि जिन किसानों ने आत्महत्या की है उनके परिवार की सामाजिक सुरक्षा के लिए कुछ राशि तय हो जाती। हमारा प्रस्ताव न्यूनतम 10 हजार प्रति माह की है। यह पेंशन पीड़ित परिवार के लिए मददगार हो सकता है।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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