सूखी फसले लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचे आदिवासी:जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग, कार्यालय का मुख्यगेट बंद करने पर धरने पर बैठे किसान
आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासी किसानों ने सोमवार कलेक्ट्रेट का घेराव किया। इस दौरान किसान अल्प बारिश से सूखी फसलें हाथों में लेकर पहुंचे। कलेक्ट्रेट के गेट बंद करने पर ग्रामीण वहीं धरने पर बैठ गए। इस दौरान करीब दो घंटे तक धरने के दौरान पानी तक की उपलब्धता नहीं होने पर उनके सब्र का बांध टूट पड़ा। इसके बाद पानी के लिए ग्रामीणों ने रोष जताया। तब जाकर गेट खोले गए।
संगठन के नेतृत्व में आदिवासी महिला, पुरुषों ने फसल नष्ट होने और मुआवजे की मांग को इंद्रजीत छात्रावास से रैली निकाली और नारेबाजी करते हुए कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया। आदिवासी किसानों ने कहा कि इस सूखे की घड़ी में सरकार ने बिजली वितरण को क्यों कम किया है। 24 घंटे बिजली के बजाय केवल 7 घंटा ही किसानों को बिजली मिल रही हैं। जब उद्योगों और कंपनियों को बिजली की पर्याप्त आपूर्ति हो रही हैं तो देश के किसान को क्यों नहीं।
वहीं किसान महिला नासरी बाई ने कहा वन अधिकार कानून लागू होने के 16 साल बाद भी आज बड़वानी में 16000 दावों में से केवल 3352 दावों का निराकरण हुआ है। लाखों आदिवासी आज भी अपने वनाधिकार से वंचित हैं।
बुरहानपुर पुलिस की कार्रवाई पर रोष जताया
धरने के दौरान वालसिंह ने बुरहानपुर जिले में संगठन कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमलों का भी जिक्र किया। अभी हाल ही में संगठन कार्यकर्ता नितिन भाई को एक झूठे और बेतुके मामले में बुरहानपुर पुलिस ने गिरफ्तार किया है और आज 10 दिन से अधिक समय बीतने के बाद भी उनकी रिहाई नहीं हुई है। आदिवासी महिला पुरुषों ने नितिन भाई की तुरंत रिहाई की मांग की और बड़वानी प्रशासन के माध्यम से बुरहानपुर प्रशासन को चेतावनी दी कि अगर संगठन पर हो रहे हमलों को नहीं रोका गया तो पूरे निमाड़ के आदिवासी इसका जवाब देंगे।
चोरों ओर सूख हैं, सरकार नहीं कर रही कोई पहल
हरसिंह जमरे ने बताया कि इस वर्ष पूरे मध्य प्रदेश में वर्षा कम होने से किसानों की फसल सूख गई हैं और वह लगातार नुकसान झेल रहे हैं। सभी आदिवासियों ने एक स्वर में कहां कि इतनी भयावह स्थिति बनने के बाद भी सरकार की तरफ से राहत देने की कोई पहल नहीं की गई और ना ही सरकार की ओर से किसी तरह के मुआवजे की घोषणा की गई। इसीलिए आज हमें यहां आना पड़ रहा हैं। सरकार उद्योगपतियों के हजारों करोड़ों रुपयों के कर्ज आसानी से माफ कर देती हैं तो हम किसानों को इस संकट की घड़ी में कर्ज माफी क्यों नहीं?
गेट बंद करने पर महिलाओं ने जताया रोष
पूर्व नपाध्यक्ष राजन मंडलोई ने कहा कि कलेक्टर कार्यालय के बाहर धरना दे रही महिलाओं ने अपनी सूखी हुई फसलों के नमूने सरकार और प्रशासन को दिखाए। लेकिन इस दौरान कलेक्टर कार्यालय के मेन गेट बंद कर दिया गया। इससे आदिवासी किसानों में रोष उत्पन्न हुआ। आदिवासी महिला, पुरुषों को गेट पर ही रोकने की कोशिश की गई लेकिन लोग नहीं माने और कलेक्टर कार्यालय के मुख्य द्वार पर जाकर धरना दिया।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करें
किसान हरसिंह ने कहा कि सरकार को हमारे भूखे परिवारों को कैसे नहीं देख पाती है। हमारी फसलों के दाम क्यों नही बढ़ते हैं। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को क्यों नहीं लागू किया जा रहा हैं। हमारे लोग आज भी गुजरात और महाराष्ट्र में बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर है उन्हें नियमानुसार किसी भी सामाजिक सुरक्षा का लाभ आज तक नहीं मिल पाया। जबकि प्रवासी मजदूर कानून में लिखा है कि पलायन पर जा रहे हर मजदूर और उसको ले जाने वाले ठेकदारों का पंजीयन होना चाहिए।
किसानों को बीमा राशि का वितरण हो
ज्ञापन में ये भी बताया कि जिले के ज्यादातर आदिवासी परिवार सीमांत किसान है। जिनके पास सिंचाई के साधन नहीं है। वर्षा का जल ही एकमात्र सिंचाई का स्त्रोत हैं। अधिकांश आदिवासी किसान पूरे वर्ष में एक ही फसल ले पाते हैं और यही फसल एक वर्ष के लिए उनके परिवार के भोजन का एकमात्र स्रोत होती हैं। इस वर्ष बारिश की कमी से उनके भोजन के साधनों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे है। जिससे स्थिति और भी भयावह हो गई हैं। आदिवासियों ने कहां कि बीमा के नाम पर हमसे हजारों करोड़ रुपए सरकार और निजी कंपनियों ने लूटे है। इसलिए इस मुसीबत की घड़ी में हम आदिवासी किसानों को बीमा राशि का तुरंत वितरण किया जाए।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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