दलित राजनीति के समीकरण से BSP आउट, ‘लभार्थी’ पिच पर बैटिंग करेगी BJP, जानें क्या है रणनीति
समाजवादी पार्टी बसपा से आए नेताओं की मदद लेकर दलित मतदाताओं को साधने की योजना बना रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, इंद्रजीत सरोज जैसे नेता शामिल हैं.
उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति के केंद्र में इस बार बहुजन समाज पार्टी (BSP) नहीं होगी. सत्तारूढ़ बीजेपी (BJP) और सहयोगी दल पहले से दलित वोट बैंक में और सेंध लगाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. बीजेपी ने ‘लाभार्थियों’ को रियायतों के साथ लुभाने की योजना बनाई है और कमजोर वर्गों को साधने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं का सहारा लिया है. पार्टी ने योजनाओं का प्रचार प्रसार करने के लिए कार्यकर्ताओं को तैनात किया है. दलित ‘लाभार्थियों’ (सरकारी योजनाओं के लाभार्थी) का एक बड़ा हिस्सा हैं और उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन किया. इस वजह से बहुजन समाज पार्टी का पतन हुआ.
बसपा की नहीं बीजेपी की दलित वोट पर नजर
403 सदस्यों वाले सदन में बसपा सिर्फ एक सीट पाकर निचले स्तर पर पहुंच गई. बसपा की सबसे बड़ी समस्या दलित मतदाताओं तक पहुंचने के लिए दूसरी पंक्ति का नेतृत्व नहीं होना है. मायावती एकांतवास में हैं और भतीजे आकाश आनंद भी पार्टी कार्यकर्ताओं तक पहुंचने के लिए तैयार नहीं हैं. परिणामस्वरूप, बसपा में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता अन्य दलों की ओर जा रहे हैं. बीएसपी ने कुछ वर्षों में अत्याचार का सामना कर चुके दलितों के घर जाने की भी जहमत नहीं उठाई. बीजेपी आगामी लोकसभा में स्थिति सुधारने के लिए ओबीसी उप-जातियों और दलितों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी की पीडीए रणनीति का लक्ष्य ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ है.
बीजेपी की समावेशी ‘हिंदू प्रथम’ नीति को खत्म करने के लिए सपा स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं का उपयोग कर रही है और ‘सनातन धर्म’ और रामचरितमानस के खिलाफ बयान रणनीति का एक हिस्सा है. मौर्य पहले से ही पार्टी में ऊंची जाति के हिंदुओं का गुस्सा झेल रहे हैं, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अभी तक उन पर लगाम नहीं लगाई है, इससे साफ है कि मौर्य पार्टी की रणनीति पर काम कर रहे हैं. एक मौर्य समर्थक ने कहा, “हम हिंदू धर्म के उस ब्रांड में विश्वास नहीं करते हैं, जो दलितों और ओबीसी उप-जातियों को अलग-थलग करता है. सनातन धर्म यही करता है. हम सभी ऐसे धर्म के पक्ष में हैं, जिसमें सभी शामिल हों और जाति या वर्ग के आधार पर भेदभाव न हो.”
समाजवादी पार्टी बसपा के उन दलित नेताओं की मदद से दलित मतदाताओं को अपने पाले में करने की योजना बना रही है जो सपा में शामिल हो गए हैं और इनमें स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, इंद्रजीत सरोज जैसे नेता शामिल हैं. पार्टी उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार की दलित विरोधी मानसिकता को उजागर करने के लिए दलित उत्पीड़न मामलों का इस्तेमाल कर रही है, उसका केंद्र बिंदु हाथरस रेप की घटना है. दूसरी ओर, कांग्रेस भी दलितों का समर्थन वापस पाने के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी और नकुल दुबे जैसे बसपा से ‘उधार’ लिए गए नेताओं पर भरोसा कर रही है.
भीम आर्मी के चंद्रशेखर हैं उभरती हुई ताकत
पार्टी को उम्मीद है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से उत्तर प्रदेश में बढ़त हासिल होगी. भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की छवि गरीब समर्थक नेता के रूप में उजागर की है. इस बीच, यूपी, खासकर पश्चिमी यूपी में दलितों में एक और उभरती ताकत भीम आर्मी के चंद्रशेखर हैं. हालांकि भीम आर्मी को अभी तक कोई चुनावी सफलता नहीं मिली है, लेकिन बढ़ती लोकप्रियता और राष्ट्रीय लोक दल के साथ दोस्ती लोकसभा चुनाव में अन्य पार्टियों की परेशानी का सबब बना सकती है. ऐसा होने पर बसपा नेताओं के लिए राह का अंत हो सकता है, जिन्होंने अब तक दलित मतदाताओं के बल पर दांव खेला है.
सौजन्य : Abp live
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