जब 36 अंग्रेजों पर भारी पड़ी थी दलित वीरांगना ऊदा देवी लेकिन इतिहास ने इनके साथ
“कोई उनको हब्शी कहता, कोई कहता नीच अछूत
अबला कोई उन्हें बताएं, कोई कहे उन्हें मजबूत”
ऊपर लिखी लाइन से आप समझ ही गए होंगे कि आज हम एक दलित, जबाज महिला के बारे में बात करने जा रहे है. जिन्होंने स्वतन्त्रता सैनानी के रूप में (1857 वाली क्रांति में) अपना योगदान दिया है. जिनका नाम ऊदा देवी है. उत्तरप्रदेश के लखनऊ में जन्मी भारत माँ की बेटी ऊदा देवी को दलित वीरांगना भी कहा जाता है. हालांकि उनके बलिदान को हमारे इतिहास में नहीं लिखा गया है. लेकिन लखनऊ में उनके बलिदान की कहनियां सुनने को मिल जाएंगी. उत्तर प्रदेश की सरकार ने 20 मार्च 1921 में उनके नाम की प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) महिला बटालियन की स्थापना की घोषणा की थी. जो उनके बलिदान को याद दिलाता है. यह दलित वीरांगना अपने जबाज हौसलें के लिए जानी जाती है. दोस्तों, तो आईये लखनऊ की एक दलित वीरांगना की कहानी, जिन्होंने अपने देश और राज्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.
दलित वीरांगना की कहानी
ऊदा देवी का जन्म उत्तरप्रदेश के अवध क्षेत्र के दलित परिवार में हुआ था. इनका विवाह अवध की सेना के सैनिक के मक्का पासी के साथ हुआ था. ऊदा देवी, बेगम हजरत की महल में सहयोगी बन गईं थी. उस समय दलित महिलाओं को बेगमों की रक्षा के लिए रखा जाता था. और उनमे से कुछ को युद्ध का अच्छा प्रशिक्षण भी दिया जाता था. ऊदा देवी भी उन्ही में से एक थी. एक बार ऊदा देवी ने अपनी जान पर खेल कर बेगम की जान बचाई थी, जिसके बाद ऊदा देवी को बेगम की अंगरक्षक बना दिया गया था, जिसके चलते अवध की बेगम की मदद से ऊदा देवी की कमान के तहत एक महिला बटालियन का गठन किया. इतनी बहादुरी के बाद भी प्नमुखता इनकी की जाति को दी गयी थी , इनके साथ पूरी जिन्दगी जातिगत भेदभाव हुआ था.
अवध की सेना में इनके पति सैनिक के रूप में काम करते थे. उनके पति चिनहट की लड़ाई में शहीद हो गए. उनके पति की मौत से उसे इतनी चौंट पहुंची जिसके बाद उन्होंने कसम खाई की वह अंग्रेजो से अपने पति की जान का बदला लेंगी.
अकेली ऊदा देवी पड़ी 36 सैनिकों पर भारी
1857 की क्रांति को दौरान, ऊदा देवी ने लखनऊ के सिकंदर बाग हमले का नेतृत्व किया था. उस समय भारतीय जनता में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था. तभी ऊदा देवी ने वहां की बेगम से मांग की, की हमें भी युद्ध की घोषणा कर देनी चाहिए. बेगम से एक महिला बटालियन से उसकी सहायता की जिसका नेतृत्व ऊदा देवी ने किया था. ऐसे ही नवम्बर 1857 में, ऊदा ने अकेले 36 ब्रिटिश सैनिकों को खत्म किया था. ऊदा अपनी सैना को आदेश देती रही और आगर बाद रही ब्रिटिश सेना पर गोली बारूद करती रही. इस लड़ाई में उन्होंने पुरुषों के कपड़े पहनकर, ब्रिटिश सैनिकों के साथ लड़ाई की थी.
क्या आप जानते है कि ऊदा देवी ने अपने जीवन के अंतिम पल भी अपने देश के प्रति समर्पित कर दिए थे, ऊदा ने उस समय पुरुषों के कपड़े पहनकर ब्रिटिश सैनिकों को लड़ाई में मुहतोड़ जवाब दिया था. ऊदा ने उस समय अकेली ऊदा 36 सौनिकों पर भारी पढ़ी थी, सबसे पहले ऊदा एक पेड पर चढ़ गयी थी, ऊपर से ही एक एक करके गोलियों से ब्रिटिश सैनिकों को निशाना बना रही थी. बहुत देर बाद उन सैनिको को समझ में आया की गोलियां उपर से आ रही है. जिसके बाद सैनिकों ने ऊदा पर गोलिया चलानी शुरू कर दी थी. ऊदा लहूलुहान होकर निचे गिर गयी, जिसके बाद सैनिकों को समझ आया की यह तो एक महिला है. इस दलित महिला के बलिदान की कहानी आज भी लखनऊ के स्कूलों में बच्चों को सुनाई जाती है.
सौजन्य : Nedrick news
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