जानिए बाबा साहेब ने गावं को क्यों बताया “दलितों का बूचड़खाना”
हमारे देश के संविधान निर्माता और दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. अम्बेडकर, हर चीज़ की तरह शहर और गावं को लेकर भी गहरे विचार रखते थे. डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी गावं को दलितों का बूचड़खाना मानते थे, क्यों कि उनके हिसाब से गावं उच्च जातियों के लिए उच्च जातियों का गणराज्य जैसा हो जाता है. उनके हिसाब से गावं में उच्च जातियां, निचली जातियों और दलितों से अच्छा व्यवहार नहीं करती है. डॉ. अम्बेडकर ने 4 नवम्बर 1948 में, संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भाषण देते हुए कहा था कि “गावं, स्थानीयता का एक गंदा हौदा है, अज्ञानता की मानद, संकीर्ण मानसिकता और जातिवाद का स्थान है”. डॉ. अम्बेडकर जी दलितों के सच्चे समाज सुधारक थे.
आईये आज हम आपको अपने इस लेख से बतायेंगे कि बाबा साहिब ने क्यों गांव को दलितों का बूचड़खाना कहा था ? अम्बेडकर जी क्यों गावं को उच्च जातियों का गन्दा हौदा मानते थे ?
अंबेडकर क्यों मानते थे, गांव को दलितों का बूचड़खाना ?
समाज सुधारक कहे जाने वाले डॉ. अम्बेडकर जी गाँव को दलितों का बूचड़खाना कहा, क्यों कि गावं में दलितों और निचली जातियों का उत्पीडन करने वाली शक्तियों का बोलबाला ज्यादा है. उनका मानना है कि “हिन्दू गावं को एक गणराज्य के रूप में देखते है, वह उनकी आन्तरिक सरचना पर गर्व करते है, जिसमे न लोकतंत्र है, न समानता है, न स्वतन्त्रता है, न भाईचारा”.
गावं अछूतों के लिए हिन्दुओं का साम्राज्यवाद है जिसमे उच्च जातियां, निचली जातियों का शोषण करते है. गावं में जातिगत भेदभाव और बंधुआ मजदूरी जैसी समाजिक कुरतिया बहुत ज्यादा है. गावं में दलितों और निचली जातियों के पास कोई अधिकार नहीं होते है इसलिए डॉ. अम्बेडकर को गावं की अवधारणा समझ में नहीं आती, न ही वह गावं की अवधारणा का समर्थन करते है. डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपना पूरा जीवन दलितों को समाज में सम्मान दिलाने में लगा दिया. उनको दलितों का मसीहा भी कहा जाता है.
पूरे विश्व में उन्हें दलितों के लिए काम करने वाला समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने ने 4 नवम्बर 1948 में, संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भाषण देते हुए कहा था कि “गावं, स्थानीयता का एक गंदा हौदा है, अज्ञानता की मानद, संकीर्ण मानसिकता और जातिवाद का स्थान है”. डॉ. अम्बेडकर गावों का शहरीकरण करना चाहते है. और ऐसा शहरीकरण जिसमे दलितों का शोषण न हो.
एक्टिविस्ट अरुन्धिती राय ने अपनी किताब “एक था डॉक्टर एक था संत” में क्या लिखा ?
राय जी ने अपनी किताब “एक था डॉक्टर एक था संत” में इस विषय पर गहन विचार और शोध करके लिखा है कि “डॉ. भीमराव जी की अपनी न्याय परिकल्पना के कारण, उनका ध्यान शहरीकरण पर गया है. उनके हिसाब से आधुनिकरण, शहरीकरण और उद्योगकरण – के बीच में कुछ लोग रह जाते है जो उच्च जातियों के घर बंधुआ मजदूर और दासियों के रूप में काम करते है. किसी भी देश के विकास में जिन लोगो का योगदान सीधे तौर पर होता है उनका कहीं नाम नहीं होता है. वह किसी के घर दास बनकर रह जाते है.
बाबा साहेब अम्बेडकर ने गावं में रहने वाले दलितों के प्रति अपने मन में दया रख कर गावं को “दलितों का बूचड़खाना” कहा था. उन्होंने अपने जीवन में जातिगत भेदभावों के बहुत सामना किया है. जीवन के हर पढ़ाव में उनके साथ उनकी जाति को लेकर भेदभाव होते आए है.
सौजन्य : Nedrick news
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