ना NDA, ना I.N.D.I.A… Mayawati की एकला चलो पॉलिटिक्स से यूपी में BSP कैसे हासिल करेगी कामयाबी? समझिए
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अकेला चलने का ऐलान किया है, जिससे उनके लोकसभा चुनाव में वोटों के बंटवारे से नुकसान हो सकती है। वेस्ट यूपी में उनकी पैठ पर खतरा है क्योंकि वहां दलित मुस्लिम और पिछड़े वोटों का समर्थन प्राप्त करती हैं। इसके अलावा बीएसपी की स्थिति उनके लिए मुश्किल हो रही है, और वोट बैंक भी कमजोर हो रहा है। इसलिए मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल होने की जरूरत है।
मेरठ: बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती (Mayawati) के ना एनडीए, ना I.N.D.I.A. यानि अकेला चलों के ऐलान से इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि लोकसभा चुनाव में वह कैसे पार लगाएगी। कभी बसपा का मजबूत गढ़ रहे वेस्ट यूपी में विपक्ष के बीच वोटों के बंटवारे से पार्टी को नुकसान उठाने का बड़ा खतरा है। क्योंकि दलित मुस्लिम और पिछड़े के साथ के कारण वेस्ट यूपी में बीएसपी कामयाबी हासिल करती रही है। बीते दो चुनाव से मुस्लिम बीएसपी से किनारा किए हैं। दलित में भी सेंध लगी हैं। इसलिए 2024 में अकेला चलने से बीएसपी बड़ा करिश्मा वेस्ट यूपी में कर पाएगी इसको लेकर सियासी जानाकरी भी आशंकित हैं।
प्रोफेसर जसवीर सिंह की माने तो मायावती की पैठ 10 प्रतिशत दलित (जाटव) के अलावा अति पिछड़ी जातियों में भी ठीक रही हैं। मुस्लिम भी उनके कई चुनाव मे साथ रहा हैं। आज अति पिछड़ों को लेकर हर की दल गंभीर हैं। भाजपा इस पर पूरा फोकस कर रही हैं। इसलिए मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाए तो गठबंधन मजबूत होगा। उनका कहना है कि मायावती चुनाव बाद गठबंधन पर ज्यादा विश्वास करती हैं। इसके बल पर वह तीन बार गठबंधन से सीएम बन चुकी हैं। लेकिन बुधवार को मायावती ने फिर से यह ऐलान किया है कि वह किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेंगी।
2009 तक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली बीएसपी की हालत आज ऐसी है कि यूपी में उसके पास सिर्फ एक विधायक है। वेस्ट यूपी में एक भी नहीं हैं। 2029 के लोकसभा चुनाव में जरूरत सपा से गठबंधन के साथ के कारण वेस्ट यूपी मे सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा की सीट जीत गई। निकाय चुनाव मे बीएसपी से मुस्लिम हटा है। उसका एक भी मेयर नहीं जीता। नगर पंचायत अध्यक्ष और नगर पालिका अध्यक्ष भी गिनती के दी जीते हैं। इसलिए अपना अस्तित्व दिखाने या बनाए रखने के लिए 2024 का चुनाव उनके लिए करो या मरो जैसा है। वेस्ट यूपी में बीएसपी लागतार कमजोर होती जा रही हैं।
सीएसडीएस के मुताबिक 2007 के यूपी विधानसभा चुनावों में 30.43% वोट हासिल किए थे। 206 सीट जीती थी। पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उसके बाद 2009 में लोकसभा में बसपा का वोट बैंक गिरकर 27.4% रह गया। हालांकि, उन्होंने 21 सीटें जीती थीं। 2012 का चुनाव आते आते बसपा और कमजोर हो गई थी।
इसकी एक वजह यह थी कि वेस्ट यूपी में ब्राह्मण और कुछ दलित वोट मायावती से कट गया। बसपा सिर्फ 80 सीटों पर सिमट गई। यहां तक कि वोट शेयर भी 5% घटकर 25.9% पर आ गया। 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा ने 20% वोट तो हासिल किए लेकिन क बी सीट नहीं जीती। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा 19 सीटों पर सिमट गई।
गठबंधन रहा बीएसपी के लिए मुफीद
1984 में बसपा की स्थापना हुई। बसपा को पहली बड़ी सफलता सपा के साथ गठबंधन में 1993 में मिली। 12 विधायकों वाली बसपा को 1993 में 67 सीटें मिली। बसपा ने 164 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा और 109 सीट पर जीती थी। लेकिन 18 महीने बाद ही बसपा ने गठबंधन तोड़ दिया था। उसके बाद वह 1995 को बीजेपी के ही समर्थन सेम बनी। 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने कांग्रेस संग लड़ा। बसपा 67 सीट और कांग्रेस ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की। बाद मे मायावती ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ दिया था। फिर बीजेपी के सहयोग से सीएम बनी थी।
सौजन्य : Navbharat times
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