MP News: प्राइमरी स्कूल बंद, मिडिल स्कूल में 5 बच्चे…एमपी के इस आदिवासी गांव में अंधकार में बच्चों का भविष्य
Chhatarpur News: एमपी के एक आदिवासी गांव में सरकार ने एकमात्र प्राइमरी स्कूल में ताला जड़ दिया, जिसके चलते गांव के बच्चे अशिक्षित रहने को मजबूर हैं। गांव के नजदीक में दूसरा स्कूल लगभग 6 किमी दूर है, जिसके लिए जंगल और नदी को पार करना पड़ता है।
एमपी के इस आदिवासी गांव में अंधकार में बच्चों का भविष्य
छतरपुर। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के छोटे से गांव में, 30 से अधिक बच्चे अशिक्षित हैं, इसलिए नहीं कि वे स्कूल नहीं जाना चाहते, बल्कि इसलिए कि सरकार ने उनके पास जो एकमात्र स्कूल था, उसे भी बंद कर दिया है, जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम सभी बच्चों के लिए शिक्षा की गारंटी देता है।
दरअसल, सगौरिया 200 से कम लोगों का एक गांव है, जो छतरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 90 किमी और भोपाल से 270 किमी दूर है। यहां की अधिकांश आबादी आदिवासी है और साक्षरता दर (2011 की जनगणना के अनुसार) 55.6% है।
गांव के हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं। स्कूल जाने की उम्र में बच्चे कीचड़ भरी गलियों में दौड़ते हैं और खेतों में खेलते हैं क्योंकि गांव में कोई प्राइमरी स्कूल नहीं है।
यहां का एकमात्र स्कूल 2015 में सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था। गांव में कोई सड़क नहीं है, और सबसे नजदीकी प्राइमरी स्कूल 6 किमी से भी दूर हिनौता गांव में है। छोटे बच्चों को स्कूल तक पहुंचने के लिए जंगल के बीच से गुजरने वाली कच्ची सड़क और नदी पार करके जाना पड़ता था। विडंबना यह है कि जिस गांव में प्राइमरी स्कूल नहीं है, वहां कक्षा 6 से 8 तक के लिए मिडिल स्कूल तो है, लेकिन वहां सिर्फ पांच छात्र हैं।
उसी स्कूल में एकमात्र अतिथि शिक्षक संतोष यादव बताते हैं कि, चूंकि लगभग आठ साल पहले प्राइमरी स्कूल बंद हो गया था, इसलिए मिडिल स्कूल में छात्र नहीं हैं। सगौरिया गांव में रहने वाले 37 वर्षीय आदिवासी जाहर ने कहा, ‘मेरे चार बच्चे हैं, जिनकी उम्र 10, 7, 5 और 3 साल है। उनमें से कोई भी स्कूल नहीं जाता है। वे कैसे जा सकते हैं? ये बहुत दूर है। मैंने अपने बड़े बेटे का दाखिला कराया हिनौता के एक स्कूल में, लेकिन दूरी और वहां पहुंचने में कठिनाई के कारण वह भी घर पर रहता है। मेरे अन्य बच्चों का नामांकन भी नहीं हुआ है।’
उसी स्कूल में एकमात्र अतिथि शिक्षक संतोष यादव बताते हैं कि, चूंकि लगभग आठ साल पहले प्राइमरी स्कूल बंद हो गया था, इसलिए मिडिल स्कूल में छात्र नहीं हैं। सगौरिया गांव में रहने वाले 37 वर्षीय आदिवासी जाहर ने कहा, ‘मेरे चार बच्चे हैं, जिनकी उम्र 10, 7, 5 और 3 साल है। उनमें से कोई भी स्कूल नहीं जाता है। वे कैसे जा सकते हैं? ये बहुत दूर है। मैंने अपने बड़े बेटे का दाखिला कराया हिनौता के एक स्कूल में, लेकिन दूरी और वहां पहुंचने में कठिनाई के कारण वह भी घर पर रहता है। मेरे अन्य बच्चों का नामांकन भी नहीं हुआ है।’
सागौरिया के रहने वाले पुरषोत्तम यादव ने बताया कि जो लोग इसका खर्च उठा सकते हैं, वे गांव छोड़ रहे हैं और एक स्कूल के पास किराए पर घर ले रहे हैं ताकि उनके बच्चे पढ़ सकें। उन्होंने कहा, ‘हममें से बहुत कम लोग ऐसा कर सकते हैं। अधिकांश आदिवासी बच्चे निरक्षरता के लिए मजबूर हैं।’
राजाराम यादव, जो एक मजदूर के रूप में काम करते हैं, कहते हैं कि खाने के लिए भी संघर्ष करने के बावजूद, उन्होंने 85 किमी दूर हीरापुर गांव में एक घर किराए पर लेने का फैसला किया, ताकि उनके बच्चों को शिक्षा मिल सके और ‘बड़े होकर ईंटें ढोने का काम न करना पड़े।’
उन्होंने बताया, ‘सगौरिया में 30-35 बच्चे हैं, जिन्हें शिक्षा की ज़रूरत है लेकिन कोई स्कूल नहीं है। निकटतम स्कूल का रास्ता ऐसा है कि शाम 4 बजे के बाद वहां कोई जा नहीं सकता।’
शिक्षक संतोष यादव ने कहा कि जब 2015 में प्राथमिक विद्यालय बंद हुआ तो वहां 20 छात्र थे। वह कहते हैं कि, ‘उस समय ब्लॉक में सात स्कूल बंद थे। अब हमारे पास कक्षा 6 में चार बच्चे हैं और कक्षा 7 में केवल एक बच्चा है।’
ग्रामीणों ने बताया कि वे कई बार शिक्षा विभाग से संपर्क कर चुके हैं, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि उन्हें समस्या की जानकारी नहीं है। जिला शिक्षा पदाधिकारी महेंद्र कुमार कैतार्य ने कहा, ‘हमें इस मामले की जांच करानी होगी. यह मामला हमारे संज्ञान में नहीं आया है।’
सौजन्य :navbharat times
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