सरकारी पदों पर एससी की मौजूदगी न के बराबर,आखिर कौन हैं दलित?
नई दिल्ली. दलितों को लेकर देश की राजनीति गर्म है। ऐसा हमेशा से होता आया है। लेकिन देश में दलितों की स्थिति में आजादी के बाद से ही कोई खास सुधार नहीं हुआ है। देश में अनुसूचित जाति की आबादी 20 करोड़ है, जिन्हें दलित कहा जाता है। इनकी जनसंख्या करीब 20% की दर से बढ़ी है लेकिन आज भी बड़ी सरकारी पोस्ट्स पर इनकी मौजूदगी न के बराबर है। हालांकि दलित एंटरप्रेनोयर बढ़ रहे हैं। दलितों की स्थिति पर रिपोर्ट…
– अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए 2014 में प्रोफेसर अमिताभ कुंडु ने एक रिपोर्ट तैयार की थी।
– इसमें बताया गया था कि आज देश में एक तिहाई दलितों के पास जीवन की सबसे कम जरूरतों को पूरा करने वाली सुविधाएं नहीं हैं।
– गांवों में 45 फीसदी दलित परिवारों के पास जमीन नहीं हैं और वह छोटी-मोटी मजदूरी कर गुजारा करते हैं।
– हालांकि सरकार ने साल 2016-17 में दलितों के ऊपर उठाने के लिए 38,832 करोड़ रुपए का आवंटन किया है, यह आंकड़ा पिछले बजट में 30 हजार करोड़ था।
टि्वटर पर एकजुट
– पत्रकार रामा लक्ष्मी अपनी रिपोर्ट में कहती हैं कि दलित युवा अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए टि्वटर का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं।
– कोलकाता में कुछ महीने पहले जब ब्रिज गिरा और दर्जनों लोग मारे गए तब कंस्ट्रक्शन कंपनी पर सवाल उठने लगे।
– इसी दौरान एक अमीर व्यवसायी मोतीलाल ओसवाल ने ट्वीट किया कि यह देश के उन इंजीनियर्स के कारण हुआ है, जो टैलेंट के दम पर नहीं बल्कि जाति का लाभ लेकर इंजीनियर बनते हैं।
– उनके इस ट्वीट के बाद सैकड़ों दलितों ने उनके विरोध में ट्वीट किया। मामला इस कदर बढ़ा कि घंटे भर के अंदर उन्होंने न केवल अपना ट्वीट डिलीट किया बल्कि माफी भी मांगी।उन्होंने ओसवाल के ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी खूब शेयर किया।
– ऐसा ही एक कैंपेन ट्वीटर पर दलितों ने देश की उस कंपनी के खिलाफ चलाया जिसने अपने एक ऐड में आरक्षण का फायदा लेने से इंकार करने वाले लोवर कास्ट स्टूडेंट को दिखाया था।
– दलित राइटर चंद्रभान प्रसाद कहते हैं कि अपर कास्ट लोगों के लिए ट्विटर बना होगा लेकिन दलितों के लिए क्रांति का जरिया है।
– इन्होंने ही हाल ही में दलित फूड्स के नाम से ऑनलाइन स्टार्टअप शुरू किया है। इसकी खासियत यह है कि ये वेबसाइट्स पर बिकने वाले सभी प्रोडक्ट्स दलितों द्वारा बनाए हुए लेते हैं।
80 फीसदी दलित ग्रुप-डी और सी नौकरियों में
– भारत सरकार के पूर्व ज्वाइंट सेक्रेटरी ओपी शुक्ला कहते हैं कि सरकारी नौकरियों में 80 फीसदी दलित ग्रुप-डी और सी की नौकरियों में थे, जिसे 6ठवें वेतनमान के बाद सरकार ने मिलाकर ग्रेड 3 कर दिया है।
– चपरासी, सफाई कर्मचारी, ऑफिस ब्वाय, क्लर्क और डाटा ऑपरेटर आदि पदों पर 80 फीसदी कर्मचारी ठेके पर रखे जा रहे हैं, इसलिए सरकार ने जहां से सबसे ज्यादा दलित नौकरियों में आते थे, उसे एक तरह से बंद कर दिया है।
– नेशनल कमिशन फॉर शेड्यूल कास्ट के चेयरमैन पीएल पुनिया के अनुसार देश में 1064 जातियां अनुसूचित जाति या दलित वर्ग के तहत आती हैं। इनकी आबादी कुल जनसंख्या की 16.6 फीसदी हैं।
– वहीं उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में करीब 50 पिछड़ी जातियां ऐसी हैं जो खुद को एसी वर्ग में शामिल करने की मांग कर रही हैं।
कोटा 15% का ; नौकरियों में हैं 17% क्योंकि 40% सिर्फ सफाई कर्मचारी
– कुल सरकारी नौकरियों में 17 फीसदी दलित हैं, जबकि कोटा 15 फीसदी है। बढ़ोतरी का यह आंकडा इसलिए है क्योंकि 40 फीसदी सफाई कर्मचारी दलित जाति से हैं।
– इसी के चलते क्लास फोर्थ यानी ग्रुप डी की नौकरियों में दलित 19.3 फीसदी हैं, जबकि ग्रुप सी में 16 फीसदी हैं।
– हालांकि हर साल 30% बढ़ रहे हैं दलित एंटरप्रेन्योर। 2001 में देश में दलित एंटरप्रेन्योर 10.5 लाख थे। जो 2006-07 में बढ़कर 28 लाख हो गए।
– एक अनुमान के मुताबिक अब इनकी संख्या 87 लाख से अधिक है। वर्तमान में हर साल 30% एंटरप्रेन्योर उद्यमी बढ़ रहे हैं।
इनपुट्स: शादाब समी/मधुर जोशी
सोर्स- नेशनल सैंपल सर्वे आॅर्गेनाइजेशन-इकाॅनाॅमिक डाटा, सेंसस 2011, लोकसभा में पेश रिपोर्ट, एनसीआरबी रिपोर्ट, दलित इंडियन चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
सौजन्य :दैनिक भास्कर
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