मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी अपना खोया जनाधार पाने में जुटी
भोपाल। मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपना खोया जनाधार पाने में जुटी है। ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में बसपा का प्रभाव रहा है। हाल के वर्षों में बसपा का अपना वोट बैंक छिटक गया। यही वोट बैंक इन अंचलों में समय-समय पर कांग्रेस व भाजपा की जीत का कारण बनता रहा।
परंपरागत दलित वोटबैंक का झुकाव कांग्रेस की तरफ
2018 के मप्र विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल में बसपा के परंपरागत दलित वोटबैंक का झुकाव कांग्रेस की तरफ हुआ था, जिसका असर परिणामों पर स्पष्ट रूप से नजर आया। भाजपा को नुकसान हुआ। जबकि, विंध्य में बसपा के कारण कांग्रेस को क्षति हुई। यहां पार्टी केवल सात सीटें ही जीत सकी। अब बसपा अपना खोया जनाधार पाने में जुटी है। इसके लिए पैदल यात्रा, बूथ पर कार्यकर्ता जोड़ो कार्यक्रम संचालित किए तो अब उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जहां पार्टी के परंपरागत वोटर हैं।
8.72 प्रतिशत मत 2008 के विधानसभा चुनाव में मिले
बसपा को अभी तक अधिकतम 8.72 प्रतिशत मत 2008 के विधानसभा चुनाव में मिले थे। पिछले चुनाव में 5.1 प्रतिशत वोट मिले और दो प्रत्याशी जीते थे। हालांकि, इसमें से एक संजीव सिंह भाजपा को समर्थन दे चुके हैं। खोए जनाधार को पाने के लिए बसपा के राष्ट्रीय नेता प्रदेश में लगातार दौरे पर आ रहे हैं।
मायावती की सभा मध्य प्रदेश में कराने की तैयारी
पार्टी के राष्ट्रीय समन्यवक आकाश आनंद ने इसी माह पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक कर राज्यपाल को ज्ञापन देने के लिए पैदल मार्च निकाला था। सितंबर में भी उनकी सभा होने वाली है। सितंबर में ही पार्टी सुप्रीमो मायावती की भी सभा प्रदेश में कराने की तैयारी है। इसके लिए जगह और दिन तय किया जा रहा है।
वोट बैंक छीनने में पूरी ताकत से लगी हैं भाजपा और कांग्रेस
बसपा का परंपरागत वोट बैंक अनुसूचित जाति(दलित वर्ग) के मतदाता रहे हैं। इसके बाद अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग का कुछ वोट भी वर्ष 1993 से 2008 तक बसपा की ओर झुका था, पर इसके बाद कांग्रेस और भाजपा ने बसपा के वोट बैंक को तोड़ने की पुरजोर कोशिश की, जिससे बसपा का मत प्रतिशत और सीटें कम हुईं। आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अनुसूचित जाति के वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए संत रविदास मंदिर के भूमिपूजन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बुलाया।
मतदाताओं को साधने के लिए कवायद
अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए पेसा कानून लागू करने से लेकर कई तरह की कवायद की गई। भाजपा किसी भी सूरत में दलित वोट बैंक को छिटकने नहीं देना चाहती। उधर, कांग्रेस भी दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए हर जतन कर रही है। वचन पत्र में उनके लिए कई प्रस्ताव लाने की तैयारी है। ऐसे में बसपा के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती अपने मौजूदा वोट बैंक को बचाकर रखने की है।
दो बार से लगातार घट रहा बसपा का मतदान प्रतिशत
छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद बसपा को अभी तक सबसे ज्यादा मत प्रतिशत (8.72) वर्ष 2008 के आम चुनाव में मिला था। इसके बाद यह लगातार कम हुआ है। वर्ष 2013 में 6.29 और 2018 में 5.01 प्रतिशत रहा है। अब इस बार पार्टी फिर मतदान प्रतिशत बढ़ाने से लेकर प्रयास कर रही है। पार्टी 10 से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में है। सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी है। इसमें भी जातिगत समीकरणों को विशेष महत्व दिया जाएगा। मजबूत स्थिति वाले सवर्ण उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा जाएगा।
पिछले विधानसभा चुनावों में बसपा को अन्य दलों की तुलना में मिले मत
आम चुनाव वर्ष — बसपा- भाजपा – कांग्रेस
2018–5.01– 41.02 — 40.89
2013– 6.29– 44.87– 36.38
2008– 8.72–36.81–36.04
2003–7.26–42.5– 31.65
1998–6.04–39.03–40.63
1993–7.02–38.82–40.81
सौजन्य : Naidunia
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