विचलित कर देंगी ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताएं- ‘मैं भाड़ में नहीं नरक में जीता हूं, पल-पल मरता हूं’
जब भी दलित साहित्य की चर्चा होती है तो ओमप्रकाश वाल्मीकि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’ ने साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी. इस आत्मकथा के माध्यम से वाल्मीकि ने दलित समाज के उत्पीड़न और शोषण को उजागर करने का काम किया.
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने हिंदी साहित्य की लगभग हर विधा में अपनी कलम चलाई. उन्होंने कहानी, कविता, आत्मकथा, आलोचना और नाटक लिखे. वाल्मीकि ने अंग्रेजी और मराठी साहित्य का हिंदी में अनुवाद भी किया. ओमप्रकाश वाल्मीकि लेखक होने के साथ-साथ कलाकार भी थे. उन्होंने 60 से अधिक नाटकों में अभिनय, मंचन एवं निर्देशन किया. उनकी कविता ‘ठाकुर का कुआं’ दलित जीवन को प्रदर्शित करती मार्मिक कविता है तो समाजिक व्यवस्था पर तीखा कटाक्ष भी. ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त जातीय-अपमान और उत्पीड़न का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है. प्रस्तुत हैं उनकी चुनिंदा कविताएं-
जूता
हिकारत भरे शब्द चुभते हैं
त्वचा में
सुईं की नोक की तरह
जब वे कहते हैं–
साथ चलना है तो कदम बढ़ाओ
जल्दी-जल्दी
जबकि मेरे लिए कदम बढ़ाना
पहाड़ पर चढ़ने जैसा है
मेरे पांव जख़्मी हैं
और जूता काट रहा है
वे फिर कहते हैं–
साथ चलना है तो कदम बढ़ाओ
हमारे पीछे-पीछे आओ
मैं कहता हूं–
पांव में तकलीफ है
चलना दुश्वार है मेरे लिए
जूता काट रहा है
वे चीखते हैं–
भाड़ में जाओ
तुम और तुम्हारा जूता
मैं कहना चाहता हूं —
मैं भाड़ में नहीं
नरक में जीता हूं
पल-पल मरता हूं
जूता मुझे काटता है
उसका दर्द भी मैं ही जानता हूं
तुम्हारी महानता मेरे लिए स्याह अंधेरा है।
वे चमचमाती नक्काशीदार छड़ी से
धकिया कर मुझे
आगे बढ़ जाते हैं।
उनका रौद्र रूप-
सौम्यता के आवरण में लिपट कर
दार्शनिक मुद्रा में बदल जाता है
और, मेरा आर्तनाद
सिसकियों में
मैं जानता हूं
मेरा दर्द तुम्हारे लिए चींटी जैसा
और तुम्हारा अपना दर्द पहाड़ जैसा
इसीलिए, मेरे और तुम्हारे बीच
एक फ़ासला है
जिसे लम्बाई में नहीं
समय से नापा जाएगा।
—
खेत उदास हैं
चिड़िया उदास है —
जंगल के खालीपन पर
बच्चे उदास हैं —
भव्य अट्टालिकाओं के
खिड़की-दरवाज़ों में कील की तरह
ठुकी चिड़िया की उदासी पर
खेत उदास हैं —
भरपूर फसल के बाद भी
सिर पर तसला रखे हरिया
चढ़-उतर रहा है एक-एक सीढ़ी
ऊंची उठती दीवार पर
लड़की उदास है —
कब तक छिपाकर रखेगी जन्मतिथि
किराये के हाथ
लिख रहे हैं दीवारों पर
‘उदास होना
भारतीयता के खिलाफ है!’
—
ठाकुर का कुआं
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फसल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गांव?
शहर?
देश?
सौजन्य : News18
नोट : समाचार मूलरूप से news18.com में प्रकाशित हुआ है ! मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित !